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दास्तान-ए-महिला अस्पताल : सिसकती सेवाएं, कराहते मरीज

सीतापुर : स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर हर माह अरबों रुपयों पानी की तरह पानी बहाया जा रहा है, मगर हकीकत इ

By Edited By: Published: Mon, 05 Oct 2015 11:57 PM (IST)Updated: Mon, 05 Oct 2015 11:57 PM (IST)
दास्तान-ए-महिला अस्पताल : सिसकती सेवाएं, कराहते मरीज

सीतापुर : स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर हर माह अरबों रुपयों पानी की तरह पानी बहाया जा रहा है, मगर हकीकत इससे जुदा है। रविवार रात 'दैनिक जागरण' टीम ने जिला महिला अस्पताल का हाल देखा तो इसकी असल तस्वीर उलटी नजर आई। इमरजेंसी में महिला चिकित्सक के साथ पूरा स्टॉफ भी नदारद था। स्कूल की वैन से मरीजों को ढोया जा रहा था। महिला मरीज के साथ बेड पर आशा बहू सोती मिली तो रैन बसेरा पर पुरुषों का कब्जा था। महिला मरीजों के साथ आने वाली तीमारदार महिलाएं खुले आसमान तले सोती मिलीं। अव्यवस्थाओं की फेहरिश्त तो काफी लंबी है मगर यह वह प्रमुख ¨बदु हैं जो संवेदनशील चिकित्सकों की कहानी बयां करने को पर्याप्त हैं। कहना अतिश्योक्ति न होगा कि रात के वक्त इस अस्पताल में चिकित्सकों व स्टॉफ के साथ ही स्वास्थ्य सेवाएं भी सो जाती हैं।

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रात को नहीं रुकती स्टाफ नर्स

रात के करीब दस बजे हुए थे, जिला महिला अस्पताल के वार्डों में रोगी भर्ती थे। उनके तीमारदार जमीन पर लेटे हुए थे। ड्यूटी से स्टाफ नर्स और वार्ड आया कोई भी मौजूद नहीं मिला। कुछ रोगियों के तीमारदार स्टाफ नर्स की तलाश कर रहे थे, लेकिन उनका कोई पता नहीं लग पा रहा था। ऐसे में जच्चा और नवजात दोनों ही परेशान हो रहे थे। भर्ती महिला रोगियों को दिक्कत हो रही थी। उन्हें चिकित्सक की परामर्श से दवाइयों की जरूरत थी।

संसाधन विहीन रैन बसेरा

महिला अस्पताल में बनाए गए रैन बसेरे में पुरुषों ने कब्जा कर रखा है। यहां पर मात्र तीन तखत पड़े हैं। इसके अलावा यहां न तो तीमारदारों को गद्दे उपलब्ध कराए गए हैं, और न ही सुरक्षा के कोई इंतजाम है। कुछ लोग तखतों पर सो रहे हैं, तो कुछ जमीन पर सोते नजर आए। बाहर से आने वाले तीमारदारों को भी यहां जमीन पर ही रात गुजारनी पड़ती है। उन्हें गर्मी से निजात दिलाने को पंखों की भी व्यवस्था नहीं है।

खुले आसमान तले रातें गुजारती महिलाएं

रैन बसेरे की अव्यवस्थाओं के चलते यहां भर्ती महिलाओं की तीमारदार महिलाएं रात में खुले आसमान के नीचे राते गुजारने को विवश है। कुछ ऐसी ही मुश्किलों से आशा बहुओं को भी जूझना पड़ता है। बीते पखवारे इस अस्पताल के निरीक्षण को आई राज्य स्तरीय टीम के सामने भी आशा बहुओं ने अपनी इस परेशानी को बयान किया था, लेकिन हालातों में कोई सुधार नहीं हो सका है।

स्कूल वैन से ढोए जा रहे मरीज

महिला अस्पताल में रात को एंबुलेंस की सुविधा न मिलने पर रोगियों को स्कूली वाहनों का सहारा लेना पड़

रहा है। रात को लेबर रूम में एक महिला रोगी की हालत बिगड़ गई जिस कारण उसे रेफर कर दिया गया। तीमारदार एंबुलेंस को फोन लगाते रहे लेकिन समय से एंबुलेंस न मिलने की वजह से पीड़ित को एक स्कूली वाहन को किराये पर लेकर प्राइवेट अस्पताल को ले जाया गया।

क्या कहती हैं जिम्मेदार

हमारे पास सीमित संसाधन हैं। चिकित्सकों एवं अन्य स्टाफ की कमी के साथ ही कमरों की भी कमी है। इस बाबत लगातार उच्चाधिकारियों से पत्राचार जारी है। संसाधनों की कमी के बावजूद भी हम मरीजों को बेहतर सेवाएं दे रहें हैं, और यह मेरी प्राथमिकता भी है।

- सुषमा कर्णवाल, चिकित्सा अधीक्षक


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