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सन्नाटे में गूंजती रही रोने की आवाजें

By Edited By: Published: Wed, 07 Dec 2011 09:57 PM (IST)Updated: Wed, 07 Dec 2011 09:57 PM (IST)
सन्नाटे में गूंजती रही रोने की आवाजें

डुमरियागंज : रात के सन्नाटे में चारों तरफ अंधेरा। मौका था शाम-ए-गरीबां का प्रोग्राम। जिसमें सिर्फ रोने की ही आवाजें बुलंद थी।

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मंगलवार की रात कस्बा हल्लौर के दरगाह प्रांगण में वाकये करबला की याद में शामे गरीबां का आयोजन हुआ। (यह कार्यक्रम करबला में इमाम हुसैन व उनके साथियों की दसवीं मोहर्रम के दिन शहादत के बाद उनके परिवार के समक्ष उत्पन्न हुई कठिनाई का अहसास कर उस पर शोक प्रकट करने के लिए हर साल 10 मोहर्रम की शाम रात के अंधेरे में मनाया जाता है) इस क्रम में हैदरे कर्रार व उनके साथियों द्वारा मरसिया बढ़ी गई। इसके बाद जाकिरे अहलेबैत खुश्तर अब्बास ने शाम-ए-गरीबां के मंजर जो बयान किया तो फिजा में सिर्फ रोने की आवाजें ही सुनाई दे रही थी। मजलिस के बाद हाजिरी व उसके उपरांत इमाम हुसैन की सवारी जुलजनाह की शबीह निकाली गई। हर तरफ गम का माहौल छाया रहा। प्रोग्राम में नायाब हल्लौरी, खुशीद हैदर, नौशाद व आबाद हैदर ने नौहा ख्वानी की। अंत में मातमदारों ने मातम किया। इसी कड़ी में हुसैनिया शफायत हुसैन व बरकात हुसैन के मकान पर भी शामें गरीबां की मजलिस हुई।

इससे पूर्व मजलिस को खिताब करते हुए मौलाना जमाल अहमद ने कहा कि करबला में इमाम हुसैन ने यजीद को ऐसा सबक सिखाया कि कयामत तक इमाम हुसैन को मानने वाला कोई भी हुसैनी यजीद जैसे असत्य के समर्थक का समर्थन नहीं कर सकता। मौलाना शारिब, मेंहदी अब्बास, अजीम हैदर व मुजैनुल हक ने भी विचार रखा। इमाम हुसैन व कर्बला के शहीदों के प्रति उपस्थित हजारों लोगों ने आंसू भरी आंखों से खेराजे अकीदत पेश की।

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