उजड़ी तस्वीर, दावा तरक्की का
सिद्धार्थनगर : रेलवे दावा करता है कि इस क्षेत्र को बहुत कुछ दे दिया। इसे लूप लाइन से ब्राडगेज की सौ
सिद्धार्थनगर : रेलवे दावा करता है कि इस क्षेत्र को बहुत कुछ दे दिया। इसे लूप लाइन से ब्राडगेज की सौगात दे दी। मुम्बई के लिए रोजाना एक ट्रेन दे दी। लखनऊ के लिए इंटरसिटी व गोमती एक्सप्रेस दे दिया। फिर भी अभी यह व्यवस्था नहीं बन सकी है कि लोग आराम से दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलूर, बनारस आदि स्टेशनों पर जा सकें, जबकि कर्मा के 92 वर्षीय आद्या प्रसाद शुक्ल का कहना है कि उन्हें तो याद ही नहीं कि उस्का स्टेशन व वहां का मालगोदाम कब बना। नौगढ़ रेलवे स्टेशन और वहां का मालगोदाम तो उनके जन्म के बाद बना। शोहरतगढ़, बढ़नी में मालगोदाम की व्यवस्था थी। वह भी क्या दिन थे। उस्का से नदी के रास्ते चावल, गुड़ पश्चिम बंगाल के ढाका जाता था और वहां मलमल आता था। सब स्टोर किया जाता था मालगोदाम में। दूरदराज के व्यापारी उस्का, नौगढ़, शोरहतगढ़ बढ़नी में एकत्रित होते थे। चावल, कपड़ा, गुड़, रूई का बड़ा बाजार लगता था यहां। दूरदराज से मारवाड़ी आकर बस गए थे उस्का में। उनकी संख्या सैकड़ों में थी। आज गिने-चुने हैं। हर स्टेशन पर माल गोदाम था और आज कहीं नहीं। आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारी स्थिति तब बेहतर थी या अब।
यहां भले विधायकों का सीधा वास्ता ट्रेनों से न हो, पर इसमें कहीं कोई दो राय नहीं कि रेल खेल से चार दशकों में यहां का न सिर्फ व्यापार तबाह हो गया, बल्कि लोग तितर-बितर हो गए। उस्का में मारवाड़ी परिवार की संख्या 10 से अधिक नहीं है। यहां का विश्व विख्यात चावल अस्तित्व से जूझ रहा है। चावल की मंडी ही टूट गई। कुल मिलाकर जिले की 2935395 आबादी प्रभावित है। बावजूद इसके चुनाव में यह नेता जी के लिए मुद्दा नहीं है। वह वोट मांग रहे हैं। लोगों को विकास का सब्जबाग दिखाने की बात कर रहे हैं, पर रेललाइन, स्टेशन, मालगोदाम, जहां से यहां की जनता सीधे अथवा परोक्ष रूप से जुड़ी है, नेता की निगाह में मुद्दा नहीं है। चुनाव जीतने के पश्चात वह भले केन्द्र सरकार का अंग नहीं बनेंगे, पर इस क्षेत्र के एक मजबूत पैरोकार तो बन ही सकते हैं। फिर भी उन्होंने इससे पूरी तरह आंख मूंद रखी है कि यह मसला केन्द्र सरकार का है। यहां चुनाव भले विधायक का होने जा रहा हो, पर व्यापार मंडल ने सीधे-सीधे एलान किया है कि हमसफर का नौगढ़ में ठहराव न हुआ तो वह विरोध करेंगे। चार दशक पूर्व नौगढ़ से कानपुर के लिए सीधे ट्रेन थी। वर्ष 1971 नौगढ़ से 3 रुपये के किराए में अब्दुल मन्नान खां स्टेट ब्वायज में प्रतिभाग करने यहीं से ट्रेन में बैठकर कानपुर गए थे। तरक्की की तो बात ही छोड़ दीजिए, यहां से तो धीरे-धीरे सारी व्यवस्थाएं ही छीन ली गईं। यहां से लखनऊ के लिए सीधे ट्रेन की व्यवस्था हो चुकी है, पर यहां पहुंचने में 40 वर्ष लगे।
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ट्रेन व मालगोदाम चमका सकता है फूटी तकदीर
यहां से युवा शिक्षा व रोजगार के लिए अभी भी महानगरों की खाक छान रहे हैं। यहां सीमेंट, खाद, चावल, कपड़े के बड़े कारोबारी हैं। ट्रकों में लदकर उनका माल आता है। इसमें भाड़ा भी अधिक लगता है और समय भी। खाद, कपड़ा, सीमेंट की खेप यदि ट्रेन से आने लगे तो निश्चित ही यहां का कारोबार विकसित करेगा, पर यह तब संभव है, जब यहां से पर्याप्त ट्रेनें होंगी महानगरों को जोड़ने के लिए। स्टेशन पर मालगोदाम की व्यवस्था होगी। ताकि सामान उतारने के पश्चात उसे सुरक्षित रखा जा सके।