झुलसा रोग की गिरफ्त में आलू की फसल
सिद्धार्थनगर : विगत कई दिनों से पड़ रही कड़ाके की ठंड ने आलू की बोई फसल पर अपना कहर बरपा कर रही है। रा
सिद्धार्थनगर : विगत कई दिनों से पड़ रही कड़ाके की ठंड ने आलू की बोई फसल पर अपना कहर बरपा कर रही है। रात में आलू की फसल पर गिरने वाली ओस ठंड के कारण जम जाती है और सुबह धूप पाकर जब पिघलती है तो आलू की पत्तियों को वह झुलसा दे रही है इससे फसल में झुलसा रोग का प्रकोप बढ़ गया है। इस रोग आलू की खेती किए किसानों के माथे पर बल पड़ने लगा है। नोट बंदी से परेशान हुए किसानों ने किसी तरह यह खेती की वह भी अब उनके हाथ खाली करने पर आमादा है।
क्षेत्र के दो दर्जन किसानों ने अपने दर्द बयां करते हुए बताया कि उनकी आलू की बोई फसल अब बर्बादी के करीब है। रोग से निदान के लिए दवा का छिड़काव भी कारगर नहीं हो रहा है। पहले पत्तियों में यह रोग लगा अब धीरे -धीरे पौधों को अपने आगोश में ले लिया है। आगे अगैती खेती में इसका प्रकोप 20 प्रतिशत तक देखा जा रहा है पर लेट में बोई गई फसल में चालीस फीसदी इसकरा प्रकोप है। इससे बचाव के लिए किसानों ने ¨सचाई का सहारा लेना शुरु तो किया पर यह भी कोई कारगर उपाय साबित नहीं हो रहा है। पिढ़ीया के किसान जगदीश प्रसाद त्रिपाठी, सुनील त्रिपाठी, राम उजागिर आदि का कहना था आलू की खेती में हम पहले से ही कर्ज में डूबे हैं । सोचा था फसल ठीक हो जायेगी तो सब ठीक हो जायेगा पर रोग ने तो हमारी कमर ही तोड़ दी।
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इस रोग से बचाव के लिए किसानों को चाहिए की वह खेतों में नमी बराबर बनाए रखे। संभव हो तो प्रत्येक शाम खेत के चारो ओर धुंआ करें। इस रोग से बचाव के लिए खेत में मैंकोजेप के 0.2 फीसद का छिड़काव करें। जिन खेतों में झुलसा रोग लग चुका है उनमें साइमोक्सेनिल का छिड़काव करें।
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एस के तोमर
कृषि वैज्ञानिक