पीठ पर भारी बोझ से दबे मासूम
सिद्धार्थनगर : अच्छी शिक्षा दिलाने की अभिभावकों की सोच बच्चों के पीठ पर बस्तों की भारी बोझ डालने में
सिद्धार्थनगर : अच्छी शिक्षा दिलाने की अभिभावकों की सोच बच्चों के पीठ पर बस्तों की भारी बोझ डालने में सहायक बन रही है। पीठ पर भारी बोझ के भविष्य के दूरगामी नतीजे क्या होंगे, इससे अभिभावक व स्कूलों के जिम्मेदार अंजान बने हुए हैं।
बेहतर शिक्षा के नाम पर स्टेटस को ध्यान में रखते हुए कांवेंट स्कूलों में दाखिला कराने की होड़ लगी हुई है। खासकर सीबीएसई व आइसीएसइ पाठ्यक्रम वाले स्कूलों में नामांकन के लिए पुरजोर कोशिशें की जाती हैं। अभिभावकों को बेहतर शिक्षा के साथ बच्चों के सेहत पर भी खासा ध्यान देने की आवश्यकता है। वह दिन दूर नहीं जब बच्चा बस्तों के भारी बोझ तले दबे व मानसिक व शारीरिक तनाव से मुक्ति न मिलने के कारण किसी गंभीर बीमारी को पाल लें।
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छोटे-छोटे बच्चों पर बस्ते का भारी बोझ निश्चय ही ¨चताजनक ही नहीं भयावह है। कम उम्र में बच्चों को थकान लगना, आंखों में दर्द होना या अन्य परेशानियां बढ़ने में कहीं न कहीं इसकी भूमिका अहम है। इस दिशा में संबंधित स्कूल के संचालकों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों को ठोस पहल करने की आवश्यकता है। सकारात्मक पहल होने से बच्चों के सेहत पर दुष्प्रभाव होने से रोका जा सकता है।
पंकज जायसवाल
अभिभावक
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समय की मांग के अनुसार बच्चों को शिक्षा दिलाना आवश्यक है, पर विभाग व स्कूल संचालकों को चाहिए कि वह पुस्तकों का बोझ कम करने का प्रयास करना चाहिए। राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान परिषद को सीबीएससी समन्वय कर पुस्तकों का बोझ को कम करने की पहल करनी चाहिए। इस दिशा में समाज के सभी वर्गों को सामूहिक रूप से मासूमों पर बस्ते के बोझ को कम करने की दिशा में सकारात्मक पहल करना चाहिए।
रूबी कसौधन
अभिभावक
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बच्चों के कंधों व पीठ पर बस्तों का बोझ लादना वास्तव में सेहत की ²ष्टि से अच्छा नहीं है। मासूमों को कम उम्र में ही शारीरिक व मानसिक बीमारियों की शुरुआत होती है। इस दिशा में स्कूल संचालकों के साथ ही अभिभावकों को गंभीरता से लेना चाहिए। आने वाले समय में बच्चों पर बस्ते का बोझ भारी न पड़ जाए, इसके लिए सतर्कता बरतने के साथ ही ठोस पहल करने के लिए आगे आना चाहिए।
डा. आफरीन अतहर
चिकित्सक
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अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने के नाम पर अभिभावकों का शोषण व बच्चों के सेहत के साथ खिलवाड़ हो रहा है। सीबीएसइ व आइसीएसइ पैटर्न के नाम पर मानक को पूरा नहीं करते और अभिभावक उन्हीं स्कूलों की ओर रूझान भी करते हैं। अंग्रेजी माध्यम से बच्चों को पढ़ाने के स्टेटस से मोहभंग कर पाल्यों के स्वास्थ्य को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है।
अजय शुक्ला
अभिभावक