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मासूमों के लिए बोझ बना बस्ता

सिद्धार्थनगर : अंग्रेजों का राज खत्म हुए 70 बरस हो गए, पर अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा का दबदबा कायम हो

By Edited By: Published: Thu, 25 Aug 2016 11:30 PM (IST)Updated: Thu, 25 Aug 2016 11:30 PM (IST)
मासूमों के लिए बोझ बना बस्ता

सिद्धार्थनगर : अंग्रेजों का राज खत्म हुए 70 बरस हो गए, पर अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा का दबदबा कायम होने के साथ ही बढ़ता ही जा रहा है। अच्छी शिक्षा दिलाने की अभिभावकों की सोच बच्चों के पीठ पर बस्तों की भारी बोझ डालने में सहायक बन रहे हैं।

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ऐसे पड़ रहा प्रभाव

मासूमों के कंधे व पीठ पर बस्तों का भारी बोझ उनके सेहत पर किस कदर प्रभाव डाल रहा है, इसका भान स्कूल संचालकों, प्रशासनिक अमलों को ही नहीं अभिभावकों को भी नहीं है। कभी उम्रदराज लोगों के आंखों पर चश्मा लगा करता था, अब तो स्कूल में पहली कक्षा में नामांकन के बाद ही चश्मा लगना शुरु हो गया है। इसके पीछे बस्तों का भारी बोझ,अधिकाधिक होमवर्क और खेलकूद के लिए पर्याप्त समय न होना सबसे बड़ा कारण है। बेहतर शिक्षा के नाम पर स्टेटस को ध्यान में रखते हुए कांवेंट स्कूलों में दाखिला कराने की होड़ लगी हुई है। खासबर सीबीएसइ व आइसीएसइ पाठ्यक्रम वाले स्कूलों में नामांकन के लिए पुरजोर कोशिशें की जाती हैं। अभिभावकों को बेहतर शिक्षा के साथ बच्चों के सेहत पर भी खासा ध्यान देने की आवश्यकता है। वह दिन दूर नहीं जब बच्चा बस्तों के भारी बोझ तले दबे व मानसिक व शारीरिक तनाव से मुक्ति न मिलने के कारण किसी गंभीर बीमारी को पाल लें।

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आरटीआइ से मांगी स्कूल बैग की नियमावली

फोटो- 25एसडीआर-25

स्कूलों में बच्चों के पीठ पर बस्तों के भारी बोझ के प्रति ¨चतित नगर पालिका परिषद सिद्धार्थनगर के पूरबनगर वार्ड निवासी व जागरूक अभिभावक रवि शर्मा ने 20 अप्रैल 2015 को जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत नियमावली अथवा शासनादेश के बारे में जानकारी मांगी, पर जवाब में बीएसए ने लिखा कि शासनादेश उपलब्ध नहीं है। शासन से जानकारी प्राप्त करें। रवि ने 20 मई 2016 को खंड शिक्षा अधिकारी नौगढ़ से मांगा तो जवाब मिला कि शासनादेश नहीं है। अब 22 जून 2016 को प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा से आरटीआइ के जरिए सूचना मांगी है। प्रथम अपील भी कर चुका है। जानकारी में स्कूल बैग नियमावली क्या हैं, सरकारी, अर्धसरकारी, निजी संस्थाओं में किस प्रकार से स्कूल बैग नियम का पालन कराया जा रहा, स्कूल बैग अधिनियम का शासनादेश किसी भी बीएसए के पास है अथवा नहीं जैसे ¨बदु शामिल हैं।

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फोटो- 25एसडीआर-22

छोटे-छोटे बच्चों पर बस्ते का भारी बोझ निश्चय ही ¨चताजनक ही नहीं भयावह है। कम उम्र में बच्चों को थकान लगना, आंखों में दर्द होना या अन्य परेशानियां बढ़ने में कहीं न कहीं इसकी भूमिका अहम है। इस दिशा में संबंधित स्कूल के संचालकों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों को ठोस पहल करने की आवश्यकता है। सकारात्मक पहल होने से बच्चों की सेहत पर दुष्प्रभाव होने से रोका जा सकता है।

तजिन्दर ¨सह

अभिभावक

समय की मांग के अनुसार बच्चों को शिक्षा दिलाना आवश्यक है, पर विभाग व स्कूल संचालकों को चाहिए कि वह पुस्तकों का बोझ कम करने का प्रयास करें। राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान परिषद को सीबीएससी समन्वय कर पुस्तकों का बोझ कम करने की पहल करनी चाहिए। इस दिशा में समाज के सभी वर्गों को सामूहिक रूप से मासूमों पर बस्ते के बोझ को कम करने की दिशा में सकारात्मक पहल करना चाहिए।

सुजाता ¨सह

अभिभावक

बच्चों के कंधों व पीठ पर बस्तों का बोझ लादना वास्तव में सेहत की दृष्टि से अच्छा नहीं है। मासूमों को कम उम्र में ही शारीरिक व मानसिक बीमारियों की शुरुआत होती है। इस दिशा में स्कूल संचालकों के साथ ही अभिभावकों को गंभीरता से लेना चाहिए। आने वाले समय में बच्चों पर बस्ते का बोझ भारी न पड़ जाए, इसके लिए सतर्कता बरतने के साथ ही ठोस पहल करने के लिए आगे आना होगा।

डा. एम.एस. अब्बासी

चिकित्सक

अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने के नाम पर अभिभावकों का शोषण व बच्चों के सेहत के साथ खिलवाड़ हो रहा है। सीबीएसइ व आइसीएसइ पैटर्न के नाम पर मानक को पूरा नहीं करते और अभिभावक उन्हीं स्कूलों की ओर रूझान भी करते हैं। अंग्रेजी माध्यम से बच्चों को पढ़ाने के स्टेटस से मोहभंग कर पाल्यों के स्वास्थ्य को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है। ऐसे स्कूलों में नोटबुक के जरिए ज्यादा पढ़ाई होनी चाहिए। घर पर बच्चे अलग-अलग विषयों की कापियों में लिखें। इससे दोहरा लाभ होगा और बोझ भी हल्का हो जाएगा।

डा. प्रहलाद पांडेय

पूर्व प्राचार्य


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