हाहाकार, फिर भी हौसले बुलंद
सिद्धार्थनगर : चारों तरफ से घिरा गांव, कई किमी. तक पानी में डूबी सड़कों पर पसरा सन्नाटा, सड़े अनाजों स
सिद्धार्थनगर : चारों तरफ से घिरा गांव, कई किमी. तक पानी में डूबी सड़कों पर पसरा सन्नाटा, सड़े अनाजों से निकली दुर्गंध, महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों की आखों खौफ का मंजर। तहसील के कई गांव ऐसे हैं, जहां के वाशिंदे सरकारी इंतजाम का सहारा छोड़कर अपने हौसले से जंग करते है।
तहसील क्षेत्र के बूढ़ी राप्ती नदी के तट पर बसे बालानगर, कचरिहवा, इटहिया, फुलवरिया, तौलिहवा, कोमरी आदि गांव बाढ़ से चारों तरफ से घिरे हुए है। इन गांवों के संपर्क मार्ग दूर-दूर तक पानी में लापता है। स्कूल डूबे हुए हैं। हजारों एकड़ फसल बाढ़ में बर्बाद हो रही है। लगभग 5 सौ घरों में पानी घुसने के बावजूद इनके हौसले नहीं टूटे। कारण बाढ़ यहां के वाशिदों के लिये कोई नई बात नहीं है। बाढ़ की विभीषिका झेलना इनकी नियति बन गई है। हर बार प्रशासन की झूठी अश्वासन के बाद इनका भरोसा उठ चुका है। इन गांव के संपर्क मार्गो पर खैरा बाजार से ही 7 किलोमीटर तक कई फुट पानी चल रहा है। ग्रामीण किसी तरह एक नाव से जान जोखिम में डाल कर चार किलोमीटर मदरहवा-असोगवा बाध पर निकल कर कठेला बाजार जरूरत की समान खरीदने जाते है। सैफ आलम, लवकुश, रामधनी, रहमतुल्लाह, बदरे आलम ने बताया कि कोई ऐसा साल नहीं है कि गांव में बाढ़ कहर न मचाता हो, फसले बर्बाद होती हो। बालानगर के रामप्यारे, हरीराम, शंकर, भानमती, फूला एवं दुखहरन का कहना है कि 2014 में आई इसी तरह भीषण बाढ़ ने आशियाना अपने आगोश में लेकर बेघर कर दिया। बुद्धू कहते हैं बाढ़ झेलना आदत सी बन गयी है। बाढ़ के समय तमाम लोग आश्वासन देने आते हैं और चले जाते हैं। इस बार अभी तक काई नहीं आया। प्रधान प्रतिनिधि निसार अहमद ने बताया कि तीन दिन से गांव चारों तरफ से घिरा है। गांव के लोग छत पर जी रहे है। प्रशासन का एक कारिंदा तक गांव की हालत देखने नहीं आया। और न ही कोई राहत सामाग्री ही पहुचाई गई। ..
जहां तक संभव हो पा रहा है। राहत सामग्री पहुचाई जा रही, उस गांव के लोगो के निकलने के लिए नाव की व्यवस्था कराई जायेगी। जो गांव से निकलना चाहता है तो उसे वहां से निकाल कर राहत शिविर लाया जाएगा।
अरुण कुमार ¨सह
उपजिलाधिकारी