दशकों से विकास का इंतजार, नहीं बदली गांव की सूरत
सिद्धार्थनगर : दशकों से विकास के इंतजार के बावजूद गांव की सूरत तो नहीं बदली ,पर कई आंखें बूढ़ी जरूर
सिद्धार्थनगर : दशकों से विकास के इंतजार के बावजूद गांव की सूरत तो नहीं बदली ,पर कई आंखें बूढ़ी जरूर हो गईं। गांवों के विकास के लिए जनकल्याणकारी योजनाएं तो बनती हैं, लेकिन अभी बहु तेरे गांव ऐसे हैं, जहां गरीबी, लाचारी व बेरोजगारी की भयानक तस्वीर देखने को मिलेगी। बढ़नी विकास खंड की ग्राम पंचायत जमधरा का टोला बैरिया काफी इसका उदाहरण है। इस गांव की तस्वीर अब भी आजादी से पूर्व की बदहाली की ही कहानी बयां कर रही है।
तकरीबन 9 सौ आबादी वाले इस गांव में 60 प्रतिशत लोग गरीबी व अशिक्षा के बीच जीने के लिए अभिशापित हैं। गांव में आधे से ज्यादा लोग आज भी फूस से बने मकानों में अपनी जिन्दगी काटने को मजबूर हैं। कई लोग इस गांव में विकलांगता का दंश झेल रहे हैं। सड़क, पेयजल, बिजली व शिक्षा गांव के विकास में पहाड़ बनकर खडे हैं।
सामाजिक, आर्थिक व जातिगत जनगणना 2011 के आंकड़े इसके सामने कहीं भी नहीं ठहरते। इस गांव में अधिकतर लोग मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। शिक्षा के नाम पर एक प्राथमिक विद्यालय जरूर है, लेकिन वहां की स्थिति भी काफी निराशाजनक है।
स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए पूरे गांव में केवल 2 इण्डिया मार्का-टू हैण्डपंप लगे थे, वे भी खराब पड़े हैं। गांव की गलियां कीचड़ ,गंदगी व अतिक्रमण के जाल में उलझी हुई हैं। गांव में घुसते ही कीचड़ के दुर्गन्ध से ही रुबरु होना आम बात है। बैरिया से ढ़ेकहरी को आने वाला सम्पर्क मार्ग कीचड़ से सने होने के कारण उसे पार करना काफी दुश्वार है। दूसरी तरफ प्राथमिक विद्यालय के पास से होकर गुजरने वाला बैरिया नन्दनगर सम्पर्क मार्ग ठेकेदारों द्वारा लगभग 3 माह पूर्व काटकर ज्यों का त्यों छोड़ देने से आवागमन में भारी परेशानी हो रही है। बिजली तो कई दिनों तक लोगों को मयस्सर नहीं होती है। अशिक्षा व गरीबी यहां विकास में बडी बाधा बनकर खड़ी है। 6 लड़कियों व 3 लड़कों के पिता मोहम्मद अली मजदूरी कर जीविकोपार्जन करते हैं, उनकी 12 वर्षीय पुत्री मैरून्निशा पैरों से विकलांग है।
मोहम्मद अली का कहना है कि सरकारी सुविधाओें के नाम पर केवल अन्त्योदय कार्ड बना है, पर उसका समय से राशन भी नहीं मिलता है। आवास के लिए ग्राम प्रधान से कहा पर शायद गंवईं राजनीति के कारण लाभ नहीं मिल पा रहा है। ग्रामवासी जुगुना (45) मूक बधिर है। 6 वर्ष पूर्व उसके पति की बीमारी के कारण अचानक मौत हो जाने से 3 पुत्र व 2 पुत्रियों के पालन पोषण की जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई। उसके पास केवल अन्त्योदय कार्ड है। विधवा व विकलांग पेंशन के नाम पर केवल आश्वासन की घुट्टी पिला दी जाती है। 40 वर्षीय आमिना खातून विधवा है। दो छोट-छोटे बच्चों की जिम्मेदारी उन्हीं के ऊपर है, लेकिन सरकारी लाभ के नाम पर आज तक उनको कुछ भी नहीं मिला। गीता (35) के पति की मृत्यु के बाद 3 नन्हीं बच्चियों की जिम्मेदारी उनके कंधों पर है। उन बच्चियों का पालन पोषण करना उसके लिए अति दुरुह हो गया है। सरकारी मदद के नाम पर उसे आज तक कोई लाभ नहीं मिला।
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आधा दर्जन से अधिक गांव में विकलांग
-बैरिया टोला की स्थिति काफी भयावह है। 45 वर्षीय विधवा जुगुना पूरी तरह से मूक बधिर है। 12 वर्षीय मैरुन्निशा पैरों से विकलांग है तथा गूंगी 65 मूक बधिर है। राहिला 32 वर्ष मंदबुद्धि है, उमेश चौधरी 18 वर्ष, रोजन 8 वर्ष, राजकुमारी 40 वर्ष पैरों से विकलांग हैं।
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सीताराम बुर्जुग कहते हैं कि दशकों से गांव की स्थिति ऐसी ही है। हर बार चुनाव में वोट लेने के लिए बड़े-बड़े नेता गांव में सड़क, पानी आदि समस्या दूर करने की घोषणा किये, लेकिन कुर्सी पाने के बाद हम गरीबों को भूल गये। कई सालों से विकास के इंतजार में आंखें बूंढ़ी हो गई हैं।
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राहिला ग्रामीण- ग्राम प्रधान की लापरवाही व उदासीनता के कारण हम जैसे दर्जनों ग्रामीणों को विधना पेंशन, वृद्धा पेंशन, विकलांग पेंशन व आवास जैसी सरकार द्वारा प्राप्त मूलभूत सुविधायें नहीं मिल रही हैं। अधिकतर का कहना है कि कईयों के पेंशन पासबुक को प्रधान अपने पास रखते हैं, जिससे उन्हें सही स्थिति की जानकारी नहीं हो पाती है।
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अजय प्रताप यादव कहते हैं कि अधिकांश आबादी गरीब है, पर गंवईं राजनीति के कारण अधिकतर लोगों का एपीएल राशनकार्ड तो बनाया गया है, लेकिन सरकारी सुविधायें मिलने में दिक्कते होती हैं। अभी तक इस गांव का कोई प्रधान नहीं हुआ है, जिससे यहां के लोग हमेशा भेदभाव के शिकार होते हैं।
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मो. हनीफ ग्रामवासी- बैरिया गांव तीनों तरफ से पहाड़ी नदियों से घिरा है। गांव के पूरब से चरगहवा नदी तो पश्चिम से अर्रा नाला व दक्षिण दिशा से बूढ़ी राप्ती नदी बहती है। बरसात के दिनों में उक्त गांव सबसे पहले बाढ़ की चपेट में आता है। बाढ़ आने की दशा में यहां के लोगों को अपना जीवन बचाने में संकट खड़ा हो जाता है। इसके साथ ही नदियों से घिरे होने के नाते वे न तो पलायन कर पाते हैं और न ही अपनी सुरक्षा हेतु कोई ठोस इंतजाम।
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नकाफी है ये सहायता
वृद्धा पेंशन-14
विकलांग पेशन-2
समाजवादी पेंशन-6
विधवा पेंशन- किसी को नहीं
इंदिरा आवास-5
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वर्जन-
''गांव के विकास के लिए आये धन को ग्राम पंचायत के सभी गांवों को आवश्यकतानुसार खर्च किया जाता है। किसी तरह का कार्य कराने में कोई पक्षपात नहीं होता है। मेरे ऊपर लगाये गये सभी आरोप निराधार हैं।Þ
शकुन्तला देवीप्रधान ग्राम पंचायत जमधरा
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Þगरीबों व पा़त्र लोगों को सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ मिलना चहिए। सड़क, पानी आदि मूलभूत सुविधाओं की समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जायेगा।Þ
भगवान ¨सह
खंड विकास अधिकारी, बढ़नी