परोपकार व त्याग सबसे बड़ा धर्म
सिद्धार्थनगर : स्वार्थी समाज में शुख की कल्पना असंभव है। हम अपने नैतिक मूल्यों को भूल चुके हैं। परो
सिद्धार्थनगर : स्वार्थी समाज में शुख की कल्पना असंभव है। हम अपने नैतिक मूल्यों को भूल चुके हैं। परोपकार व त्याग जो मनुष्यता की पहचान है हम उससे विरक्त हो रहे हैं। जबकि धर्म के नाम पर बड़े- बडे़ तीर्थो की यात्रा करने वाले मनुष्य समाज को यह समझना चाहिए कि परोपकार व त्याग से बड़ा कोई धर्म नहीं है।
उक्त बातें क्षेत्र के महुलानी कुटी स्थित समाधि बाबा स्थल पर चल रहे श्री विष्णु महायज्ञ के दौरान आयोजित राम कथा के तीसरे दिन कथा वाचक पं. नीरज शास्त्री ने कही। शिव सती प्रसंग पर प्रवचन करते शास्त्री ने कहा कि धर्म की स्थापना के लिए भगवान शिव ने सती का त्याग कर दिया था। उन्होंने कहा कि राम की परीक्षा लेने की ठान सती ने सीता का रूप धारण कर मर्यादा व धर्म दोनों की अवहेलना की जो भूत भावन भगवान शंकर को काफी बुरा लगा। शास्त्री ने कहा कि किसी के रहन-सहन चेहरा आदि का अनुशरण न कर हमें उसके अच्छे चरित्र को धारण करना चाहिए। सीता का रूप धारण तो सती ने कर लिया पर माता सीता के चरित्र का वह अनुशरण नहीं कर सकी। अंत में उन्होंने कहा कि परमात्मा के चित्र व मूर्ति का दर्शन कर लेने से हम धार्मिक नहीं बन सकते। संस्कार व चरित्र उत्तम हो, अच्छाई का समर्थन और बुराई का विरोध करें, कुछ पाने की इच्छा रखने से पहले खुद भी कुछ त्यागने का साहस रखें तभी हम सही माने में धार्मिक कहे जायेंगे।
देवेन्द्र पांडेय, श्यामधर यादव, राम भजन चौधरी, अर्जुन यादव, गौरी शंकर शर्मा, राम सवारे, मोहन पंडित, सोनू, जय प्रकाश, शैलेन्द्र, मानधाता, राजेन्द्र पांडेय, मुलसी राम, अशोक त्रिपाठी, राम जी पंडित आदि उपस्थित रहे।