सरकार दे ध्यान तो कायम रहे उड़ान
सिद्धार्थनगर : उड़ने वाले प¨रदों में राजपक्षी सारस दुनिया का सबसे लंबा पक्षी है। लंबाई 165 से 175 सेम
सिद्धार्थनगर : उड़ने वाले प¨रदों में राजपक्षी सारस दुनिया का सबसे लंबा पक्षी है। लंबाई 165 से 175 सेमी के मध्य होती है। आयु 35 से 80 वर्ष होती है। विशाल कद के साथ जब वह नीलगंगन में उड़ान भरता है तो मानों सारा जहान कदमों में हो। इस खूबसूरती में चार चांद लगता है, जब यह महराज शुद्धोधन के राजमहल के ऊपर होता है। यह उड़ान सदैव कायम रहे, बशर्ते सरकार मेहरबान हो।
पक्षी विज्ञानियों की जानकारी पर यकीन करें तो सूबे में करीब तीन हजार सारस हैं। इसमें करीब 600 यहीं पर हैं। बीएनएचएस के रजत भार्गव 333 की गणना भी कर चुके हैं। सिर्फ वह ही नहीं, बल्कि पर्यावरणविद भी मानते हैं कि सार हंसों के प्रजनन व उनके पलने के लिए कपिलवस्तु से बेहतर क्षेत्र दूसरा नहीं हो सकता। हिमालय से सटे होने के नाते यहां की जलवायु सिर्फ इंसान नहीं बल्कि प¨रदे-च¨रदों को भी भाती है। सारस तो मुरीद हैं, इनकें। पहाड़ों से निकलने वाला जड़ी बूटियों युक्त जल यहीं से होकर गुजरता है। ढाई हजार वर्ष पूर्व रोहिन जल बटवारे के दौरान भी यह बातें चर्चा में आई थीं। अंग्रेजों ने संज्ञान में लिया तो सीमाई इलाकों में मर्थी, मझौली, सिसवां, बजहां, परिगवां सहित कुल दस कृत्रिम जलाशय बनवाए। सौ एकड़ में फैले जलाशयों की जल संग्रहण क्षमता सौ लाख घनफुट से ज्यादा है। अधिकांश राजमहल के भग्नावशेष से करीब हैं। पर्यावरण ज्ञानी व रतनसेन महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य के.पी.त्रिपाठी के अनुसार यह क्षेत्र विशाल पक्षी के प्रजनन व बढ़ने के लिए उत्तम है। वह यहां नीलगगन तले स्वच्छंद विचरण करते हैं। सैलानी दीवाने हैं इन फिजाओं के। गुरुवार को ताईवान के श्रद्धालुओं का एक दल स्तूप दर्शन के लिए आया। महल के ऊपर इन प¨रदों को उड़ान भरता देख वह दंग रह गए। कपिलवस्तु को भले ही पक्षियों का बेपनाह प्यार मिला हो, मगर उन्हें मिली सिर्फ उपेक्षा। गत वर्ष उनके संरक्षण के लिए दस लाख रुपये आए और इस वर्ष सिर्फ पांच लाख। बीस वर्ष पूर्व सिंचाई विभाग ने इन जलाशयों की साफ-सफाई व नौकायान के लिए सरकार से बीस करोड़ रुपये मांगे थे, पर मिला एक ढेला नहीं। बुद्ध विद्यापीठ महाविद्यालय के प्रबंधक राजेश शर्मा कई बार विदेशों का दौरा कर चुके हैं। कहते हैं अभी तक कोई ऐसा क्षेत्र नहीं देखा जो कपिलवस्तु से सुंदर हो। यहां एक साथ कई विशेषताएं देखी जा सकती है। गौतम की क्रीड़ास्थली को नमन करता हिमालय और वह पक्षी जो सिर्फ यहीं नजर आते हैं और कहीं नहीं। ऐसे में सरकार जलाशयों की सफाई व हरियाली पर ध्यान दे तो सारसों की उड़ान कायम रहेगी ही, यहां सैलानियों की कतार भी लगेगी।
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''सारसों के संरक्षण के लिए अभी सिर्फ पांच लाख रुपये आएं हैं। भविष्य में और आने की उम्मीद है। इसे इको जोन बनाया जाये, लिखा-पढ़ी चल रही है। सरकार की निगाह पड़ेगी तो निश्चित ही इस क्षेत्र की काया बदलेगी।''
जी.एस.सक्सेना
डीएफओ, सिद्धार्थनगर