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सूखा, सैलाब और अब चक्रवात

फसल देख बेबसी के आंसू बहा रहे किसान सिद्धार्थनगर :क्षेत्र का अन्नदाता इन दिनों मुश्किल में है। प्र

By Edited By: Published: Wed, 15 Oct 2014 09:44 PM (IST)Updated: Wed, 15 Oct 2014 09:44 PM (IST)
सूखा, सैलाब और अब चक्रवात

फसल देख बेबसी के आंसू बहा रहे किसान

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सिद्धार्थनगर :क्षेत्र का अन्नदाता इन दिनों मुश्किल में है। प्रकृति भी उनका एक के बाद एक ऐसा इम्तिहान ले रही है। पहले सूखे ने खूब परेशान किया, उसके बाद अगस्त महीने के सैलाब ने हजारों बीघे की फसल को बर्बाद कर दिया, रही-सही कसर मंगलवार को चक्रवात ने पूरी कर दी। तूफानी बारिश ने एक झटके में फसलों पर ऐसा कहर बरपाया कि किसान बेबसी के आंसू बहाने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहा है।

खरीफ सत्र में इंद्र देवता किसानों से रूठे नजर आए। क्षेत्र में बारिश कम होने के कारण पैदावार पर बुरा असर पड़ा। सूखे से निपटने के लिए किसान जद्दोजहद कर रहे थे, राप्ती नदी के तराई इलाके में सैलाब ने ऐसी दस्तक दी कि हजारों बीघे की फसल पानी सड़ कर बर्बाद हो गई। रमवापुर नेबुआ, धनोहरा, पेड़ारी, सोनखर डीह, बड़हरा, मछिया, डुमरिया, भरवठिया मुस्तहकम, बढ़या, बिथरिया, पेड़रियाजीत, पिकौरान, वीरपुर एहतेमाली व मुस्तहकम, पिकौरा, जुड़वनिया, तेनुई, चंदनजोत, नेहतुआ, गोनकोट, असनहरा, बामदेई, जूड़ी कुइंया, वेतनार आदि गांवों के किसान तो घर की पूंजी भी गवां बैठे थे। नदी के इस तरफ के लोग जैसे-तैसे निजी संसाधन से फसलों को बचाने की कोशिश कर रही रहे थे कि हुदहुद तूफान ने असर ऐसा दिखाया कि सैकड़ों बीघे फसल क्षण भी बर्बाद हो गई। सर्वाधिक नुकसान सरसो की फसल को हुआ, गन्ना, धान, अरहर, आलू की फसल भी जद में आई। गन्ना, अरहर, धान की फसलें जमीन पर लेट गई। किसानों में राम लौटन यादव ने बताया कि गन्ने की फसल तैयारी की कगार पर आ रही थी, परंतु एक झटके में सबकुछ खत्म हो गया। वंश गोपाल, गौरी ने बताया कि खेत में धान की पूरी की पूरी फसल ही लेट गई। पप्पू यादव, जयसरी, जगदीश चौहान का कहना है कि तिलहन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि चाहकर भी फसल को सुरक्षित नहीं बचाया जा सकता है।

मंगलवार का चक्रवात गन्ना, सरसो, तिलहन, धान, आलू आदि फसलों के लिए खतरनाक रहा। जो फसलें बर्बाद हो गई, उसमें किसानों के हाथ ऐसा कुछ बचा ही नहीं है, कि वह कुछ कर सके। प्राकृति के आगे किसी की नहीं चलती। इस बार वास्तव में किसानों को बड़ी-बड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ा।

डा. मारकण्डेय सिंह,

कृषि वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र सोहना


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