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बूढ़ी राप्ती ने लीला, उसने दिया पुर्नजन्म

सिद्धार्थनगर : हर साल सैलाब के साथ आखों में तबाही वह दृश्य ताजा हो उठता कि कलेजा कांप उठे। शोहरतगढ़

By Edited By: Published: Thu, 02 Oct 2014 09:41 PM (IST)Updated: Thu, 02 Oct 2014 09:41 PM (IST)
बूढ़ी राप्ती ने लीला, उसने दिया पुर्नजन्म

सिद्धार्थनगर : हर साल सैलाब के साथ आखों में तबाही वह दृश्य ताजा हो उठता कि कलेजा कांप उठे। शोहरतगढ़ तहसील के ग्राम मुर्गहवा के नागरिकों के यह मंजर और भी भयजदा हो जाता है। उसने सिर्फ तबाही ही नहीं देखी है, बल्कि बूढ़ी राप्ती का वह रूप भी देखा है, जब उसने समूचे गांव को लील लिया। यह जिंदा है तो पूर्व मंत्री दिनेश सिंह की बदौलत। मछुआ आवास व प्लेटफार्म तैयार कर उन्होंने इस गांव को फिर से बसा दिया।

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संसार बुद्धभूमि एक अनोखी धरा है। वह आग से बच जाती है, मगर पानी से जल उठती है। प्रत्येक वर्ष सैलाब से यहां के नागरिकों को बीस करोड़ से अधिक का क्षति पहुंचाता है। जलमग्न खेत एक सीजन का पूरा गल्ला चट कर जाते हैं। नदियों ने तांडव मचाया तो पूरे गांव के अस्तित्व पर ही संकट उत्पन्न हो जाता है। मुर्गहवा ने यह तबाही देखी ही नहीं बल्कि महसूस भी किया है। बूढ़ी राप्ती ने इसके साथ एक बार नहीं बल्कि दो बार क्रूर मजाक किया। गांव के बुजुर्गो की मानें तो पहले यह गांव नदी के उत्तर था। 1980 में बाढ़ आई तो आधा गांव उसमें समा गया। 18 वर्षो में गांव फिर से हरा-भरा दिखने लगा था तो 1998 की बाढ़ में तो सब कुछ उजड़ गया। पूरे गांव का वजूद ही खत्म हो गया। बंधे व पेड़ पर शरण लेकर ग्रामीणों ने अपनी जान बचायी। सात वर्षो तक गांव बंधे पर ही रहा। पूर्व विधायक व मंत्री स्व.दिनेश सिंह इस गांव को बेहद करीब से जानते थे, मगर मजबूरी यह थी कि वह करें तो क्या करें। 2005 में वह मंत्री हुए तो उन्होंने पहला काम किया कि बांध के उत्तर इस गांव के लिए एक प्लेटफार्म की व्यवस्था करायी। अब समस्या एक अदद छत की थी। झोपड़ियां डाल कर ग्रामीण यहां रहने तो लगे थे, मगर घर बनवाने की व्यवस्था न थी। उनकी जमीनें भी नदी के दूसरी तरफ। जिले में शायद ही कोई गांव ऐसा हो, जिसे सटी एक मंडी भी जमीन उस गांव की न हो। पूर्व मंत्री कहीं भी रहें हो, इस गांव के लिए सदैव उनके मन में एक कसक बनी रही। मत्स्य मंत्री होने पर उन्होंने यहां के लिए लगभग 40 आवास दिए। 49 घरों के इस टोले में ग्रामीण के दिलों से तीन दशक बाद भी सैलाब का भय दूर नहीं हुआ। आज भी वह लहरों को देख कांप उठते हैं। गांव में सड़क नहीं है। नाली की व्यवस्था नहीं है। पूर्व बीडीसी अब्दुल कादिर इस गांव के तो नहीं हैं, मगर वह इसे जानते खूब हैं। वह कहते हैं कि दिनेश सिंह यहां के लिए नेता व मंत्री नहीं, बल्कि नसीब थे। गांव के सुभाष कुमार कहते हैं कि समय उनसे एक मसीहा छीन लिया। चिन्नीलाल, बेचन अली व मुन्नी लाल कहते हैं कि दिनेश सिंह की बदौलत उन्हें किसी तरह से सिर छुपाने की जगह मिल गई है। अब इससे बेहतर व्यवस्था तभी हो पाएगी, जब दूसरे दिनेश पैदा होंगे। गांव की सुगना देवी कहती हैं कि वह वर्तमान विधायक व उनकी पत्‍‌नी लालमुन्नी सिंह इसे लेकर फिक्रमंद तो बहुत हैं, मगर वह कर भी क्या सकती हैं, महिला जो ठहरीं।

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''मुर्गहवा का पुर्नजन्म मेरे पति की देन हैं। ऐसे में वह उस गांव को भला कैसे भुला सकती हूं। क्षेत्र की जनता ने उन्हें विकास पुरुष का नाम दिया था। उनकी गैर मौजूदगी में भी उसे चरितार्थ करने का प्रयास कर रही हूं। ऐसे में मुर्गहवा के लिए विशेष प्रयास कर उसकी बुनियादी सुविधाएं बहाल की जाएंगी।''

लाल मुन्नी सिंह

विधायक, शोहरतगढ़


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