मां महाकाली स्थान गालापुर
जागरण संवाददाता, सिद्धार्थनगर : तहसील मुख्यालय से करीब दस किमी दूर उत्तरी छोर पर स्थित वटवासिनी मह
जागरण संवाददाता, सिद्धार्थनगर :
तहसील मुख्यालय से करीब दस किमी दूर उत्तरी छोर पर स्थित वटवासिनी महाकाली स्थान लोगों की अपार श्रद्धा व भक्ति का प्रतीक है। विश्वास है कि वटवासिनी महाकाली स्थान गालापुर से कभी कोई खाली हाथ नहीं जाता। सच्ची श्रद्धा से मांगी गई, मनौती मा महाकाली अवश्य पूरी करती हैं। दो हजार वर्ष पूर्व में कलहंस वंशज के राजा केशरी सिंह ने ब्राह्माणों को गोंडा जनपद के खोरहश नामक स्थान से महाकाली को लाने के लिए भेजा था। वहां घोर तपस्या के उपरांत महाकाली जी ने साक्षात दर्शन देकर आने के लिए तैयार हुईं। पुरोहितों ने कहा कि मुझे कैसे भान होगा कि मां मेरे साथ चल रही हैं। तब उन्होंने कहा कि सामने जो मदार का पेड़ है, उसे उखाड़ कर सिर पर रख लो। पुरोहित मदार का वृक्ष सिर पर रखकर चल दिए। जब वह राजा केशरी सिंह के भवन के करीब पहुंचे तो सूचना भेजी कि महाकाली को लेकर आ गए हैं। उन्हें कहां स्थापित करें। इस दौरान दरबार के कुछ चाटुकारों ने राजा से मजाक भरे लहजे में बताया कि महाराज पुरोहित सर पर मदार का पेड़ रख उसे महाकाली बता रहे हैं। यह सुन रोजा क्रोधित हो गए और वहीं रख देने का संदेश दिया। राजा के उपेक्षा निर्देश से क्रोधित होकर वही पेड़ उतार दिया। जैसे ही पेड़ का स्पर्श जमीन से हुआ, एक भयंकर गगन भेदी ध्वनि के साथ जमीन फट गई। वहां एक सुंदर वट वृक्ष प्रकट हुआ, जो आज भी मौजूद है। जिस स्थान का नाम वर्तमान में गालापुर है।
कैसे पहुंचे मां के दरबार
डुमरियागंज से बढ़नी रोड पर पांच किमी दूरी पर स्थित चौखड़ा से पूरब तरफ 4 किमी चल कर विख्यात स्थान गालापुर पहुंचा जा सकता है। जाने के लिए बस, टैंपो, रिक्शा व निजी संसाधन से आसानी से जाया जा सकता है।
सबकी मन्नतें होती है पूरी
स्थान व्यवस्थापक ठाकुर प्रसाद मिश्रा ने बताया कि यहां जो भी आता है, उसकी मन्नतें पूरी होती है। नवरात्र पर श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो इसका पूरा ध्यान रखा जाता है। स्थान की साफ सफाई में हर समय कार्यकर्ता लगे रहते हैं।