मुसीबत का सबब यहां राप्ती
सिद्धार्थनगर : भले ही राप्ती की धारा यहां की भूमि के लिए रक्त संचार वाहिनी का काम करती हों, लेकिन क्षेत्र के एक दर्जन गांवों के लिए तो यह मुसीबत का सबब है। बरसात कम होते ही कटान व बाढ़ से नष्ट हुई फसलें खुद ब खुद इसकी गवाही कर रहीं हैं। यही नहीं अब तो संक्रामक बीमारियों का खतरा भी मंडराने लगा है।
राप्ती नदी व बांध के बीच स्थित बनकटा, किशुनपुरवा, सेहरी घाट, बघनी नानकार, फुलवापुर, खदरी, हरिद्वार आदि गांवों में हजारों एकड़ धान की फसल सड़कर नष्ट हो चुकी है। गांव वाले अब वर्ष भर के निवाले को लेकर फिक्रमंद हैं। गांव व कृषि भूमि की प्रतिवर्ष कटान कर अपने आगोश में लेती नदी से वह काफी द्रवित हैं। बाढ़ के बाद अब इन्हें डायरिया, चेचक व वायरल जैसी बीमारियों का भय भी सताने लगा है। मगरगाहा निवासी राहुल कहते हैं कि कटान से बचाव के लिए हर साल शासन प्रशासन से गुहार लगाई जाती है पर आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिलता। प्रतिवर्ष की कटान से इनकी भी डेढ़ बीघे कृषि योग्य भूमि नदी के कोख में पहुंच चुकी है। खदरी निवासी जितेन्द्र सिंह ने बताया कि पिछले एक दशक में हमारे गांव की पचास बीघे से अधिक जमीन नदी में जहां विलीन हो चुकी है। खदरा निवासी व प्रधान राम शब्द ने कहा कि हर वर्ष फसलों का नष्ट होना आम बात हो गई है। संक्रामक बीमारियों से कई बच्चे भी काल के गाल में जा चुके हैं। बघनी निवासी पाटन यादव कहते हैं हमारे गांव में तो इस बार नदी ने बहुत तांडव किया। कटान ऐसी हुई है मानों नदी गांव को अपने बाहों में समेटने को बेताब है।
अन्य ग्रामीणों में जगदीश पाठक, जग्गी लाल यादव, गिरीन्द्र सिंह, छवि लाल साहनी, गणेश मिश्र आदि ने कहा कि हमें तारणहार का इंतजार है।
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'' नदी व बांध के बीच बसे इन गांवों का मैं दौरा कर चुका हूं। इनकी समस्या के स्थायी समाधान हेतु रोडमैप शासन को भेज दिया गया है।''
योगानंद पांडेय
एसडीएम, बांसी