यहां हरियाली के पेट में तप रही रेत
सिद्धार्थनगर : इस लगन में रेत की तपन है। यहां किसानों के तकदीर का फैसला राप्ती करती है। उनके प्रभाव में वह कभी बर्बाद होते हैं तो कभी चार माह में साल भर का खर्चा निकल आता है, लेकिन धरती-पुत्र तो नफे-नुकसान की सोचते ही नहीं है। वह तो बस गंगा मइया का नाम लेकर उतर आते हैं तपती रेत पर 'दरिया के सीने पर तरबूज की खेती करने के लिए'। हर कदम पर सूरज की आग का दाग लिये वह तो इतिहास रचते हैं 'हरियाली की पेट में तपती रेत का'।
बांसी नगर स्थित राप्ती पुल से यह नजारा स्पष्ट देखा जा सकता है। शीशे सी चमकती रेत पर फैली हरियाली किसानों के दरियादिली का बखान कर रही है। तरबूज, खीरा, लौकी व करैला आदि की खेती करने वाले किसानों के लिए यह रेत चार माह के लिए वरदान बन जाती है। बस गंगा मईया की कृपा रहे तो चार माह की इस खेती से किसान वर्ष भर का खर्च निकालते हैं। प्रतिवर्ष यहां बलरामपुर, बहराइच, श्रावस्ती जनपदों को भी खीरा, ककड़ी व तरबूज की सप्लाई होती है।
इस बार भी दरिया के सीने पर तरबूज की खेती ने तेज धूप से तप रही रेत को हरियाली की चादर से ढक दिया है। नगर से सटकर बहने वाली राप्ती के तट हरे भरे खेतों में तब्दील हो चुके हैं। आधा दर्जन वार्ड के लिए वर्ष भर की जीविका का सहारा यही है। इसमें किसान हाड़तोड़ मेहनत कर रेत से सोना उगाने की जतन करता रहता है। गंगा मां की कृपा पर इनका परिश्रम रंग यदि लाता है तो इनके सारे मांगलिक कार्य इसी से संपन्न हो जाते हैं। खीरे की खेती किये किसान पारस का कहना है कि बाबू यह खेती हम लोगों के लिए जुए के समान है। समय से पूर्व नदी में पानी न आया तो हमें वर्ष भर के खर्चे की कोई कमी नहीं रहती। किसान भीखू ने कहा कि हम लोग यह खेती गंगा मईया की पूजा अर्चना करने के उपरांत ही करते हैं। कभी कभी इनकी नाराजगी से हम कर्जदार हो जाते हैं तो कभी कर्ज से हमें मुक्ति भी मिल जाती है। किसलवाती ने बताया कि इसी खेती पर ही हमारी बेटी की शादी निर्भर है यदि नदी में पानी नहीं बढ़ा तो हम धूम धाम से शादी कर लेंगे। मोहम्मद जिकरी राइनी का कहना था कि हम इस खेती के लिए छह माह पूर्व से तैयारी करते हैं यदि सबकुछ ठीक रहा तो मेहनत रंग जरूर लाती है।