करीबी संबंधों में विवाह अनेक बीमारियों की वजह
शाहजहांपुर : भारत दुनियां की सर्वाधिक जैविकीय विविधता वाला देश है। यहां सामाजिक संरचना के कारण बहु
शाहजहांपुर : भारत दुनियां की सर्वाधिक जैविकीय विविधता वाला देश है। यहां सामाजिक संरचना के कारण बहुत अधिक जैविकीय प्रजातियां पाई जाती हैं। जो दुनिया के मानव विज्ञानियों के लिए अध्ययन का विषय हैं। भारत के लोगों में भाषा, संस्कार, सामाजिक संरचना, पहनावे आदि अनेक स्तरों पर
अंतर दिखाई देते हैं। यह अंतर भारत की आनुवंशिक विविधिता को बचाये हुए हैं। जिसके कारण दुनियाभर के जेनेटिक्स का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों के लिए भारत सोने की खान जैसा है। यह विचार सीसीएमबी हैदराबाद के पूर्व निदेशक एवं भारत में जेनेटिक ¨फगर ¨प्र¨टग के जनक माने जाने वाले पद्मश्री से सम्मानित प्रो. लाल जी ¨सह ने व्यक्त किए। प्रो. ¨सह स्वामी शुकदेवानंद स्नातकोत्तर विद्यालय में रसायन विज्ञान विभाग की ओर से आयोजित एक दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय कॉफ्रेंस के मुख्य अतिथि के रूप में आनुवंशिक तकनीकी क्षेत्र में हुए नवाचार के विषय में बोल रहे थे।
रसायन, जैव, व पर्यावरण विज्ञान के क्षेत्र में नवाचार विषय पर आयोजित इस सेमिनार में प्रो. लाल आगे कहा कि अफ्रीका से 135 से 75 हजार साल पहले पानी की कमी के चलते वहां के निवासी दुनिया के विविध
क्षेत्रों की ओर पलायन कर गए। उन्हीं की एक शाखा भारत के उत्तर में और दूसरी शाखा भारत के दक्षिण में आई। उनमें से कुछ लोग अंडमान निकोबार द्वीप समूह में बस गए। आज की दुनिया की सबसे ज्यादा शुद्ध आनुवंशिकता के लक्षण अंडमान निकोबार के निवासियों में पाए जाते हैं। दुनिया से अलग-थलग होने के चलते आपस में वैवाहिक सम्बन्धों के कारण वे लगातार खत्म होते चले जा रहे हैं। भारत में भी इसकी विशिष्ट सामाजिक संरचना और जातीय स्तरीयकरण के चलते जैविकीय विविधता बहुलता में पायी जाती है। भारत में 4635 से अधिक आनुवांशिक जीनोम कोड पाए जाते हैं। हमारे देश में 532 से अधिक जनजातियां हैं, वे अपनी भाषा, पहनावे, संस्कार और संस्कृति में काफी भिन्न हैं। 60-50 हजार साल पहले पश्चिम अफ्रीका से लोग भारत के विभिन्न क्षेत्रों में आए यही कारण है कि पश्चिम बंगाल के राजवंशी और केरल के आदिवासियों में जैविकीय आधार पर समानता मिलती है। इस प्रकार उनकी जड़ें एक ही जीन्स में हैं। उन्होंने कहा कि करीब के सम्बन्धों में विवाह करने पर बीमारियों की सम्भावना बढ़ जाती है। भारत में अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहन मिलना
चाहिए। जिससे बीमारियों आदि का खतरा कम होगा। वहीं विशिष्ट अतिथि टर्की के डॉ. अहमद अनवर ने कहा खाद्य क्षेत्र में अल्ट्रासाउड तकनीक का इस्तेमाल कर न केवल उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। बल्कि उत्पादित वस्तुओं को सुरक्षित रखने और लोगों तक इन्हें पहुंचाने में सहायता मिल सकती है। आज खाद्य
उत्पादन का अधिकांश हिस्सा हम सुरक्षित नहीं रख पाते जिसके कारण इसकी लागतें बढ़ती हैं और अन्य मौसमों में इसकी उपलब्धता नहीं हो पाती। इस तकनीक का इस्तेमाल कर सुदूर क्षेत्रों में फल, सब्जियों आदि को सुरक्षित पहुंचाया जा सकता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री चिन्मयानंद ने कहा कि रोज नई बीमारियां उभर रही हैं जिनका निदान चिकित्सा क्षेत्र के पास नहीं है। इन नई बीमारियों के कारण और निदान का अध्ययन आनुवंशिकता के आधार पर किया जा सकता है। आज आनुवंशिकता के अध्ययन के आधार पर विज्ञान यह बताने में सक्षम है कि व्यक्ति को भविष्य में क्या बीमारियां होगीं? आज गर्भनाल और उसके द्रव्य को सुरक्षित रखकर व्यक्ति में भविष्य में होने वाली बीमारियों का इलाज उससे किया जा सकता है।
जींस के अध्ययन ने आज मानवीय विकास की बहुत सारी अनसुलझी पहलियों को सुलझा दिया है।
इसी क्रम में समापन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए विल्सन कालेज मुम्बई के प्रो डीवी प्रभु ने कहा पर्यावरण हमारे जीवन का आधार है। पर्यावरण का विनाश हमारे विकास की उपज है। हमें अपने जीवन शैली सुधारते हुए इसके लिए प्रयास करने होंगे। विशिष्ट अतिथि डॉ ज्योत्सना चतुर्वेदी, डॉ प्रियव्रत द्विवेदी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। प्रथम सत्र में प्राचार्य डॉ एके मिश्र ने अतिथियों का स्वागत व आभार सेमिनार संयोजक डॉ आलोक ¨सह ने व्यक्त किया। संचालन शिखा तिवारी ने किया।
सेमिनार के सफल आयोजन में डॉ. प्रभात शुक्ला, डॉø अनुराग अग्रवाल, डॉ. अजीत चारग डॉ. संजय बरनवाल, डॉ. शालीन ¨सह, डॉ. बृजनन्दन ¨सह, डॉ. विजय तिवारी, डॉ मीना शर्मा, डॉ एमके वर्मा, डॉ राजबहादुर यादव, डॉ बरखा सक्सेना, डॉ निधि त्रिपाठी, डॉ राजकमल रस्तोगी, डॉ उस्मान, अखिलेश, केशव, शशांक गुप्ता, अनूप का विषेष योगदान रहा। समापन सत्र का संचालन अपूर्वा शर्मा ने तथा अन्त में आभार प्राचार्य डॉ. अवनीश मिश्र ने व्यक्त किया।
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इन्हें मिला सम्मान
इस अवसर पर जीआईएपी अवार्ड से विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए बनारस की डॉ. ज्योत्स्ना चतुर्वेदी, टर्की डॉ. हसन अली, डॉ. हसन इब्राहीम, डॉ. आदर्श पांडेय को सम्मानित किया गया। सामुदायिक सेवा के क्षेत्र में यह
पुरस्कार रसायन ओलम्पियार्ड से जुडे़ मुम्बई के डॉ डीवी प्रभु, मिर्जा अली अख्तर बेग, डॉ. विकास खुराना को प्रदान किये गये। सेमिनार में पढ़े गए शोध पत्रों पर आधारित सोविनियर का विमोचन भी अतिथियों ने किया।
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इनके शोधपत्र को मिला पुरस्कार
समापन सत्र में पढ़े गये शोधपत्रों के बीच विभिन्न तकनीकी सत्रों के लिए प्राध्यापक वर्ग से डॉ. कहकशां बेगम, केशव शुक्ल, डॉ. अनिल कुमार ¨सह तथा शोधार्थी वर्ग से विवेक सक्सेना, गिरधारी चौरसिया, महेश गुप्ता के शोध पत्रों को सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र के रूप में पुरस्कृत किया गया।