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मौत देख जागा समाजसेवा का जज्बा

शाहजहांपुर : मुंबई में आतंकी हमले के वक्त सेना के ऑपरेशन में शामिल स्पेशल एक्शन ग्रुप के कमांडो अनिल

By Edited By: Published: Wed, 26 Nov 2014 12:17 AM (IST)Updated: Wed, 26 Nov 2014 12:17 AM (IST)
मौत देख जागा समाजसेवा का जज्बा

शाहजहांपुर : मुंबई में आतंकी हमले के वक्त सेना के ऑपरेशन में शामिल स्पेशल एक्शन ग्रुप के कमांडो अनिल सिंह चौहान ने जब साथियों को अपने सामने मरते-घायल होते देखा तो उनके जीवन का मकसद ही बदल गया। अनिल सिंह चौहान मुंबई हमले के बाद जब भी महीने भर की छुट्टी में आते हैं तो निश्शुल्क नेत्र परीक्षण शिविर लगवाने के साथ ही गरीबों को कपड़े व कंबल समय -समय पर वितरित करते रहते है। अनिल कहते हैं कि मौत को इतने करीब से महसूस करने के बाद असार संसार का सार समझ आ गया है।

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शाहजहांपुर शहर के आनंदपुरम् में रहने वाले अनिल चौहान 13 साल फौज की नौकरी में हो चुके हैं लेकिन, मुंबई हमले के बाद उनके जीवन का मकसद बदल गया। होटल ताज का ऑपरेशन खत्म हो गया लेकिन लाशों के ढेर, साथियों की मौत और जख्मों ने जीवन के सार को समझा दिया। कई दिन तक मन व्यथित रहा। फिर सामाजिक जिम्मेदारियों का बोध हुआ। छुटटी लेकर जब अनिल घर आए तो उन्हें नया मकसद मिल चुका था। उन्होंने शुरुआत की गरीबों को आंखों रोशनी देने की। इसके लिए उन्होंने आइ चेकअप कैंप लगवाने शुरू किए। लोगों को कंबल-कपड़े आदि बांटना, आर्थिक इमदाद करना सब दिनचर्या का हिस्सा हो गया। अनिल चौहान कहते हैं कि जब तक सेना में हूं, देश सेवा करूंगा, फिर समाजसेवा। युद्ध से विनाश होता है, शांति से विकास।

ऑपरेशन ताज की कहानी कमांडो की जुबानी

एनएसजी कमांडो अनिल सिंह चौहान बताते हैं कि 26 नवंबर को वह गुड़गांव के मानेसर कैंप में थे। रात बारह बजे मुंबई में हमले का समाचार आया। तुरंत हथियार-बैग लेकर हमारा 180 लोगों का दल दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचा जहां से एयरफोर्स के विशेष विमान से हम मुंबई पहुंचे। रास्ते में किसी साथी को अनुमान नहीं था कि हम इतने बड़े मिशन का हिस्सा बनने जा रहे हैं। उम्मीद थी कि दो-चार घंटे में काम खत्म हो जाएगा। मुंबई एयरपोर्ट से हमें पुलिस हेडक्वार्टर लाया गया। यहां पर हम टीमों में बंट गए। हमारी टीमें होटल ताज, ओबराय व नरीमन प्वाइंट के लिए रवाना हो गई। मैं मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के साथ ताज होटल के लिए निकला। होटल ताज से थोड़ा पहले जब हमारी गाड़ी पहुंची तो फायरिंग व चीख-पुकार सुनाई देनी शुरू हो गई। कोई अंदाजा नहीं था कि दुश्मन कहां छिपा बैठा है। हां, इतना जरूर मालूम था कि ताज में चार आतंकी छिपे होंगे। ग्राउंड फ्लोर के रिसेप्शन के पास डाइनिंग हॉल में चारों ओर खून व लाशें बिखरी हुई थीं। हम जान चुके थे कि हमारा सामना दुर्दात आतंकियों से हैं। रणनीति के मुताबिक स्केच के जरिये सर्च ऑपरेशन शुरू हुआ लेकिन सिविलियन की ओट में छिपे आतंकियों को मारना आसान नहीं था। आतंकवादियों को सर्च करते हुए हम तीसरी मंजिल पर पहुंचे। यहां एक कमरे का दरवाजा खोला तो अंदर से मानों गोलियों की बारिश हो गई। फायरिंग में मेजर संदीप उन्नीकृष्णन शहीद हो गए, राजस्थान अलवर के सुनील जाधौ, मनीष बुरी तरह से घायल हो गए। मैं और मेरा दूसरे साथी सुनील यादव ने संभलकर बंदूक का मुंह खोल दिया। तब तक बैकअप टीम ने भी मोर्चा संभाल। यहां पर दो आतंकी ढेर कर दिए। मिशन में हवलदार गजेंद्र सिंह भी शहीद हो गए थे। मेरी टीम में मुझे शारीरिक रूप से क्षति नहीं पहुंची थी लेकिन रक्तपात और साथियों के शव देखकर मन व्यथित था।

पत्‍‌नी को नहीं बताया

घर में बीवी-बच्चे सब थे लेकिन इतने बड़े मिशन में जाने से पहले किसी को नहीं बताया। मन में बस एक जुनून था तिरंगा लहराएंगे, या उसी में लिपट कर वापस आएंगे। हारना नहीं है हालांकि, पत्‍‌नी को किसी तरह मालूम हो गया था जिसके बाद पूरा परिवार ऑपरेशन के खत्म होने तक भगवान से आरजू करता रहा।


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