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महंगाई से न मोड़ो मुंह, छीन उठेगी थाली

संतकबीर नगर: अमूमन हर चुनाव और हर जनसभा में नेता गरीब और किसानों के हित की बात करना नहीं भूलते। गरी

By Edited By: Published: Tue, 17 Jan 2017 11:04 PM (IST)Updated: Tue, 17 Jan 2017 11:04 PM (IST)
महंगाई से न मोड़ो मुंह, छीन उठेगी थाली
महंगाई से न मोड़ो मुंह, छीन उठेगी थाली

संतकबीर नगर: अमूमन हर चुनाव और हर जनसभा में नेता गरीब और किसानों के हित की बात करना नहीं भूलते। गरीबों का रहनुमा बनने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। महंगाई जब लोगों को रुलाती है तो उससे गरीबों और मध्यम तबका को राहत दिलाने के बजाय एक-दूसरे पर इसके लिए आरोप मढ़ते हैं। आरोप-प्रत्यारोप के बीच गरीब तबका चावल, आटा, अरहर दाल, हरी सब्जी आदि महंगाई की मार झेलते हैं। महंगाई में जब आलू, मटर दाल का सहारा लेते हैं तो इसकी कीमतों में भी उछाला आ जाता है। गरीबों की जुबां भले ही बंद रहती है लेकिन इनके मन की आवाज यही कहती है, महंगाई से न मोड़ो मुंह वर्ना थाली छीन उठेगी।

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संतुलित आहार मिलता तो न आती यह नौबत

जनपद में दिसंबर-2016 में चले वजन दिवस अभियान में 0 से 5 साल के 1,80,778 में से 1,73,027 यानी 95.71 फीसद बच्चों का वजन तौला गया था। इसमें से सामान्य(हरा)-1,27,754, कुपोषित(पीला)-28,073 तथा अति कुपोषित(लाल) श्रेणी के 17,037 बच्चे चिन्हित हुए थे। यदि इन्हें संतुलित आहार मिलता तो शायद 17,037 बच्चे अति कुपोषित न होते। इसके पीछे मुख्य कारण गरीबी और जरूरी खाद्य वस्तुओं में पड़ने वाली महंगाई है।

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गरीबों को याद है वो दिन.

गरीब और मध्यम तबके को वह दिन याद है जब अरहर दाल की कीमत आसमान छू रही थी। वर्ष 2014 में 75 रुपये किलो बिकने वाली अरहर फूल की दाल वर्ष 2015 में 15 अगस्त से 10 सितंबर के बीच 125 रुपये, इसके बाद 145 रुपये, 10 अक्टूबर तक 165 रुपये तथा इसके बाद 175 रुपये प्रति किलो हो गई थी। ऐसे समय में मटर दाल ही इनका सहारा बना था। हरी सब्जी की कीमतों में उछाल आ जाने से आलू इनका हमसफर बना था। जब यह तबका इसका सेवन अधिक करने लगा तो इसकी कीमत भी महंगी होने लगी।

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इतिहास गवाह, महंगाई से चली गई सत्ता

चौदहवें लुई के शासनकाल में आलू की कीमत में यकायक वृद्धि हुई तो फ्रांस की जनता सड़कों पर आ गई थी। राजशाही का खात्मा हो गया और लोकतंत्र की स्थापना हुई। सत्ता और व्यवस्था परिवर्तन के लिए महंगाई ही कारण रहा। प्याज की कीमतों से आम जनमानस का आंसू छलका तो दिल्ली से भाजपा की सत्ता चली गई और वहां शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार आ गई थी। यह भी महंगाई की ही देन थी।

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महंगाई ने कभी रुलाया तो कभी चौंकाया

वर्ष : चावल महीन: आटा : अरहर दाल:

जनवरी-2017: 25.00 : 20.00: 85.00

जनवरी-2016: 35.00 : 20.00: 130.00

जनवरी-2015: 24.00 : 16.00: 80.00

जनवरी-2014: 25.00 : 16.00: 70.00

(गोला बाजार-खलीलाबाद के कारोबारी के अनुसार)

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जनपद की ये है स्थिति

जनपद बना - 06 सितंबर 1997 को

वर्तमान में कुल आबादी -लगभग 18 लाख

विधानसभा क्षेत्र -तीन

संसदीय क्षेत्र -एक

मनरेगा मजदूर - 03.09 लाख

श्रम विभाग में पंजीकृत मजदूर-लगभग 20 हजार

किसान -लगभग तीन लाख

खरीफ की खेती -89 हजार हेक्टेयर

रबी की खेती -92 हजार हेक्टेयर

जायद की खेती -4,066 हेक्टेयर

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ये हैं मतदाता

विधानसभा - पुरुष - महिला - अन्य - कुल वोटर

मेहदावल - 2,40,450-1,95,883- 26 -4,36,359

खलीलाबाद - 2,33,808-1,92,930- 12 -4,26,750

धनघटा(सुरक्षित)- 1,93,602 -1,63,178- 18 -3,56,798

योग - 6,67,860 -5,51,991- 56 -12,19,907

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