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संपूर्ण जगत भगवान का ही स्वरूप

संतकबीर नगर : जीव का प्रभुमय हो जाना ही ध्यान और भक्ति की पराकाष्ठा है। प्रभु का ध्यान करते समय संस

By Edited By: Published: Tue, 06 Dec 2016 11:43 PM (IST)Updated: Tue, 06 Dec 2016 11:43 PM (IST)
संपूर्ण जगत भगवान का ही स्वरूप

संतकबीर नगर : जीव का प्रभुमय हो जाना ही ध्यान और भक्ति की पराकाष्ठा है। प्रभु का ध्यान करते समय संसार का विस्मरण

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हो जाता है। ध्यान में तन्मयता के चलते 'मेरापन' मिट जाता है। ध्याता, ध्यान और ध्येय एक बन जाते हैं जो जीव की मुक्ति का मार्ग प्रदान करते हैं। संपूर्ण जगत भगवान का ही स्वरूप है। यह बातें मंगलवार को नाथनगर के अजांव में चल रही भागवत कथा में आचार्य धरणीधर ने कहीं। उन्होंने कहा कि गोपियां भी श्रीकृष्ण का ¨चतन करते हुए कह रही हैं कि अरी सखी मैं ही कृष्ण हूं । आचार्य रामनारायण धर द्विवेदी, आचार्य सच्चिदानंद मिश्र, राजाराम दूबे, विनोद दूबे, राकेश

दूबे, बृजेश दूबे, पारसनाथ तिवारी, रामजी मिश्र, श्यामचंद्र चौधरी, भालचंद यादव, रामचंद्र यादव, ¨वध्याचल दूबे, रामअनुज ओझा आदि उपस्थित रहे।

महेश्वरपुर में आयोजित नौ दिवसीय श्री राम महायज्ञ के तीसरे दिन कथा व्यास वैराग्यानन्द महाराज ने श्रोताओं को सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हुए कहा कि मानव जीवन सभी योनियों में सर्व श्रेष्ठ माना जाता है। सर्वश्रेष्ठ जीवन को सफल बनाने के लिये समय समय पर मानव को सन्त वचनों द्वारा बताए हुए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। धर्म मार्ग पर चलकर मानवता की रक्षा की जा सकती है। इस अवसर पर यजमान सुरेन्द्र ¨सह, यज्ञाचार्य राकेश जी, रामभजन निषाद, गोरखनाथ मिश्र, इंद्रजीत ¨सह, रामनवल पाठक, कुंवर ¨सह सहित तमाम लोग मौजूद थे।


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