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रहनुमा की इबादत में अता की नमाज

संतकबीर नगर : मुकद्दस रमजान माह के तीसरे शुक्रवार को रोजेदारों ने नमाज अता कर रहमत की दुआएं मांग

By Edited By: Published: Fri, 24 Jun 2016 10:46 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jun 2016 10:46 PM (IST)
रहनुमा की इबादत में अता की नमाज

संतकबीर नगर : मुकद्दस रमजान माह के तीसरे शुक्रवार को रोजेदारों ने नमाज अता कर रहमत की दुआएं मांगी। अट्ठारहवें रोजा पर तरक्ककी एवं बरकतों की दुआएं मांगी। मस्जिदों में रोजेदारों से जुटने से रौनक रही। अब दूसरा अशरा पूरा होने में दो दिन शेष हैं। इसके बाद सोमवार से 21 वें रोजा से तीशरा आशरा प्रारंभ होगा।

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रमजानुल मुबारक इस्लामी त़कदीम का सबसे अजीम महीना है। साल के बारह महीनों में कोई महीना इसकी हमसरी नही कर सकता है और न ही किसी महीने के बारे फजायल कुरआने मजीद और हदीस पाक में आए है, जो फजायल के इस महीने के बारे में वारिद है। इस पाक माह में इबादत करने वालों पर अल्लाह तआला की कृपा बनती है।

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जकात अदायगी में जिम्मेदारी जरूरी

संतकबीर नगर : जकात हर साहेब हैसियतदार मुसलमा का फर्ज है। साहेब हैसियत दार वह है जिसके पास साढ़े सात तोला सोपा या फिर बारह तोला चांदी है या इसकी कीमत की रकम है। इसे रखे एक वर्ष या उसे अधिक का समय बीत गया हो। ऐसे मुसलमान को जकात निकालना जरूरी है। इस हिस्से की रकम गरीब औश्र मिस्कीम को देना आवश्यक है। इस पर गरीबों का हक भी बनता है। जकात फकीर, मिस्कीन, कर्मचारी जो जकात के लिए लगाएं गए है, अल्लाह की राह में, किसी को छुड़ाने या मदद में, परेशान मुशाफिर को अदा की जा सकती है। अगर कोई गरीब सीधे तौर पर जकात की रकम लेने से हिचक रहा है तो दूसरे तरीके से भी मदद की जा सकती है। मस्जिदों के बाहर, सड़क आदि पर कुछ पैसा देना जकात नहीं है। हिसाब से रकम का हिस्सा देना ही सही मायने में अदायगी है।

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जरुरतमंदों में पहुंचाएं जकात की रकम

- रमजान का दूसरा आशरा आखिरी पड़ाव पर है। ऐसे में जकात की अदायगी के लिए करीबी की तलाश शुरु हो गई है। कोई अपने गरीब रिश्तेदार को तरजीह दे रहा है तो कोई पड़ोसी को। अलविदा के नमाज से पूर्व ही हैसियतदार गरीब की खोज शुरू हो गई है। इसी के चलते नगरीय इलाकों में रहने वाले हैसियतदार गरीबों की तलाश में मुआयता कर रहें हैं। है। जरुरतमंद स्वयं उन तक पहुंच रहे हैं, कुछ ऐसे भी हैं, जो जकात की रकम निकालने से पहले उलेमा से इस बारे में पूरी जानकारी हासिल कर कर रहे हैं। मौलानाओं के साथ मस्जिदों में हर रोज जकात से जुड़े मसले की जानकारी के लिए लोग आ रहे हैं।

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अदायगी का खास मौका

जकात अदायगी के लिए रमजान खास मौका है। उलेमा के मुताबिक हक वालों तक जकात की रकम पहुंचे तो बेहतर होगा। मौलाना अशफाक, सेराज अहमद, मुफती इसरार ने फरमाया कि जाहिरा तौर पर इसकी अदायगी की जानी चाहिए, बावजूद इसके कोई गैरतमंद है तो हदिया तथा तोहफे के बहाने मदद की जा सकती है।

जानकारों के अनुसार हैसियतदार मुसलमा पर साल में एक बार जकात की अदायगी जरुरी है। जकात की रकम जाहिर कर दी जाए ताकि दूसरे की गैरत जागे।

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