खलीलाबाद शुगर मिल: नेताओं को घेरेगी जनता
संतकबीर नगर: चुनावों में मुद्दत से खलीलाबाद चीनी मिल मुद्दा बनती रही है। किसानों की समस्याओं को लेकर
संतकबीर नगर: चुनावों में मुद्दत से खलीलाबाद चीनी मिल मुद्दा बनती रही है। किसानों की समस्याओं को लेकर इसके लिए अनेकों बार आंदोलन हुए। वादों और आश्वासनों की लंबी फेहरिस्त रही है। आगामी विधान सभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों की हलचलें तेज हो गई। अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अनेकों संगठनों ने भी अपनी ताकत का एहसास कराने में जुट गए हैं।
अभी बंद पड़ी कताई मिल, प्रोसेस हाउस, उद्योग, नदी, बखिरा बर्तन उद्योग, पुलों के एप्रोच मुद्दा बने थे, लेकिन अब सुगर मिल सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनेगा। इस बार फिर चुनाव में चीनी मिल के मसले को हवा बहने से इन्कार नहीं किया जा सकेगा। वैसे मिल चलने पर भी बकाया का सवाल पिछले कई सालों से सालता चला आ रहा है। पूर्व में बंद होने पर मिल चलाने के लिए अनेकों आश्वासन नेताओं ने किए। इधर मिल बंद होने की आशंका को लेकर ही दर्जन भर से अधिक संगठनों में बैठक करके चेतावनी दी। भाकियू मुद्दत से मुद्दा बनाते चली आ रही हैं। मिल बंद होने जनपदवासियों के जेहन में ढेर सारे सवाल फिर उछाल मारने लगे हैं। 2008 से पूर्व 2000, 2005 में मिल को मुद्दा बनाया गया था। तबसे यह हर चुनाव में मुद्दा बनता आ रहा है। जब जब मिल बंद हुई पेराई देर से शुरू हुई तो सबसे अधिक नुकसान किसानों को उठाना पड़ा। एक तो बकाया नहीं मिला और फिर गन्ना की खेती पर ब्रेक भी लग गया। जो जनपद की मुख्य नकदी फसल में शामिल है। लंबे अंतराल के बाद 2008 से मिल सुचारू रूप से चली तो गन्ना रकबा बढ़ा, मिल के कामगारों की माली हालत सुधरी। ¨कतु एक बार फिर आर्थिक विपन्नता का हवाला देकर बंद हुई मिल से हालत बिगड़ने लगे हैं। एक तरफ मिल प्रशासन हर वर्ष 46 करोड़ का घाटा चीनी तैयार में तथा मरम्मत में पहर तीन वर्ष पर 299 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च का हवाला दे रहा तो दूसरी किसान दर्द की व्यथा सुना रहे हैं। 300 मिल कर्मी तो एच्छिक व स्वैच्छिक सेवानिवृत्त योजना से मायूस लौट गए। अनियमित व दैनिक कर्मियों का भविष्य अधर में पड़ गया है। मिल बंद होने से विरोध के स्वर फूटने लगे हैं। सुलगती ¨चगारी से व्यापक आंदोलन से इंकार नही किया जा सकता है। समस्या को लेकर इस बार लोग इसे चुनावी मुद्दा बनाने को तैयार हैं।
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महंगे बीज बोआई के बाद लागत वापसी की ¨चता
मेहदावल : चीनी मिल के लगातार चार वर्षों से चालू रहने से क्षेत्र में गन्ने की बोआई के क्षेत्रफल में लगातार बढोत्तरी हो रही थी। परंपरागत खेती में लागत के सापेक्ष लाभ कम मिलने को लेकर किसानों के लिए गन्ने की नकदी फसल फायदेमंद साबित हो रही थी। अबकी सत्र में पेराई करने के बाद अब मिल को बंद कर दिए जाने से किसानों में मायूसी है। गन्ने की खेती का चलन बढ़ने के पीछे काफी हद तक 1932 में स्थापित खलीलाबाद चीनी मिल को जिम्मेदार माना जाता रहा है। वर्ष 2004 तक अनवरत मिल के चलने से क्षेत्र में गन्ने की बोआई का क्षेत्रफल बढकर तीन गुने से अधिक हो गया था। वर्तमान में बखिरा सर्किल में लगभग 45 हेक्टेयर, नंदौर में 50 और गोइठहा सर्किल में 30 हेक्टेयर गन्ने की फसल खेतों में खड़ी है। नियमित भुगतान मिल जाने से अबकी बार मिल द्वारा किसानों में महंगे दाम पर गन्ने का बीज लेकर बोआई किया था। अभी तक मिल के द्वारा किसानों के बकाया का भुगतान भी पूरी तरह से नहीं किया जा सका है।
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मिल बंद होने से होगी समस्या
किसान राम नरायन यादव ने बताया कि मिल चलने से वे गन्ने को समय से मिल तक पहुंचा देते थे, जिससे खेतों में गन्ने के सूखने की नौबत नहीं आती थी। इसके साथ ही उन्हे दस रुपया प्रति क्विंटल की दर से कटौती भी नहीं झेलना पड़ती थी।
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बकाये के भुगतान को लेकर ¨चता
गन्ने के अग्रणी किसान पूर्व ब्लाक प्रमुख चंद्र शेखर पांडेय ने कहा कि सरकार द्वारा गन्ने का दाम 280 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया था इसके सापेक्ष मिल के द्वारा मात्र 240 रुपये की दर से भुगतान किया गया है जिससे अभी किसानों का चालीस रुपये प्रति क्विंटल की दर से बकाया है। मिल पर किसानों का करोड़ों का भुगतान भी समस्या बनी हुई है।
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लागत वापसी में होगी समस्या
किसान रामसमुझ मिश्र ने बताया कि बेहतर उत्पादन के लिए उन्होने मिल से चार सौ रुपये प्रति क्विंटल का बीज लेकर बोआई किया है। ¨सचाई और गुड़ाई आदि में लागत लगाने के बाद अब उन्हे फसल की बिक्री को लेकर ¨चता हो रही है। सरकार को मिल चालू करवाने के लिए प्रयास करना चाहिए।