खत्म हो रहे कुएं, पोखरों के अस्तित्व पर खतरा
संत कबीर नगर: जल संग्रहण तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कारक माने जाने वाले पोखरे और कुएं उप
संत कबीर नगर: जल संग्रहण तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कारक माने जाने वाले पोखरे और कुएं उपेक्षा के कारण अपने अस्तित्व का खतरा झेल रहे हैं। सरकारी योजनाओं के माध्यम से इनके संरक्षण के लिए तो अनेक योजनाएं चलाई गई। ढांचा बनने के बाद इनके सुरक्षा व जल भराव की व्यवस्था न होने से सूखे तालाब अपने हालत पर आंसू बहा रहे हैं। यदि समय रहते ठोस प्रयास नहीं हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब गांवो में पोखरों की पहचान एक गड्ढे की तरह सिमट कर रह जाएगी।
भारतीय संस्कृति में कुएं तथा पोखरे की महत्ता को देखते हुए इन्हें बनवाने का कार्य बहुत पवित्र माना जाता रहा है। तालाब व कुंओं से अनेक गांवों की पहचान होती थी। भूमिगत जल स्त्रोत को सुरक्षित रखने के साथ ही इन्हें गांवों का सार्वजनिक सामाजिक स्थल माना जाता था, जहां शाम होते ही चौपाल लग जाती थी। मांगलिक आयोजन भी पोखरों के किनारे करने की परंपरा रही है। बदलते परिवेश में सामाजिक संस्थाओं के स्वरुप बदलने से लोग अपने घरों तक सिमट कर रह गए हैं। इसका असर अब पोखरों के प्रति उदासीनता के रूप में सामने आने लगा है। हर गांव में पोखरे होना उसके सम्पन्नता का प्रतीक माना जाता था। वर्तमान में यदि नजर डाला जाए तो अतिक्रमण के कारण कुंओं का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है। मेंहदावल क्षेत्र में पक्का पोखरे को एक दिन की हल्दी के मुनाफे से बनाए जाने के कारण विशेष महत्व दिया जाता है। यहां सरकारी योजना से सफाई का काम तो हुआ परंतु जल भराव की व्यवस्था न होने से पानी की कमी की समस्या है। यही हाल कुबेरनाथ मंदिर के पोखरे का भी है। कस्बे के गंगासागर पोखरे की दीवारें ढह जाने से यहां गंदगी हो गई है। बखिरा क्षेत्र के ऐतिहासिक भंगेश्वर नाथ पोखरे पर अतिक्रमण से क्षेत्रफल घटकर आधा रह गया है। यहां ग्राम प्रधान व ग्रामीणों की शिकायत के बाद भी अब तक पैमाइश नहीं हो सकी जिससे पानी से भरा रहने वाला तालाब गंदा गड्ढा बनकर रह गया है। अब इसमें स्नान करना तो दूर लोग किनारे जाने से भी परहेज करने लगे हैं। बात सिर्फ मंदिरों से जुडे़ पोखरों तक ही सीमित नहीं है, मनरेगा व अन्य योजनाओं से गांवों में बने आदर्श जलाशय भी पानी न होने से अपने लक्ष्य से भटक रहे हैं। यदि समय रहते पोखरों की सुरक्षा व जलभराव का इंतजाम नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब गांवों में पोखरे खोजने से नहीं मिल सकेंगे जो पर्यावरण संरक्षण एवं जैव विविधता के लिए घातक तो होगा ही साथ ही भूमिगत जलस्त्रोत की सुरक्षा भी कठिन साबित होगा।