खेती पर मौसम का कहर, किसान तबाह
संत कबीर नगर : पिछले पांच दिनों से हवा के साथ हो रही बारिश ने खेती पर कहर बरपा दिया है। गेहूं क
संत कबीर नगर : पिछले पांच दिनों से हवा के साथ हो रही बारिश ने खेती पर कहर बरपा दिया है। गेहूं के साथ आलू और दलहन-तेलहन की फसल बर्बाद हो गई है। फसल तैयार होने का इंतजार कर रहा किसान तबाह हो गया है। खेती में लगाई गई पूंजी अब डूबने के कगार पर है।
एक वर्ष में किसान दूसरी बार मौसम का कहर झेल रहा है। धान की फसल के दौरान किसानों को सूखे की मार झेलनी पड़ी। बाद में हुद-हुद का प्रभाव फसलों के नुकसान का कारण बना। अब गेहूं और दलहनी फसलों के लिए भी बेमौसम बरसात नुकसान का कारण बनकर सामने आ रहा है। हवा के साथ हुई बरसात से किसानों को गहरा नुकसान पहुंचा है। गेहूं की बालियां फूटने के बाद से हवा के झोके से नीचे गिरने के कारण दाने बनने की क्रिया प्रभावित होने की आशंका प्रबल हो गई है। सबसे अधिक क्षति कछार क्षेत्र में हुई है, जहां खेतों में पहले से नमी रहने के बाद हल्की सी बरसात के बाद से ही फसलें गिरनी शुरू हो गई थीं। सबसे अधिक प्रभाव तो दलहनी फसलों पर पड़ा है। इसमें अरहर प्रमुख है। साल भर में एक ही फसल होने के कारण अरहर की फसल का नुकसान किसानों के लिए दोहरी क्षति का कारण बनेगा। बरसात के साथ हवा होने से अरहर पर लगे फूल झड़ गए हैं। इससे परागण क्रिया प्रभावित होने से उत्पादन कम हो सकता है। चना मटर और सरसो के साथ ही आलू की फसल पर जलजमाव से नुकसान हो रहा है। खेतों में आलू की पंक्तियों के आसपास पानी जमा होने से सड़ने के भय से किसान पकने के पूर्व ही खोदने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि सोमवार को दोपहर बाद से मौसम थोड़ा खुलने से किसानों ने राहत की सांस ली है, परंतु मौसम विभाग की चेतावनी को लेकर बरसात होने की आशंका को लेकर परेशान भी हैं।
हमारे मेंहदावल, धनघटा, नाथनगर, मगहर, बघौली, सेमरियावां स्थित संवाददाता के अनुसार क्षेत्र में बेमौसम बरसात ने किसानों की कमर तोड़ दिया है। किसान सोच नहीं पा रहे कि इस नुकसान की भरपाई कैसे होगी।
ईट कारोबार पर मौसम की मार
बेमौसम बरसात की मार से न सिर्फ फसलों के उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका से किसान परेशान हैं, वहीं आसियाना बनाने के लिए ईटों की खरीद करने के लिए सभी को मंहगाई की मार झेलना पड़ सकता है। हर वर्ष जनवरी माह से ही चालू
हो जाने वाले ईंट के भट्ठों में से अधिकांश पर अभी ईंटे पकाने का कार्य शुरू ही नहीं हो सका है। इसका प्रमुख कारण कच्चे ईटों के बरसात से होने वाले नुकसान को माना जा रहा है। इसे लेकर ईंट के कीमतों में उछाल होने की प्रबल आशंका है। ईंट कारोबार पर यदि गौर करें तो अक्टूबर माह के अंत से ही भट्ठों पर कच्चे ईंट की पथाई शुरू हो जाती है। इसे सूखने के बाद सुरक्षित रखने के बाद से पकाने का कार्य शुरू होता है। भट्ठा कारोबारियों के अनुसार कच्चे ईंट बनाने के दौरान लगभग पांच सौ रुपये प्रति हजार मजदूरों को ठेके पर देना पड़ता है साथ ही मिट्टी पानी और उनके रहने आदि की व्यवस्था अलग से करनी पड़ती है। अबकी बार ईंट बनाने के सत्र के दौरान कच्चे ईंट
बनाने का कार्य समय से शुरू तो हुआ परंतु बीच बीच में बरसात हो जाने से बड़ी संख्या में ईंट गल जाने का नुकसान भट्ठा कारोबारियों को झेलना पड़ा है। दिसंबर, जनवरी और फरवरी तीनों महीनों में एक दो बार बारिश होने से क्षेत्र के अधिकांश ईंट भट्ठों पर कच्चे ईंटों की कमी होने से अभी तक पकाने का कार्य चालू ही नहीं हो सका है।