शरीअत के खिलाफ है मुंबई हाई कोर्ट का फैसला
रामपुर: काजी ए शरआ व जिला मुफ्ती सैयद शाहिद अली रिजवी ने कहा कि औलिया ए किराम की जियारत करना अल्लाह
रामपुर: काजी ए शरआ व जिला मुफ्ती सैयद शाहिद अली रिजवी ने कहा कि औलिया ए किराम की जियारत करना अल्लाह से मुहब्बत की दलील है। जायरीन को काफिर व बिदअती कहना खुली गुमराही और बदअकीदगी है। मजारात पर हाथ फेरना, बोसा देना, उसके सामने झुकना और जमीन पर चेहरा मलना मना है। कब्र को सजदा करना हराम है। अगर इबादत की नीयत से है तो कुफ्र है। अल्लामा तहतावी फरमाया है कि औरतों के लिए इजाजत सिर्फ इस सूरत में है कि जियारत ऐसे तरीके पर हो कि उसमें फितना न हो। औरतों को अपने अजीजों की कब्रों पर जाना मना है। इसलिए कि वो जजा-फजा करेंगी। इमाम काजी ने फरमाया है कि औरत जब घर से कब्र की तरफ चलने का इरादा करती है तो अल्लाह और उसके फरिश्तों की लानत में होती है। जब घर से बाहर निकलती है तो सब तरफ से शैतान उसे घेर लेते हैं। जब कब्र पर पहुंचती हैं तो मय्यत की रुह उसपर लानत करती है। जब वापस आती है तो अल्लाह की लानत में होती है। कहा कि हमारी नजर में मुंबई में हाजी अली दरगाह ट्रस्ट का यह फैसला शरीअत के मुताबिक है कि औरतों का मजार पर जाना गैर इस्लामी है। औरतों की मांग और तहरीक पर मुंबई हाई कोर्ट ने अपने फैसले में औरतों को दरगाह के अंदर जाने की इजाजत दी है। यह सरासर गलत और शरीअत की खुली मुखालफत है। हम इसकी पुरजोर मजम्मत करते हैं।