किराए के एक छोटे कमरे में चल रहा स्कूल
रामपुर। किराए का एक छोटा सा कमरा। उसी में क्लास और उसी में दफ्तर। न बैठने का पर्याप्त इंतजाम और न ही
रामपुर। किराए का एक छोटा सा कमरा। उसी में क्लास और उसी में दफ्तर। न बैठने का पर्याप्त इंतजाम और न ही पीने के पानी की मुकम्मल व्यवस्था। यह हाल है कूंचा देवीदास स्थित प्राथमिक विद्यालय का। यहां संसाधनों के अभाव और शिक्षकों की कमी के बीच बच्चे पढ़ रहे हैं।
जिले की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल है। सरकार जहां हर बार बेहतर शिक्षा के दावे करती है, वहीं जमीनी स्तर पर हालात सुधरने के बजाए बिगड़ते जा रहे हैं। प्राइमरी विद्यालयों के लिए न तो भवन बन पा रहे हैं और न ही शिक्षकों की कमी दूर हो पा रही है। लिहाजा, बदहाली के बीच शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। कूंचा देवीदास स्थित प्राथमिक विद्यालय की बात की जाए, तो यहां हालात काफी खराब हैं। वर्ष 1962 में स्थापित हुए इस विद्यालय का अपना भवन तक नहीं है। किन्तु, बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए वर्षों पूर्व साहूकार मुन्नीलाल ने कुछ जमीन स्कूल को किराए पर दी थी। तब धर्मशाला में स्कूल के लिए एक छोटे कमरे सहित तीन कमरे थे। भरपूर शिक्षक थे और स्कूल में बच्चों की तादात भी काफी थी। शिक्षण व्यवस्था भी बेहतर थी। शिक्षक पढ़ाते थे और बच्चे पढ़ते थे, लेकिन गुजरते दिनों के साथ स्कूल की शिक्षा व्यवस्था सुधरने के बजाए और खराब होती चली गई। कुछ साल पहले मुन्नीलाल के रिश्तेदारों ने स्कूल को किराए पर दी गई जमीन पर आपत्ति जताई। काफी विवाद हुआ, जिसके बाद दोनों पक्षों में एक कमरा देने के लिए समझौता हो गया। हालांकि, इसका विवाद न्यायालय में भी चल रहा है। वर्तमान में स्कूल के हालात ऐसे है कि एक कमरा है और कक्षा एक से पांच तक की कक्षाएं चलती हैं। कमरा भी काफी छोटा है। स्कूल इंचार्ज इल्मास बताती हैं कि स्कूल में 62 बच्चे पंजीकृत हैं। 40 से 50 बच्चे स्कूल में उपस्थित रहते हैं। इन बच्चों के साथ ही स्कूल के कमरे में आंगनबाड़ी केंद्र भी चलता है। पहले यहां एक शिक्षामित्र की भी तैनाती थी, लेकिन अध्यापक बनने के बाद शिक्षामित्र को हटा दिया गया और किसी दूसरे अध्यापक को भी तैनाती नहीं दी गई। जबकि, ऐसे विद्यालयों में अधिक शिक्षक हैं, जहां बच्चों की संख्या भी कम है। हालात यह हो जाती है कि बच्चों को स्कूल में बैठने की जगह तक नहीं मिल पाती। स्कूल में बच्चों के लिए शौचालय बना है, लेकिन शौचालय की छत नहीं है। गेट भी जर्जर है। परिसर में काफी मलवा पड़ा है। स्कूल इंचार्ज का कहना है कि धर्मशाला में अक्सर कोई न कोई प्रोग्राम होता रहता है, जिससे गंदगी ज्यादा होती है। कूड़ा भी जहां तहां फेंक दिया जाता है। मलवा होने की वजह से कई बार बच्चों को चोट लग जाती है। हालांकि, स्कूल इंचार्ज निजी संसाधनों के जरिए साफ सफाई कराती हैं। ऐसे में निजी विद्यालयों के मुकाबले परिषदीय शिक्षा का स्तर कैसे ऊपर उठेगा।
स्कूल की हालत खराब है। सरकार सोचे कि बच्चे कैसे पढ़ें? हम गरीब हैं, पैसे नहीं हैं तो अपने बच्चों इन हालातों में ही पढ़ाने को मजबूर हैं। पैसे वाले तो अपने बच्चों को बड़े बड़े स्कूलों में भेजते हैं। अगर बड़े लोगों के बच्चे भी इन स्कूलों में पढ़ें तो स्कूलों की हालत भी सुधर जाएगी और बच्चों के लिए सुविधाएं भी बढ़ जाएंगी।
-नसरीन
स्कूल में बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दिया जाता है, लेकिन एक ही कमरे में सब बच्चे बैठते हैं। सरकार को चाहिए कि स्कूल के लिए अलग भवन बनाए। शिक्षकों की कमी दूर करे, ताकि गरीबों के बच्चों को भी बेहतर माहौल में अच्छी शिक्षा हासिल हो सके। किन्तु, सरकार तो सिर्फ अमीरों के लिए काम करती है। गरीबों की ¨चता किसे है।
-रेखा
स्कूल का भवन किराए पर है। इसका विवाद भी चल रहा है। स्कूल के भवन और तमाम दिक्कतों को लेकर कई बार उच्चाधिकारियों और शासन को लिखा गया है। उम्मीद है भविष्य में यह समस्या दूर हो जाएगी और शिक्षा के स्तर में सुधार आएगा।
-जमील अहमद, नगर शिक्षाधिकारी, रामपुर।