उम्मीद की किरण को सलाम
रामपुर। प्रदेश के उच्च शिक्षा निदेशक रहे डॉ.आरके बसलस ने युवाओं को आगे बढ़ने की नई ऊर्जा दी है। उन्
रामपुर। प्रदेश के उच्च शिक्षा निदेशक रहे डॉ.आरके बसलस ने युवाओं को आगे बढ़ने की नई ऊर्जा दी है। उन्होंने हमेशा लोगों को शिक्षा और संस्कार के लिए जागरूक किया और सेवानिवृति के बाद भी इसी दिशा में कार्य कर रहे हैं।
17 अगस्त 1946 को आगरा में जन्मे डॉ.बसलस ने खुद के बल पर समाज को सकारात्मक रोशनी दिखाने का साहस जुटाया है। नैनीताल से एमएससी और रसायन विज्ञान में पीएचडी करने के बाद 1973 से उन्होंने अपने करियर की शुरूआत रामपुर के रजा महाविद्यालय से की और वर्ष 2006 तक उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सेवा करते रहे। इस बीच उन्होंने प्रोफेसर से क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी, संयुक्त शिक्षा निदेशक और उच्च शिक्षा निदेशक बनने तक का सफर तय किया। अपने इस सफर में उन्होंने हजारों युवाओं को जीने का सफल और सही तरीका सिखाया। उन्होंने जर्मनी, अमेरिका, ¨सगापुर और यूरोप के देशों में भी जाकर युवा जागरण का काम किया। उनका मानना है कि ज्ञान और कौशल के सदुपयोग से किसी भी समस्या का समाधान ढूंढा जा सकता है। इस पर आधारित उन्होंने 230 से ज्यादा शोध पत्र तैयार किए, जो राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही 22 शोधार्थियों को पीएचडी करा चुके हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए 1986 में नेशनल सोसायटी फार पाल्यूशन फ्री इनवायरेंट शुरू की। उनका जीवन कई लोगों के लिए उम्मीद की किरण है।
सफलता के लिए दस सिद्धान्तों का पालन जरूरी
डॉ.बसलस ने सफल इंसान बनने के लिए अपने जीवन में दस सिद्धांतों को अपनाने पर जोर दिया। पहला सिद्धात कि हमेशा अपने उत्तरदायित्व कुशलता से निभाना चाहिए और कभी अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटना चाहिए। दूसरा सिद्धात कि दूसरों से व्यवहार करते समय इस बात का ध्यान रखें कि यदि हम सामने वाले की परिस्थिति में हो, तो हमें कैसा लगेगा। गरीब से गरीब के प्रति भी विनम्र व्यवहार रखें। सभी का आदर करना सीखें। तीसरे सिद्धात में उन्होंने खुद को एक शिक्षक के रूप में स्थापित करने पर जोर दिया है, कि हमेशा एक शिक्षक को अपने विद्यार्थियों को ऐसे सिखाना चाहिए कि जैसे अपने सगे बेटे को सिखा रहे हों। चौथा सिद्धांत अपने अधिकारों को सही इस्तेमाल करने से है। हमें जो भी अधिकार व सामर्थ्य है, उससे दूसरों का भला ही होना चाहिए। पांचवें सिद्धात में देश प्रेम की बात है। उनका कहना है कि इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि कभी भी देश के विकास में अपना स्वार्थ बाधा नहीं बनना चाहिए। देश हित सर्वोपरि हैं। छठा सिद्धात यह सिखाता है कि हमें अगली पीढ़ी के बारे में सोचना चाहिए। कि हमारे कुछ करने से आने वाली पीढ़ी को क्या फायदा होगा। उन्हें अच्छा पर्यावरण और समृद्ध संस्कृति देनी चाहिए। सातवें सिद्धात में कुरीतियों के विरूद्ध आवाज उठाने को कार्य योजना बनाना है। वह कहते हैं कि कुरीतियों और अन्याय का हमेशा विरोध करना चाहिए, इसके लिए सूझबूझ से कार्ययोजना तैयार करें और फिर उस पर अमल करें। आठवें सिद्धात में उन्होंने अनुशासन को महत्व दिया है। जीवन को पूरी तरह से अनुशासन से जीना चाहिए, इससे सफलता मिलती है और कई समस्याएं तो स्वत: ही दूर हो जाती है। दसवें सिद्धात में उन्होंने दृढ़ निश्चयी बनने की सीख दी है। किसी कार्य को करने के लिए अपना शत प्रतिशत देना चाहिए। अधूरे मन से किया गया कार्य सफल नहीं हो सकता। दूसरों से जो वादा करों उसे निभाना चाहिए। सही समय पर और सही वाक्य ही बोलने चाहिए। इन सिद्धांतों के साथ डॉ.बसलस आज भी लोगों को जागरूक कर रहे हैं। शिक्षा के प्रसार के लिए विभिन्न संगठनों और स्कूलों के माध्यम से जागरूकता फैलाते हैं।