..चलों चले बाबा उसरहा के दर पे
अमेठी,जागरण संवाददाता: इंसानों की बस्ती से दूर ऊसर में रहने, खाने और सोने के अंदाज ने उन्हें बाबा उसरहा शाह बना दिया। ऊसर भूमि में एक गोला बनाकर जब बाबा उसकी परिधि में चले जाते तो कड़ाके की बरसात की क्या मजाल कि परिधि में पानी का एक छीटा डाल सके। 18 अप्रैल को होने वाले सालाना उर्स में हजारों की संख्या में अकीदत के साथ लोग बाबा की दर पर उमड़ते हैं।
देश अंग्रेजों के अधीन था। देश के लोग आजादी के लिए जूझ रहे थे। इसी बीच जिले के पश्चिमी छोर पर बाबूगंज बाबा उसरहा शाह की तपोस्थली बनकर उभरा। प्रत्येक गुरुवार को सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और अपने विश्वास को पक्का कर अपनी मुरादों को पूरा होने की दुआ मांगते हैं। बताते हैं उसरहा शाह का जन्म रायबरेली अब अमेठी जिले के राज रियासत तिलोई के शंकरगढ़ गांव में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उसरहा शाह ने 1922 में अंग्रेजी फौज में नौकरी कर ली। इसी दौरान इनकी मुलाकात सुविख्यात सूफी संत बाबा ताजुद्दीन शाह नागपुर में हुई। उसरहा शाम ने नौकरी को छोड़कर उनके मुरीद होकर लोक कल्याण के लिए फकीरी को हमेशा के लिए गले से लगा लिया। फकीर दादा करीम शाह का सानिध्य में एक मौलवी के रूप में गरीब बच्चों को निशुल्क तालीम देने लगे। अलमस्त फकीर का इंतकाल 1980 में हो गया।
सुरक्षा के व्यापक बंदोबस्त
एसडीएम गौरीगंज सुभाष प्रजापति और पुलिस उपाधीक्षक नवीन सिंह ने कहाकि भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के खास इंतजाम रहेगा। कोतवाली प्रभारी रतन सिंह उर्स के दौरान मेले में कैंप करेंगे।