पुलिस सुरक्षा में ले जाए गए रमेश
लालगंज,प्रतापगढ़: ब्लाक प्रमुख पद के चुनाव में लालगंज ब्लाक से रमेश प्रताप ¨सह और लक्ष्मणपुर में वाह
लालगंज,प्रतापगढ़: ब्लाक प्रमुख पद के चुनाव में लालगंज ब्लाक से रमेश प्रताप ¨सह और लक्ष्मणपुर में वाहिदा निर्वाचित हुई।
लालगंज में कुल 73 मत पड़े। इसमें रमेश प्रताप ¨सह को 39 और सुरेंद्र ¨सह ददन को 33 मत मिले। एक मत अवैध रहा। इस प्रकार रमेश प्रताप ¨सह छह मतों से विजयी घोषित हुए। रमेश प्रताप ¨सह के विजयी होते ही खुशी में पटाखे बजने लगे। दूसरे प्रत्याशी सुरेंद्र ¨सह के काफी समर्थक ब्लाक मुख्यालय के बाहर होने के कारण पुलिस ने शांति व्यवस्था के मद्देनजर रमेश प्रताप ¨सह को अपनी सुरक्षा में ले लिया और उन्हें प्रमाण पत्र दिलाने के लिए जिला मुख्यालय अपने साथ ले गई। लालगंज ब्लाक में एसडीएम वाईबी ¨सह, सीओ बीआर प्रेमी मतदान प्रारंभ होने के पूर्व से मतगणना तक डटे रहे। सुबह से ही परिणाम को लेकर लोगों में ऊहापोह की स्थिति बनी रही पर जैसे ही परिणाम घोषित हुआ, विजयी प्रत्याशी के समर्थक खुशी से झूम उठे।
सगरासुंदरपुर प्रतिनिधि के अनुसार लक्ष्मणपुर ब्लाक प्रमुख के चुनाव में आमने सामने की टक्कर में वाहिदा बेगम निर्वाचित हुई। 43 मत पाकर गीता देवी वर्मा को आठ मतों से पराजित किया। गीता को 35 मत मिले। एक मत अवैध पाया गया। मतगणना होने तक सीडीओ महेंद्र कुमार ¨सह मौजूद रहे। इस दौरान ग्रामीणों ने हो हल्ला मचाया। इस पर लोगों को पुलिस ने दौड़ा कर शांति व्यवस्था बनाया।
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मतदान केंद्र पर काफी देर तक रहे डीएम, एसपी
लालगंज,प्रतापगढ़: जिलाधिकारी डा.आदर्श ¨सह व एसपी माधव प्रसाद वर्मा सुबह साढ़े दस बजे ही मतदान प्रारंभ होने के पूर्व ही लालगंज ब्लाक पहुंच गए और लगभग बारह बजे तक ब्लाक में बैठे रहे।
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डेढ़ घंटे में ही पड़ गए थे आधे वोट
लालगंज,प्रतापगढ़: लगभग साढ़े बारह बजे तक लगभग 50 फीसदी मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग कर दिया था। मतदान केंद्र के गेट पर पुलिस तैनात थी। जो मतदाताओं की जांच करने के बाद अंदर जाने दे रही थी। दोनों प्रत्याशी रमेश प्रताप ¨सह व सुरेंद्र ¨सह ददन मतदान केंद्र के अंदर डटे थे। कोई अनहोनी न हो जाए, इसे लेकर पुलिस कर्मी काफी सतर्क नजर आ रहे थे। इसके कारण सांगीपुर, लालगंज समेत अन्य थानों की पुलिस भी मतदान केंद्र पर मौजूद थी।
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नौ बीडीसी सदस्य रहे निरक्षर
लालगंज,प्रतापगढ़: नौ बीडीसी सदस्य हियात, शिवकली, मालती, जगना, गीता, सलीमुन, सुमित्रा, रामकली व संगीता ने निरक्षर होने के कारण अपने सहायक साथियों के साथ मतदान में भाग लिया। आजादी के उनहत्तर साल बाद आज भी प्रतिनिधियों का निरक्षर होना कहीं न कहीं यह साबित करता है कि शिक्षा के प्रति जिम्मेदारान लोगों ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किया और न ही ऐसी कोई योजनाएं धरातल पर मजबूती से काम कर सकीं कि जिससे कोई भी व्यक्ति निरक्षर न रहे। दुर्भाग्य है कि जिन लोगों पर गांव की तस्वीर बदलने का जिम्मा है। वह खुद भी शिक्षित नहीं हो सके।