इस चाल से तो कछुए भी शरमा जाएं
प्रतापगढ़ : रियासतें तो टूट गईं, लेकिन बेल्हा के अधिकारी कर्मचारियों का शाही अंदाज अभी भी कायम है। इ
प्रतापगढ़ : रियासतें तो टूट गईं, लेकिन बेल्हा के अधिकारी कर्मचारियों का शाही अंदाज अभी भी कायम है। इसे मनमानी कहें या फिर अनदेखी कि दमदम गांव की चकबंदी 19 साल बाद भी पूरी नहीं हो सकी। अधिकारियों की मनमानी का दंश बा¨सदों व काश्तकारों को झेलना पड़ रहा है। बैनामा कराना हो या जमीन का दाखिल खारिज चकबंदी के पेंच ने हर प्रक्रिया को जटिल बना दिया है। मजे की बात तो यह है कि जिला प्रशासन भी मनमानी पर आंख मूंदे बैठा है।
रानीगंज तहसील क्षेत्र के दमदम गांव में चकबंदी की प्रक्रिया 1995 से चल रही है। आश्चर्य यह कि आज तक चकबंदी फाइनल नहीं हो सकी, जिससे किसानों तो बैनामा रानीगंज तहसील में करा लेते हैं, लेकिन खारिज दाखिल के लिए उन्हें चकबंदी दफ्तर जिला मुख्यालय पर सीओ के यहां चक्कर काटना पड़ रहा है। शासन से हर बीस साल बाद चकबंदी गांवों में होने की प्रक्रिया है, लेकिन यहां तो पहली बार में ही 20 वर्ष लग गए और चकबंदी अभी तक नहीं हो सकी। यहां काश्तकारों की मानें तो अभी आकार 23 तक कार्य हुआ है। अभी चकबंदी फाइनल होने में एक डेढ़ वर्ष लग सकते हैं। ऐसे में गांवों में ग्राम समाज, नाली से लेकर हर जगह किसानों को जहमत उठानी पड़ रही है। बैनामा कराने में भी किसानों को तहसील से लेकर चकबंदी तक का चक्कर काटना पड़ रहा है। कई अधिकारी बदले, लेकिन चकबंदी की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी। यहां तक कि चकबंदी के दौरान अधिकारी खेल भी कर रहे हैं। दमदम गांव के प्रधान हरीलाल व पूर्व बीडीसी शिवशंकर, पूर्व प्रधान जीतलाल के अलावा ऊधम ¨सह एडवोकेट सहित दर्जनों किसानों का कहना है कि 1995 से चकबंदी चल रही है। 20 वर्ष हो गए और चकबंदी फाइनल नहीं हुई। लोगों को बैनामा व खारिज दाखिल में परेशानी हो रही है। साथ ही किसानों को खतौनी के लिए भी भागदौड़ करना पड़ रहा है। नए व पुराने नंबर को लेकर भी परेशानी हो रही है। लेकिन इस ओर अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे हैं। कछुए की तरह चल रहे चकबंदी कार्य को लेकर सवाल भी उठ रहा है। इस बाबत एसडीएम रानीगंज ब्रजेंद्र द्विवेदी का कहना है कि चकबंदी की प्रक्रिया चल रही है। जिलाधिकारी को अवगत कराया गया है। डीएम ने भी चकबंदी अधिकारियों को कड़े निर्देश दिए हैं। जल्द ही चकबंदी की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।