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आखर आखर गढ़ रहे रीति, रिवाज, समाज

शकील अहमद, प्रतापगढ़/पट्टी : वह समाजसेवा का नाटक नहीं करते, बल्कि हकीकत में उनका हर सृजन समाज को जा

By Edited By: Published: Sun, 21 Dec 2014 06:40 PM (IST)Updated: Sun, 21 Dec 2014 06:40 PM (IST)
आखर आखर गढ़ रहे रीति, रिवाज, समाज

शकील अहमद, प्रतापगढ़/पट्टी : वह समाजसेवा का नाटक नहीं करते, बल्कि हकीकत में उनका हर सृजन समाज को जागरूक कर रहा है। लोगों में भरता है दायित्व बोध, संस्कार और सुशिक्षा का वह प्रकाश जो राष्ट्र के काम आता है।

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यह हैं जिले के चर्चित शिक्षाविद डा. रामबोध पांडेय जो कुशल साहित्य शिल्पी व नाटककार के रूप में सुशिक्षित समाज की रचना में आखर-आखर योगदान दे रहे हैं। किसान आंदोलन के लिए जानी जाती है पट्टी। यहां सुशिक्षा की चेतना डा. पांडेय की कलम से उमड़ रही है। अपने साहित्य व नाटकों के सहारे वह समाज को कुरीतियों से लड़ना सिखा रहे हैं। उसके स्थापित हो चले हानिकारक रीति रिवाज को बदलने में जुटे हैं। इनके नाटक में बोले जाने वाले संवाद समाज को सीधे प्रभावित करने वाले होते हैं। वह फिल्मों की चकाचौंध में नहीं खोए, अश्लील साहित्य को अपने पास आने नहीं दिया। पैसा कमाने की चाहत में महानगर नहीं गए, बल्कि वह अपने घर-गांव की अशिक्षा को अपने हुनर से दूर करने को समर्पित हैं।

एक छोटे से गांव डाही के निवासी डा. राम बोध पाण्डेय के नाटकों में स्वस्थ मनोरंजन के साथ लोगों के लिए सबक भी होता है। मात्र बीस दिन की अल्प आयु में पिता स्व. वासुदेव पाण्डेय का साया सर से उठ जाने के बाद मा सुखराजी देवी ने पिता एवं मां दोनो का प्यार देकर इन्हें बड़ा किया। बड़े होने पर मां ने ही शिक्षा क्षेत्र में जाकर गरीब बच्चों, बहके समाज को ज्ञान का दान देने को प्रेरित किया। मां की बात को सिद्धांत मानकर यह सैतीस वर्षो तक शिक्षा जगत से जुड़े रहे। साथ ही रंगमंच पर भी सक्रिय रहे। गांव में ही अभिनव कला मंच का गठन कर रंगमंच में रुचि रखने वाले लोगों को चिन्हित कर अपने साथ जोड़ा और अपने द्वारा लिखे गए समाजिक एवं ऐतिहासिक नाटकों का मंचन कर गांव के लोगों में ज्ञान का प्रकाश भरने का प्रयास शुरू किया। यह सिलसिला तमाम मुश्किलों के बाद भी जारी है।

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कई जिलों में फैला प्रभाव

अभिनव कला मंच के सहयोग से आसपास के जनपदों के लगभग तीन दर्जन छोटे बड़े नाट्यमंच सक्रिय हैं जो समाज में अज्ञानता को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाने में जुटे हैं। यह सभी डा. रामबोध पाण्डेय द्वारा लिखित नाटकों का मंचन कर रहे हैं। यह डॉ. पाण्डेय के शिष्यों ने स्थापित किए हैं। इनमें रमजान अली, श्रीकांत विश्वकर्मा, हरीश कुमार, शशि, अनिल आदि नाम प्रमुख हैं।

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विसंगतियों को बनाया विषय

डा. रामबोध पाण्डेय ने समाज की हर विसंगति को अपने नाटक का विषय बनाया। एक तरफ जहां अरावली का शेर, छत्रपति शिवाजी, चाणक्य महान, पन्ना धाय, आंखों की आहुति व इंसाफ का मंदिर जैसे नाटकों को लिखा। उसे मंचित कर गांव के लोगों को देश के इतिहास से परिचय कराने का काम किया, वहीं चक्रव्यूह, धन्य हरिश्चंद्र, अवध की आग, अग्नि परीक्षा, वैदेही वनवास, शकुतंला जैसे नाटकों की रचना व उनका मंचन कर लोगों को पौराणिक जानकारी दी। दहेज की वेदी, सुहाग की सौंगध, आखों का झरोखा व आंखों के फूल जैसे नाटकों में भी शिक्षा के दीप जलते हैं। नारी शिक्षा पर वह बेबाक लिखते हैं।

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हिंदी संस्थान ने नवाजा

वर्ष 2013 में प्रकाशित उनके कालजयी नाटक अरावली का शेर को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने सर्वश्रेष्ठ नाट्यकृति मानते हुए उन्हें प्रतिष्ठित मोहन राकेश सर्जना पुरस्कार से नवाजा है।

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