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आओ .. विश्व में छा जाओ

राजन शुक्ला, प्रतापगढ़ : वह गांव में रहते हैं, लेकिन उनकी सोच में पूरा विश्व है। लोकल से ग्लोबल यानि

By Edited By: Published: Sat, 20 Dec 2014 07:18 PM (IST)Updated: Sat, 20 Dec 2014 07:18 PM (IST)
आओ .. विश्व में छा जाओ

राजन शुक्ला, प्रतापगढ़ : वह गांव में रहते हैं, लेकिन उनकी सोच में पूरा विश्व है। लोकल से ग्लोबल यानि स्थानीय स्तर पर कार्यकर वैश्विक स्तर पर छाने के सिद्धांत को उन्होंने सच करके दिखाया है। यह प्रतापगढ़ के डा. चंद्र भूषण द्विवेदी हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि से उठकर विश्व प्रसिद्ध प्लाज्मा वैज्ञानिक बन चुके डॉ. द्विवेदी अब अपने अत्यंत सीमित संसाधनों पर असीमित मनोबल के बूते नन्हें वैज्ञानिक गढ़ने में जुटे हैं। निजी जिंदगी में भीषण गरीबी से जंग लड़ रहे होने के बावजूद डॉ. शुक्ला विद्या दान में भारी उत्साह के साथ जुटे हैं। पिछले सात वर्ष से चल रहा उनका यह अभियान वैज्ञानिक जगत में नए सोपान गढ़ रहा है। उनका सीधा सूत्रवाक्य है..आओ..विश्व में छा जाओ।

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डॉ. द्विवेदी का जन्म जिले के रानीगंज तहसील के गौरा ब्लाक के जगतपुर गांव में हुआ था। शास्त्रीय संगीतज्ञ के साथ ग्राम प्रधान रहे स्व. बृजलाल द्विवेदी के सबसे छोटे पुत्र डॉ. द्विवेदी ने प्राथमिक से लेकर बारहवीं तक की शिक्षा ग्रामीण क्षेत्र से की। बाद में बीएससी पीबी कालेज प्रतापगढ़ से करने के बाद वह एमएससी करने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय चले गए। वहां से न्यूक्लियर फिजिक्स पढ़ने के बाद रविशंकर विश्वविद्यालय से 1987 में प्लाज्मा फिजिक्स से पीएचडी किया। इसके बाद वह राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर में रिसर्च एसोसिएट बने तथा बाद में गुजरात चले गए। विभिन्न वैज्ञानिक शोध संगठनों में काम करने के बाद उन्होंने आइएएस आईटी में आठ वर्ष तक अध्यापन भी किया। डा. द्विवेदी ने फरवरी 2007 में नौकरी से अलविदा कर घर की डगर थाम ली।

इसी वर्ष प्लाज्मा वैज्ञानिक डा. चंद्र भूषण द्विवेदी अचानक पूरी दुनिया तब छा गए जब उनको संसार के सौ शीर्षस्थ प्लाज्मा वैज्ञानिकों में शुमार किया गया। उनके एक शोध पत्र ने अमेरिका में धमक बनाई।

डॉ. चन्द्रभूषण फिलहाल नौनिहालों को वैज्ञानिक बनाने में जुटे हैं। वह कई शहरों में रहे। इस दौरान देखा तो पता चला कि उनके गृह जनपद के बच्चे केवल पारंपरिक शिक्षा ही पा रहे हैं। किताबी ज्ञान से आगे नहीं बढ़ रहे हैं। बस यही बात उनको खटकी और वह ठान बैठे कि हर बच्चे में विज्ञान की प्रतिभा अंकुरित करेंगे।

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-हर पल शिक्षण की जुनून-

वैज्ञानिक डॉ. चन्द्रभूषण द्विवेदी नौकरी छोड़ने के बाद जब घर आए तो नौनिहालों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने को समर्पित हो गए। वर्ष 2008 में वेद विज्ञान प्रवर्तन समिति बनाई। फिर गांव में ही प्राइमरी तक नौनिहालों को शिक्षा देना शुरू किया। यहां विज्ञान के छोटे मोटे प्रयोगों से नन्हें मुन्नों को तराशा जा रहा है। भले ही प्रयोगशाला नहीं है, किसी ने फूटी कौड़ी नहीं दी हो लेकिन सीमित संसाधनों से असीमित मेधा तराशने की कवायद जारी है। इस कार्य में उनकी पत्‍‌नी रश्मि जो कि संस्कृत से एमए हैं तथा सेवानिवृत्त ग्राम सचिव बृजलाल दुबे आदि ने भी पूर्ण सहयोग दिया।

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शोध ही उनका सबकुछ

प्लाज्मा विशेषज्ञ डा.चंद्र भूषण द्विवेदी का शोध से गहरा नाता है। 70 से अधिक शोध पत्र अब तक अंतरराष्ट्रीय पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। वर्ष 2014 में उनका नवीनतम शोध पत्र 'धूल में प्लाज्मा के चुंबकीय क्षेत्र की उपस्थिति' है। यह शोध पत्र अमेरिकन फिजिक्स आफ प्लान ने स्वीकार किया है।

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-सादगी, नैतिकता की भी प्रेरणा

वैज्ञानिक डॉ. चन्द्रभूषण द्विवेदी बिल्कुल साधारण तरीके से रहते हैं। उनका रहनसहन अन्य गरीब ग्रामीणों जैसा ही है। पुराना कच्चा घर तीन साल पहले ढह गया तो बड़े भाई ईश्वरचन्द्र दुबे के साथ दलान में रहते हैं। पत्र पत्रिका व पुस्तकों से लगाव इतना है कि घर पर पुस्तकों की लाइब्रेरी बना रखी है। स्कूल में भी पुस्तकों का खासा संग्रह है। वह बच्चों को बताते हैं कि सादा जीवन उच्च विचार से ही कोई महान बन सकता है। जीवन में सादगी व विनम्रता तथा समाज के प्रति नैतिक जिम्मेदारी को सजग रहना वह बच्चों का सिखाते हैं।

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तबला वादन से है लगाव

वैज्ञानिक होने के बावजूद सीबी द्विवेदी को साहित्य संगीत से गहरा लगाव है। पिता से विरासत में उन्हें संगीत से प्रेम मिला है। बीएचयू में संगीत कोर्स भी किया, वह तबला वादन भी करते हैं। इसके अलावा रोज सुबह चार बजे उठना प्राणायाम, योग फिर मंदिर में पूजा आधे घंटे तबला बजाना, फिर स्कूल पहुंचना उनकी रोजमर्रा की दिनचर्या है। उनका कहना है कि हर इंसान को कुछ खास करना चाहिए, सो मैं कर रहा हूं।

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