इन घावों को आज भी है मरहम का इंतजार
प्रतापगढ़ : 1984 के सिख विरोधी दंगे की आग में बेल्हा के तीस ऐसे परिवार हैं जिन्हें गंभीर आर्थिक क्षत
प्रतापगढ़ : 1984 के सिख विरोधी दंगे की आग में बेल्हा के तीस ऐसे परिवार हैं जिन्हें गंभीर आर्थिक क्षति उठानी पड़ी थी। सरकार द्वारा केवल दंगे में जान गंवाने वाले परिवारों को ही पांच लाख की सहायता देने की बात कहे जाने से जिले के पीड़ित सिख परिवारों में निराशा बढ़ गई है।
बेल्हा में सिख समाज के करीब 100 परिवार हैं। इनमें से अधिकांश कपड़ा व्यवसाय करते हैं। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर को हत्या हुई तो उसके बाद एक नवंबर से छह नवंबर तक सिख विरोधी दंगे हुए। सरदारों की दुकानें लूटी गईं, जलाई गईं और उन पर हमले किए गए। घरों को फूंक दिया गया। गोदामों को भी नष्ट कर दिया गया। दंगे की इस आग में प्रतापगढ़ के 30 परिवार प्रभावित हुए। सरदार आत्मजीत सिंह, ज्ञान कौर, संतोष सिंह, मोहन सिंह, प्रीतम सिंह, इंद्रजीत सिंह, सुरेंद्र सिंह, मंजीत सिंह, पृथ्वीपाल सिंह, प्रतिपाल सिंह, राविंद्र सिंह, हरमेंदर सिंह, जुझार सिंह, हरदीप सिंह, भगवंत सिंह, सुरेंद्रजीत सिंह, सरदार संपूर्ण सिंह आदि के आर्थिक प्रतिष्ठानों को दंगाइयों ने काफी क्षति पहुंचाई।
तत्कालीन सरकार ने दंगा पीड़ितों को राहत राशि के नाम पर किसी को 10, किसी को 20 व किसी को 50 हजार ही दिया था। हाल ही में केन्द्र सरकार ने मृतक के परिवार वालों को पांच लाख रुपये की सहायता देने की घोषणा की है। इस मानक का बेल्हा में कोई सिख परिवार नहीं है। यहां के परिवारों का आर्थिक नुकसान हुआ है, कुछ लोग हमले में घायल भी हुए थे। इन सबको भी आशा है कि शायद उनके जख्मों पर भी मरहम लगाने की कोई कोशिश हो।
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समिति करेगी धरना प्रदर्शन
प्रतापगढ़ : जिले की 1984 दंगा पीड़ित समिति के अध्यक्ष सरदार जोगेंदर सिंह का कहना है कि मृतकों के परिवारों को पांच की जगह 20 लाख की सहायता राशि दी जानी चाहिए। दंगाइयों द्वारा बेल्हा के 30 परिवारों का लाखों का नुकसान किया गया था। सरकार को इन परिवारों के लिए कम से कम 5 लाख नकदी, एक सदस्य को नौकरी और बुजुर्गो को पेंशन भी देनी चाहिए। सरकार की अधूरी राहत घोषणा के खिलाफ समिति के बैनर तले आंदोलन छेड़ा जाएगा। धरना प्रदर्शन के जरिए केंद्र सरकार तक बेल्हा के पीड़ित सिख परिवारों की आवाज पहुंचाई जाएगी। आंदोलन की रूपरेखा के लिए बैठक बुलाई जाएगी।
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घोषणाओं ने छला कई बार
प्रतापगढ़ : बेल्हा के सिख परिवारों को राहत के नाम पर सरकारी घोषणाओं ने कई बार मायूस किया है। मुलायम सरकार ने हर परिवार को दो-दो लाख रुपये देने की बात कही थी, यह बात पूरी नहीं हुई। पूर्व में केंद्र सरकार ने पांच-पांच लाख रुपये का ऐलान किया था, यह बात भी हवा में रही। यहां के 30 परिवारों में वर्ष 2005 में केवल 29 लाख रुपये बांटे गए हैं। ऐसे में हर पार्टी की सरकार से सिख परिवार नाराज ही हैं।
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रिफ्यूजी बन आए और छा गए सरदार
राजन शुक्ल, प्रतापगढ़ : बेल्हा में सिख परिवारों का पहला कदम देश की आजादी के एक साल बाद यानी 1948 में पड़ा। उस समय यह रिफ्यूजी यानी शरणार्थी बनकर आए थे। अपनी मेहनत के बल पर यह रिफ्यूजी की परिभाषा से निकलते हुए जिले में छा गए।
उस समय इनके लिए 50 मकानों की रिफ्यूजी कालोनी सरकार ने बनाकर दी थी। कचहरी के पास स्थित इस कालोनी का स्वरूप अब बदल चुका है। अधिकांश मकान नए नक्शे में ढल गए हैं। यही नहीं इसे अब लोग पंजाबी कालोनी के रूप में जानते हैं।
सिख परिवारों ने बेल्हा के कपड़ा व्यवसाय पर कब्जा जमा रखा है। इसका प्रमाण यह है कि शहर में इनके नाम पर पंजाबी मार्केट बनी हुई है, जहां अधिकांश दुकानें सरदारों की हैं। इन दुकानों पर कहीं दूसरी तो कहीं तीसरी पीढ़ी ने गद्दी संभाल रखी है। गुरु गोविंद सिंह जयंती से लेकर अपने हर गुरू का प्रकाश उत्सव ये बड़े उत्साह से मनाते हैं। इसमें हिंदू परिवारों के लोग भी शामिल होते हैं।
शहर के इलाहाबाद-फैजाबाद हाइवे पर गुरुद्वारा नानक शाही इनका मुख्य पूजा स्थल है। इसके अलावा पंजाबी कालोनी में भी एक गुरुद्वारा है, जिसे गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा के नाम से जाना जाता है। इन दोनों गुरुद्वारों में मुख्य पर्वो पर अरदास और लंगर के कार्यक्रम चलते रहते हैं। सरदार जोगेंदर सिंह, मंजीत सिंह, जुझार सिंह, गोविंद सिंह, नरेंद्र पाल सिंह आदि कहते हैं कि अब तो बेल्हा ही अपना सा लगता है। यहां पर लोहड़ी का पर्व भी पंजाबी अंदाज में मनाकर खुशी मिलती है। यहां के लोग बहुत अच्छे हैं। दंगे के जख्म अब सूख चुके हैं। ऐसा मरहम लगाने से नहीं हुआ बल्कि अपनेपन ने राहत दी है। सरकार घोषणाएं करती है, क्या देती है क्या नहीं, यह बात अपनी जगह है, लेकिन यहां के अपनत्व का कोई मोल नहीं है।