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क्षय रोगियों पर मनमानी की मार

By Edited By: Published: Mon, 01 Sep 2014 01:01 AM (IST)Updated: Mon, 01 Sep 2014 01:01 AM (IST)

जागरण संवाददाता, प्रतापगढ़ : क्षय रोग के इलाज व इसकी रोकथाम के लिए सरकार भले ही दावे करे, निश्शुल्क दवा दे, लेकिन बेल्हा के क्षय रोग अस्पताल में मनमानी है। यहां कई दवाइयां बाहर से खरीदने को मरीज विवश हो रहे हैं। इसके अलावा अन्य समस्याओं से भी मरीज दो-चार होते हैं।

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क्षय रोग से किसी की मौत न हो, इसके लिए सरकार डाट्स कार्यक्रम चलाती है। इसके तहत मरीज का चिह्नीकरण करके उसको दवा का कोर्स दिया जाता है। निर्धारित समय के अंतराल पर उसकी प्रगति जांची जाती है। यह रिपोर्ट विशेषज्ञों को जाती है और उसी के आधार पर दवाओं में बदलाव होता है। यह कार्यक्रम जिला मुख्यालय के साथ ही सीएचसी के सेंटरों पर भी चलता है।

गांव के अस्पतालों की बात छोड़िए जिला क्षयरोग केंद्र में ही कई तरह की समस्याएं हैं। यहां की चहारदीवारी दुरुस्त न होने से आवारा पशु परिसर में घूमते रहते हैं। इससे मरीजों व तीमारदारों को परेशानी होती है। सफाई की कमी यहां सदैव बनी रहती है। यहां आने वाले मरीज हाथ में पर्ची लेकर मेडिकल स्टोर की ओर जाते दिखते हैं, जबकि शासन की ओर से सारी दवाएं निश्शुल्क देने का नियम है। सेंटर पर आए कई मरीजों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जनरल दवा का अभाव बताकर उनको वापस कर दिया जात है। जब टीबी की पुष्टि हो जाती है, तभी कार्ड व कोर्स के अनुसार दवाएं मिलती हैं। इसके चलते संक्रमण, बलगम, खांसी, बुखार, दर्द, कमजोरी आदि की दवाएं महीनों बाहर से लेनी पड़ती हैं। यह समस्या आज से नहीं वर्षो से बनी हुई है। विभाग के अफसर इस ओर देखने को तैयार नहीं हैं।

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दस साल से ठप है एक्स-रे

प्रतापगढ़ : टीबी अस्पताल में एक्स-रे की मशीन बेकार पड़ी है। वह भी पूरे दस साल से। टीबी की पुष्टि के लिए एक्स-रे अनिवार्य होता है। ऐसे में मरीज बाहर से एक्स-रे कराने को विवश हैं। जिला अस्पताल में भी उनकी सुनवाई नहीं होती। वहां टीबी अस्पताल का केस बताकर वापस कर दिया जाता है। स्वास्थ्य विभाग इस बारे में सोचता तक नहीं। केवल क्षय रोग दिवस मनाकर वह अपना कर्तव्य पूरा मान लेता है।

---इनसेट---

''रोग की पुष्टि न होने तक कोर्स की दवाएं नहीं दी जा सकतीं। अस्पताल में में कोर्स की दवाएं ही मिलती हैं। खांसी, बुखार, दर्द, कमजोरी आदि की दवाएं मरीज के कहने पर ही लिखी जाती हैं। कभी-कभी मरीज के तीमारदार टॉनिक भी लिखने की जिद करते हैं, जो अस्पताल में तो आता नहीं''

-डा. वंदना जायसवाल, चिकित्साधिकारी


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