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'लिटिल उपन्यासकार' की जड़ें बेल्हा में

By Edited By: Published: Mon, 01 Sep 2014 01:01 AM (IST)Updated: Mon, 01 Sep 2014 01:01 AM (IST)
'लिटिल उपन्यासकार' की जड़ें बेल्हा में

पट्टी, प्रतापगढ़ : वह धरती जहां अमर कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने काफी वक्त बिताया। प्रकृति के सुकुमार कवि पंत जी ने रचनाएं लिखीं, आचार्य भिखारीदास ने हिंदी को समृद्ध किया। उसी धरती में हैं यशवर्धन की जड़ें, जिनको लिटिल उपन्यासकार के रूप में समूची दुनिया में पहचान मिली है। इस उपलब्धि ने बेल्हा को खास खुशी दी है।

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लोगों को हैरत में डालने वाले 12 वर्षीय उपन्यासकार यशवर्धन का पैतृक आवास व ननिहाल भी पट्टी नगर में स्थित है। छोटी उम्र में 250 पुस्तकों का अध्ययन कर 'प्रकृति' जैसे गंभीर विषय पर उपन्यास लिखकर पूरे विश्व में अपनी बुद्धि का लोहा मनवाने वाले यशवर्धन के दादा मूल रूप से तहसील क्षेत्र के आसपुर देवसरा क्षेत्र पंचायत के मझिगवां गांव के मूल निवासी हैं, जबकि लिटिल उपन्यासकार का ननिहाल भी पट्टी नगर में स्थित है।

वर्तमान में देश के सबसे छोटी उम्र के उपन्यासकार बनने वाले यशवर्धन की खबर जब रविवार को लोगों ने जागरण में पढ़ी तो यशवर्धन के पैतृक गांव मझिगवां एवं ननिहाल पट्टी नगर के लोग खुशी से झूम उठे। मझिगवां के प्रधान दयाशंकर वर्मा सहित क्षेत्र पंचायत सदस्य बलिराम मौर्य, अशोक ओझा, कैलाश वर्मा सहित तमाम ग्रामीणों ने गांव के नन्हें उपन्यासकार को इस ऊंचाई पर देखा तो उछल पड़े। दूसरी तरफ उनके ननिहाल कोठियार गली में नाना कुब्जाकांत त्रिपाठी के यहां जश्न सा माहौल रहा। वहां बधाई देने वालों का तांता लगा रहा।

12 वर्ष की उम्र में अंटार्टिका विषय पर उपन्यास लिखने वाले यशवर्धन के दादा प्रेम प्रकाश शुक्ल वर्तमान में इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत करते हैं। वहीं रहते भी हैं। यशवर्धन की मा डा. अर्चना शुक्ला का मायका भी पट्टी नगर के कोठियार गली में है। नाती की इस उपलब्धि पर ननिहाल में यशवर्धन के नाना कुब्जा कांत त्रिपाठी एवं नानी विद्यावती त्रिपाठी को बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। प्रधानाचार्य संगम लाल शुक्ल, पूर्व प्रधानाचार्य भगवान दास मिश्र, शिक्षक राजेश दूबे, राकेश मिश्र की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

वे कहने लगे कि चेतन भगत ने जिस तरह अपनी यादों को डायरी में सहेजकर रखा था और बाद मे उसे किताब का रूप देकर उपन्यास के स्टार बनकर उभरे। उसी तरह यशवर्धन का भी साहित्य सृजन है। यशवर्धन को अपने नाना के रूप में हिंदी साहित्य का मार्गदर्शक मिला। उनकी सोच को बेल्हा की हिंदी सेवा ने प्रेरणा दी।


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