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दस गुना तक सस्ता हो सकता है जेनरिक दवाओं से इलाज

धर्मेन्द्र मिश्रा, नोएडा जेनरिक दवाओं के इस्तेमाल से इलाज पांच से दस गुना तक सस्ता हो सकता है। कई

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 May 2017 01:00 AM (IST)Updated: Mon, 01 May 2017 01:00 AM (IST)
दस गुना तक सस्ता हो सकता है जेनरिक दवाओं से इलाज
दस गुना तक सस्ता हो सकता है जेनरिक दवाओं से इलाज

धर्मेन्द्र मिश्रा, नोएडा

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जेनरिक दवाओं के इस्तेमाल से इलाज पांच से दस गुना तक सस्ता हो सकता है। कई दवाओं के दाम में 50 गुना से 200 गुना तक का भी फर्क होता है। ड्रग विभाग का दावा है कि जेनरिक दवाएं ब्रांडेड से कम असरदार नहीं हैं। इसलिए, जनता इस पर पूरा भरोसा कर सकती है। ज्यादातर ब्रांडेड दवा बनाने वाली कंपनियां ही जेनरिक दवाएं भी बनाती हैं। दोनों ही दवाओं के सैंपल समय-समय पर प्रयोगशाला में जांच भी कराए जाते हैं।

ड्रग विभाग के अनुसार कुछ डॉक्टर जेनरिक दवाओं की गुणवत्ता को संदिग्ध बताकर मरीजों को गुमराह करने का काम कर रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं है। सिर्फ रख-रखाव, पैकेजिंग, रिसर्च व मार्केटिंग इत्यादि में कंपनियों के ज्यादा पैसे खर्च होते हैं। इस कारण ब्रांडेड दवाएं महंगी हो जाती हैं। जेनरिक दवाओं की पैकिंग सामान्य होती है। इनका प्रचार-प्रसार नहीं किया जाता। इसलिए यह सस्ती होती हैं, लेकिन इनकी गुणवत्ता ब्रांडेड से कम नहीं होती। हालांकि, कुछ जेनरिक दवाओं का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) ब्रांडेड दवाओं के आसपास ही होती है। इस वजह से मरीजों की जेब को उतना फायदा नहीं मिल पाता। विशेषज्ञ मानते हैं कि मूल्य नियंत्रण व गुणवत्ता के लिए सरकार कोई नियामक एजेंसी बनाए तो जेनरिक दवाओं से बेहतर कोई विकल्प नहीं है।

क्या हैं जेनरिक दवाएं:

जेनरिक व ब्रांडेड दवाओं का कंपोजीशन समान होता है। किसी बीमारी के लिए तमाम शोधों के बाद एक रासायनिक यौगिक को विशेष दवा के रूप में देने की संस्तुति की जाती है। इस यौगिक को अलग-अलग कम्पनिया अलग-अलग नामों से बेचती हैं। जेनरिक दवाओं का नाम उसमें उपस्थित सक्रिय यौगिक के नाम के आधार पर एक विशेषज्ञ समिति निर्धारित करती है। किसी भी दवा का जेनरिक नाम पूरी दुनिया में एक ही होता है। यह बिना किसी पेटेंट के बनाकर वितरित की जाती हैं। इनकी डोज, साइड- इफेक्ट, सामग्री आदि सभी ब्राडेड दवाओं के एकदम समान होती हैं। इनके मूल्य पर सरकारी अंकुश होता है।

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-जेनरिक दवाएं सस्ती तो हैं, लेकिन गुणवत्ता संदिग्ध है। जिन दवाओं पर सरकार निगरानी करती है, वह ज्यादातर एक्सपोर्ट होती हैं। घरेलू दवाओं पर निगरानी मजबूत करनी होगी। अभी सिर्फ प्राइसिंग पर ही कंट्रोल है। अगर यह कंट्रोल दोनों चीजों पर हो तो जेनरिक से बेहतर जनता के लिए कुछ नहीं है।

-आदर्श धवन, विशेषज्ञ

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-डॉक्टर मरीज का हमेशा हितैषी होता है। अगर ब्रांडेड व जेनरिक दवाओं में कोई फर्क नहीं होता तो मरीज जितना तेजी से ब्रांडेड दवाओं से ठीक होता है, उतनी तेजी से ही जेनरिक से भी ठीक होना चाहिए। लेकिन, ऐसा नहीं है। सरकार को एक नियामक एजेंसी बनानी चाहिए। फिर हमें कोई आपत्ति नहीं है।

-डॉ. सुनील अवाना, सचिव, आइएमए, नोएडा

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जेनरिक दवाएं ब्रांडेड की तरह ही लाभकारी और असरदार हैं। जो भी दवा बाजार में आती है, ड्रग विभाग उसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर सैंपलिंग करता रहता है। सिर्फ पैकेजिंग, रिसर्च इत्यादि के कारण ब्रांडेड दवा महंगी होती है, लेकिन जेनरिक की गुणवत्ता समान होती है।

-दीपक शर्मा, जिला औषधि निरीक्षक, गौतमबुद्ध नगर


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