नमो देव्यै, महा देव्यै : नारी सशक्तिकरण
इलाहाबाद में प्रयाग किनारे एक जनवरी 1947 में मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी आरके उषा को वकालत के सफर न
इलाहाबाद में प्रयाग किनारे एक जनवरी 1947 में मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी आरके उषा को वकालत के सफर ने बदल कर रख दिया। दिल्ली के पर्यटन विभाग में काम करते जीवन की सुंदरता को देखा था, वकालत में कदम रखते ही जीवन की वास्तविकता से सामना हुआ। तभी उन्होंने छोटे बच्चों को अपराध से दूर रखने का प्रण लेकर उनके लिए काम करने में लग गईं। पिछले पांच वर्षो में ग्रेटर नोएडा में झुग्गी के गरीब बच्चों को शहरवासियों के सहयोग से नई दिशा दे रही हैं।
आरके उषा ने बच्चों को शिक्षित करने के लिए विकास विश्रांति नाम से एक संस्था की स्थापना की है। यह संस्था शहर के गामा एक, डेल्टा वन, एच्छर गांव में बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रही है। उनकी इस मुहिम में 260 बच्चे जुड़े हुए हैं। उनके इस अभियान में 60 फीसदी लडकियां शामिल हैं। वह स्वयं लड़कियों को सशक्त करने में लगी हुई हैं।
शादी के बाद वर्ष 1970 में दिल्ली आई उषा ने कई साल सरकारी नौकरी करने के बाद वकालत की तरफ कदम बढ़ाया। वकालत ने उनके जीवन को बदलकर रख दिया। अपराध के दलदल में फंसे बच्चों को देखकर उनके मन को बहुत पीड़ा हुई। तब से वह छोटे बच्चों को शिक्षा देकर अपराध से दूर करने में लगी हुई है।
बच्चों का अच्छे स्कूलों में कराया दाखिला
आरके उषा होनहार एवं मेघावी बच्चों को शहर के अच्छे स्कूलों में दाखिला करा उनके जीवन को सवार रही हैं। इन स्कूलों में पढ़ाई का खर्च सेक्टर एवं शहर के लोगों के माध्यम से पूरी की जाती है। वह हर माह बच्चों के बारे में स्कूल प्रबंधन से जानकारी लेती रहती हैं।
बच्चों के लिए खोले घर के दरवाजे
आरके उषा ने बच्चों के लिए अपने घर के दरवाजे खोल दिए हैं। बच्चे गामा एक में उनके घर में सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, हस्तशिल्प आदि का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। प्रतिदिन दोपहर बाद बच्चे उनके घर में हस्तशिल्प में हाथ आजमाते नजर आते हैं।
विकास विश्रांति के उपसंस्थान
बच्चों के लिए अपना घर
बुजुर्गों के लिए अपना साथी