आज के गीतों में वह रवानी नहीं
नोएडा : इक प्यार का नगमा है, जिंदगी की न टूटे लड़ी, तेरा साथ है तो हमें क्या कमी है जैसे अमर गीतों
नोएडा : इक प्यार का नगमा है, जिंदगी की न टूटे लड़ी, तेरा साथ है तो हमें क्या कमी है जैसे अमर गीतों के रचयिता संतोष आनंद को एक हादसे ने पूरी तरह तोड़ दिया। कई महीनों तक बाहरी दुनिया से कटे रहे। इसके बावजूद उनके भीतर उबलते शब्दों के ज्वालामुखी ने अधिक समय तक शांत नहीं बैठने दिया। जिंदगी को नए सिरे से शुरू करने की ठानी। इन दिनों कवि सम्मेलनों और मुशायरों में शिरकत करते दिख जाते हैं। बकौल संतोष आनंद साहित्य का मतलब उनके लिए साधना है। दैनिक जागरण के संवाददाता प्रभात उपाध्याय ने संतोष आनंद से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के चुनिंदा अंश :
सवाल : पिछले दो दशकों में साहित्य में किस तरह का बदलाव आया है?
जवाब : सबसे पहले मैं आपको बदलाव या विकास के बारे में बताता हूं। पहले जिंदगी प्लेन थी। अब सिलबंट्टे का स्थान मिक्सी ने ले लिया है। यही बदलाव है। साहित्य का मतलब होता है सत्य के साथ। साहित्य वह है जो समाज के साथ खड़ा दिखे। वर्तमान साहित्य में संवेदनशीलता की कमी नजर आती है। साहित्य यानि हृदय से भोगा हुआ। पर अभी ज्यादातर रचनाएं बनावटी लगती हैं। लेखक छपने के लिए लालायित दिखते हैं। ¨हदी और अंग्रेजी दोनों का यही हाल है।
सवाल : इस समय जो गीत लिखे जा रहे हैं उनके बारे में आपकी क्या राय है?
जवाब : कविता और गीत लिखना हमारे लिए तपस्या थी। इस तपस्या का ही फल होता था कि गीत अमर हो जाते थे। लोगों की जुबान पर चढ़ जाते थे। वर्तमान में कुछ एक को छोड़कर ज्यादातर लेखक लतीफों को जोड़-तोड़ कर गीत लिख रहे हैं। पहले श्रोताओं की अंगुलियों पर गीतकारों का नाम होता था। पर अब गीतकार तो दूर कोई गीत भी याद नहीं रहता है। क्या आपने किसी को हाल-फिलहाल की फिल्मों के गीत गुनगुनाते हुए सुना है? लोग पुराने गाने गुनगुनाते हैं।
सवाल : आपके हिसाब से क्या कमी है? गीत लेखन में कहां सुधार की जरूरत है?
जवाब : कमी शब्दों में है, बोल में है। मैंने पहले भी कहा कि वर्तमान में गिने-चुने लोग ही हैं जिनके लिए गीत लेखन साधना है। सबसे पहली बात कि गीतों में माटी की खुशबू नहीं दिखती है। टुकड़ा-टुकड़ा जोड़कर गीत बना दिया जाता है। हमें इस नकारने की जरूरत है। जब हम इसे नकार देंगे तो अपने आप अच्छे गीत लिखे जाएंगे।
सवाल : ..और संगीतकारों के बारे में क्या ख्याल है?
जवाब : यह बहुत प्रासंगिक सवाल है। संगीत गीत की आत्मा होती है। गीतों के साथ संगीत भी गायब होता जा रहा है। भले ही तकनीकी ने हमारा काम आसान कर दिया हो, पर संगीत में मिठास नहीं दिखती है। पहले संगीतकार घंटों रियाज किया करते थे। अब इस रियाज की जगह सॉफ्टवेयर ने ले ली है।
सवाल : आपने 70 से 90 के दशक की फिल्मों को करीब से देखा है। तब की और अब की फिल्मों में क्या बदलाव आया है?
जवाब : देखिए फिल्मों में बदलाव नहीं होता है। फिल्म निर्माण की तकनीकी में बदलाव होता है पर विषय वही रहते हैं। या तो अच्छी फिल्में होती हैं या बुरी। अभी लोगों ने बाहुबली के तकनीकी पक्ष को काफी सराहा। मैंने भी देखी। मुझे एक बात समझ में नहीं आती है कि हीरो दो मिनट तक हवा में उड़ता रहता है। यह रियलस्टिक नहीं है। मुझे तो पसंद नहीं आता है। यह मेरा निजी विचार है? पहले चौक-चौराहे पर महीनों फिल्मों की चर्चा हुआ करती थी। अब ऐसा नहीं है। थोक के भाव फिल्में बन रही हैं, पर वह बात नहीं है।
सवाल : हाल के दिनों में आपको कौन सी फिल्में अच्छी लगीं?
जवाब : इधर मैंने ज्यादा फिल्में नहीं देखीं। पर दो फिल्मों का नाम लेना चाहूंगा। यह लगान और थ्री इडियट्स हैं। इन दोनों फिल्मों की खासियत यह है कि इनके विषय हमारे बीच से लिए गए हैं। जो हमें और आपको प्रभावित करते हैं। मैं एक बात कहना चाहूंगा कि फिल्मकारों को दर्शकों के ऊपर कंटेंट थोपने की जरूरत नहीं है। इसका नकारात्मक परिणाम होता है। समाजिक मुद्दों से विषय चुनिए और समाज के हवाले कर दीजिए।
सवाल : आपके पसंदीदा गीतकार कौन हैं?
जवाब : कई नाम हैं। शैलेन्द्र, शकील बदायुंनी, मजरूह सुल्तानपुरी आदि। इसकी वजह ये है कि इन लेखकों ने गीत को आम भाषा में लिखा। मैंने भी यही कोशिश की। गीतों में जबरदस्ती के शब्द नहीं ठूंसे। दरअसल, कठिन शब्द कविता का हनन करते हैं और आम लोगों से दूर तो होते ही हैं।
सवाल : आज-कल क्या कर रहे हैं?
जवाब : एक फिल्म के लिए गीत लिख रहा था, पर यह अभी अधूरा ही है। हां. कवि सम्मेलनों और मुशायरों में जरूर शिरकत कर रहा हूं। मेरा मानना है कि किसी भी लेखक को पहले अपने साथ न्याय करना चाहिए। अगर उसकी रचना उसे खुद पसंद है तो श्रोताओं और पाठकों को जरूर पसंद आएगी। जब मैंने इक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है, जिंदगी और कुछ नही, तेरी -मेरी कहानी लिखी तो कुछ लोगों ने इसकी आलोचना भी की। पर श्रोताओं ने इस गीत को अमर बना दिया। मैं चाहता हूं कि मेरे जाने के बाद मेरे पीछे इस गीत को गाएं।
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संक्षिप्त परिचय :
पूरा नाम : संतोष आनंद
जन्म स्थान : सिकंदराबाद, जिला- बुलंदशहर
जन्मतिथि : 5 मार्च 1939
शिक्षा : एएमयू से लाइब्रेरी साइंस में डिप्लोमा
प्रकाशित रचनाएं : गीतों के छड़, इक प्यार का नगमा है
कुल गीत : 26 से अधिक फिल्मों में 110 से अधिक गीत
पुरस्कार : फिल्म फेयर-1974 (फिल्म-रोटी कपड़ा और मकान), फिल्म फेयर- 1982 (फिल्म- क्रांति)