Move to Jagran APP

..ताकि जिंदा रहे मिंट्टी की कला

By Edited By: Published: Sun, 21 Sep 2014 11:34 PM (IST)Updated: Sun, 21 Sep 2014 11:34 PM (IST)
..ताकि जिंदा रहे मिंट्टी की कला

मनोज त्यागी, नोएडा

loksabha election banner

अस्सी वर्ष के बुजुर्ग हरचन प्रजापति की हाथों-पैरों की हड्डियों से लगभग मांस भी खत्म हो चुका है। परंतु काम का जज्बा ऐसा की अभी मिंट्टी मिल जाए, तो बर्तन बनाकर ढेर लगा दें। यादों के बारे में वह बताते हैं कि उस समय मिंट्टी की किल्लत नहीं होती थी। आसानी से ही गांव के बाहर ही मिल जाती थी। बर्तन बनाकर किसानों के घर पहुंचाते थे। बदले में किसान अनाज देते थे। यही अनाज परिवार के पालन पोषण का एक मात्र जरिया हुआ करता था। नोएडा क्या बसा, मिंट्टी के लाले पड़ गए। अब तो दूर से मिंट्टी लानी पड़ती है और उसके बर्तन बनाकर बेचने के लिए जगह भी नहीं मिल पाती है। मिंट्टी न मिलने के कारण बच्चों ने काम बदलना शुरू कर दिया। अब भी जिले भर में बहुत से लोग मिंट्टी के बर्तन बनाकर बेचते हैं। परंतु मिंट्टी की किल्लत लगातार बढ़ती जा रही है।

करीब बीस साल पहले यहां प्रजापतियों के नौ गांवों के लिए नौ बीघा जमीन प्राधिकरण ने दी थी। वह अब तक सिर्फ कागजों में ही है। अब सरकार ने कहा है कि वह प्रजापतियों को मिंट्टी के लिए जगह देगी और उनके बनाए बर्तनों को सरकारी दफ्तरों में इस्तेमाल किया जाएगा। हो सकता है कि दोबारा से हम लोग लुप्त होती परंपरा और कला को पुनर्जीवित कर सकें।

यह स्थिति अकेले हरचन की नहीं है, बल्कि जिले में रहने वाले करीब 20 हजार परिवारों की है। प्रजापति समाज को सरकार के उस आदेश के बाद जिसमें सरकारी दफ्तरों में मिंट्टी के बर्तन इस्तेमाल करने के लिए कहा गया है। इससे आस जुड़ी है कि अब वह दोबारा से अपने पुस्तैनी काम को कर सकेंगे।

प्रजापति अर्जुन बताते हैं कि सुबह चार बजे जब हम लोग गधे लेकर जाते थे, तो गांव के दूसरे लोगों को दिक्कत होती थी। आपस में उन्होंने सलाह कर हम लोगों को गांव के बाहर बसा दिया था। ताकि उनकी नींद में खलल न पड़े।

प्रजापति मनोज मानते हैं कि मिंट्टी के अभाव में युवा पीढ़ी ने दूसरे काम को अपनाना शुरू कर दिया था। परंतु अब हम लोग अपनी परंपरा को आगे बढ़ा सकेंगे। आज पर्यावरण की दुहाई दी जाती है। मिंट्टी के बर्तनों से जहां बिजली की खपत कम होगी, वहीं पर्यावरण पर विपरीत असर नहीं पड़ेगा। सरकार को मिंट्टी के बर्तन बेचने के लिए भी स्थान देने की व्यवस्था करनी चाहिए। ताकि उन्हें बाजार में आसानी से बेचा जा सके। वह बताते हैं कि उन्हीं की जाति के एक व्यक्ति ने गुड़गांव में बिना बिजली का एक फ्रिज बनाया था जिसमें 35 लीटर पानी एक बार में ठंडा किया जा सकता है। सरकार के जमीन देने पर वे लोग भी अपनी परंपरा और कला को आधुनिक शैली में ढालेंगे।

कई गांव में होता है मिंट्टी के बर्तन बनाने का काम

नोएडा के गांव हरौला, मोरना, चौड़ा रघुनाथपुर, गिझौड़, निठारी, छलेरा, झुंडपुरा, सदरपुर, छलेरा में पहले मिंट्टी के बर्तन बनाने का काम होता था। परंतु मिंट्टी की कमी के कारण अब मोरना, गिझौड़, चौड़ा रघुनाथपुर और छलेरा में ही मिंट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं।

मिंट्टी के बर्तन बनाने वाले सामान से हो जाता था कई तरह का इलाज

मिंट्टी के बर्तन बनाने वाले थापा, चाक व धागे से कई तरह के रोगों का इलाज भी किया जाता था। इस बारे में हरचन बताते हैं कि यदि किसी को टाउंसिल हो जाता थे, तो मिंट्टी के बर्तन बनाते समय उन्हें आकार दिए जाने वाले थापा से टाउंसिल वाली जगह पर लगाने से बीमारी दूर हो जाती थी। बूढ़ा बाबू की आज भी पूजा की जाती है। वहां की मिंट्टी किसी भी तरह के चर्म रोग पर लगाने से ठीक हो जाता था।

अब होता है आधुनिक चाक का इस्तेमाल

पुराने समय में बर्तन बनाने वाले चाक (गोल चक्का) को एक डंडे के द्वारा घुमाया जाता था। इसके बाद ही बर्तन बनाने की प्रक्रिया होती थी। जमाना बदल गया है अब बिजली के मोटर से चलने वाली चाक बाजार में आ गई है। प्रजापति समाज अब उसी का इस्तेमाल करता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.