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सियासत, पुलिस और बदमाशों का गठजोड़

मुजफ्फरनगर महिमा की आत्महत्या अवसाद का नहीं बल्कि सियासत, पुलिस और बदमाशों के बीच गहरे गठजोड़ का द

By Edited By: Published: Mon, 20 Feb 2017 12:18 AM (IST)Updated: Mon, 20 Feb 2017 12:18 AM (IST)
सियासत, पुलिस और बदमाशों का गठजोड़
सियासत, पुलिस और बदमाशों का गठजोड़

मुजफ्फरनगर

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महिमा की आत्महत्या अवसाद का नहीं बल्कि सियासत, पुलिस और बदमाशों के बीच गहरे गठजोड़ का दुष्परिणाम है। यह घटना जितनी दुखद है, समाज के लिए उतनी ही आत्मावलोकन योग्य भी। आखिर कानून के राज में एक गरीब परिवार किस हद तक प्रताड़ित हो सकता है, महिमा की आत्महत्या की घटना इस बात की गवाह है। इस घटना के लिए जितने जिम्मेदार दबंग हैं, उससे कम जिले की पुलिस और सियासत भी नहीं।

अगवा भाई अक्षय को दबंगों के चंगुल से छुड़ाने के लिए बहन महिमा अपनी मां संजू देवी के साथ पुलिस से लेकर राजनेताओं के चक्कर काटती रही, लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी। मां संजू देवी के नाम से महिमा ने 14 फरवरी को एसएसपी को प्रार्थना-पत्र देकर पिता देवप्रकाश व भाई अक्षय को दबंगों के चंगुल से छुड़ाने की मांग पुलिस से की थी। इस प्रार्थना-पत्र पर हस्ताक्षर जरूर संजू देवी के थे, लेकिन इबारत महिमा ने लिखी थी। इसमें संजू देवी ने साफ लिखा था कि केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के इशारे पर 10 फरवरी से पुलिस की मिलीभगत से पचेंडा के युधिष्ठिर पहलवान ने उनका बेटा अगवा किया हुआ है। यह भी बताया था कि उनके परिवार को धमकी मिल रही थी कि पुलिस के किसी बड़े अधिकारी या मीडिया के पास गए तो उनके परिवार के लिए अच्छा नहीं होगा। एसएसपी को तहरीर देने के साथ ही पीड़िता संजू देवी केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के घर भी पहुंची। हालांकि वहां उन्हें मंत्री नहीं मिले, पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक ने भी स्वीकारा कि मृतका महिमा इंसाफ की गुहार लगाने उनके आवास भी पहुंची थी, लेकिन दुर्भाग्य से वह उस समय घर पर नहीं थे, फोन पर ही उन्होंने आश्वासन दिया था। बावजूद संजू देवी और महिमा की सुनवाई कहीं नहीं हो पाई। आखिर वे क्या कारण थे कि तहरीर दिए जाने के बावजूद संजू देवी की एफआइआर दर्ज नहीं की गई। बदमाश घर आकर संजू देवी के परिवार को धमकाते रहे। बार-बार इस मामले में केंद्रीय मंत्री का नाम आता रहा, लेकिन उन्होंने आरोपों को झूठा साबित करने के लिए पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए मोर्चा क्यों नहीं खोला? अक्षय को अगवा करने के बाद व महिमा की आत्महत्या करने से लेकर अंतिम संस्कार तक आरोपी खुलेआम पीड़ितों के घर आते-जाते रहे उन्हें धमकाते रहे और पुलिस उनकी निगाहबानी करती रही। ऐसे में क्या यह स्वयं ही साबित नहीं होता कि महिमा की आत्महत्या साफ तौर से पुलिस, बदमाश और सियासत के खुले गठजोड़ का परिणाम रही। इस गठजोड़ का ही परिणाम रहा कि महिमा की आवाज नक्कारखाना में तूती की तरह दबकर रह गई। यह इस गठजोड़ की दहशत का ही परिणाम है कि मृतका का पिता देवप्रकाश रविवार को शोकसभा में भी नहीं पहुंच पाया।


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