अदब से 'तलवार' तक मुजफ्फरनगर की खुशबू
प्रवीण वशिष्ठ, मुजफ्फरनगर मैं कोई फूल नहीं हूं, जो बिखर जाऊंगी, मैं तो खुशबू हूं दिमागों मे
प्रवीण वशिष्ठ, मुजफ्फरनगर
मैं कोई फूल नहीं हूं, जो बिखर जाऊंगी,
मैं तो खुशबू हूं दिमागों में उतर जाऊंगी।
इन पंक्तियों की रचयिता खुशबू शर्मा को देश के कोने-कोने में अपनी शायरी के लिए भरपूर दाद मिल चुकी है। मुजफ्फरनगर की इस बेटी ने अब अभिनय की ओर कदम बढ़ा दिया है। शुक्रवार को प्रदर्शित फिल्म तलवार में उनकी टीवी एंकर की भूमिका है।
नगर के मोहल्ला आनंदपुरी निवासी खुशबू का परिवार करीब एक सदी पहले कश्मीर से मुजफ्फरनगर आकर बस गया था। उनके परदादा जर्नादन स्वरूप रोशन, दादा सतपाल रोशन और पिता डा. मुकेश दर्पण से मिली उर्दू शायरी की विरासत को खूशबू ने बखूबी संभाला। उन्होंने देश के कोने-कोने में अपने कलाम से श्रोताओं को प्रभावित किया। टीवी चैनलों पर भी उनकी शायरी और अन्य विषयों पर आधारित कार्यक्रमों को पसंद किया गया है। खुशबू बताती हैं कि चर्चित आरुषि हत्याकांड पर बनी फिल्म तलवार के का¨स्टग डायरेक्टर से उनके बारे में किसी परिचित ने चर्चा की थी। इसके बाद उन्हें आडिशन के लिए बुलाया गया और उनका चयन हो गया। शू¨टग शूरू हुई, लेकिन बीच में ही एक चैनल के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के कारण उन्हें शू¨टग बीच में ही छोड़कर आना पड़ा। ऐसे में उन्होंने सोच लिया था कि उनके स्थान पर किसी और का चयन कर लिया गया होगा, लेकिन शुक्रवार को प्रदर्शित तलवार में अपना काम देखकर खुशबू को सुखद आश्चर्य हुआ। बताया जाता है कि उनके द्वारा किया गया काम फिल्म निर्देशक मेघना गुलजार को बहुत पसंद आया और इसे ही फिल्म में शामिल कर लिया गया। खुशबू ने बताया कि उनका पहला जुनून तो शायरी ही है। लेकिन टीवी कार्यक्रमों की एंक¨रग के बाद अब अभिनय में भी शुरुआत हो गई है। दो और फिल्मों के भी आफर मिले हैं। उधर फिल्म में उनके काम को देखकर पिता डा. मुकेश दर्पण, माता राजबाला, छोटी बहन जूही और भाई सनी बहुत खुश हैं।