सीताराम जला रहे इल्म का चिराग
मुजफ्फरनगर : सेवानिवृत्ति.। एक ऐसा पड़ाव, जिस पर पहुंचकर सब कुछ 'स्थिर' सा हो जाता है। इस अवस्था में
मुजफ्फरनगर : सेवानिवृत्ति.। एक ऐसा पड़ाव, जिस पर पहुंचकर सब कुछ 'स्थिर' सा हो जाता है। इस अवस्था में कोई परवरदिगार से लौ लगाने की सोचता है तो कोई छूटे हुए कामों को पूरा करने की। पर, जिसमें समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, उन्हें न तो उम्र की सीमाओं में बांधा जा सकता और न उनके जुनून को कैद करना मुमकिन है। ऐसे ही कर्मयोगी हैं सीताराम। सेवानिवृत्ति के बाद न तो वे बचे हुए कामों को पूरा कर रहे और न उनकी कोई और आरजू है। सेवाकाल में जो शिक्षण का जुनून था, वह आज भी कायम है। शिक्षण और बच्चों से लगाव के कारण सेवानिवृत्ति के बाद भी पढ़ा रहे हैं। जिंदगी की आखिरी सांस तक वह तालीम का चिराग जलाने के ख्वाहिशमंद हैं।
झांसी की रानी स्थित पूर्वी पाठशाला में प्रधानाध्यापक रहे गांव सूजड़ु निवासी सीताराम की नियुक्ति 1968 में बतौर सहायक अध्यापक हुई थी। नियुक्ति के दिन ही उन्होंने बच्चों को तराशकर उनका भविष्य उज्जवल बनाने की ठान ली थी।
सेवानिवृत्ति के बावजूद शिक्षण जारी
राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजे जाने के बाद सीताराम 30 जून 2013 को सेवानिवृत्त हो चुके हैं। बावजूद इसके वह नियमित रूप से झांसी रानी स्थित पूर्वी परिषदीय विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने जाते हैं। इसके लिए बीएसए उन्हें व्यक्तिगत रूप से सम्मानित कर चुके हैं।
घर से लाते हैं बच्चों को बुलाकर
परिषदीय विद्यालय पूर्वी पाठशाला में सीताराम ने करीब 35 वर्ष तक बच्चों को पढ़ाया। उनकी एक विशेष आदत आज तक कायम है। जो बच्चा कक्षा से एक या दो दिन अनुपस्थित हो जाता है, वह खुद उसे बुलाने उसके घर पहुंच जाते हैं।
50 से अधिक को दिला दी उच्च शिक्षा
मास्टर सीताराम पढ़ाते तो कक्षा पांच तक के बच्चों को ही हैं, लेकिन उन्होंने सैकड़ों को उच्च शिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर करीब 50 शिष्यों को उच्च शिक्षा ग्रहण कराने में आर्थिक सहायता भी की।
अपने बूते चलवा रहे दो विद्यालय
सेवानिवृत्ति के बाद सीताराम बीएसए की लिखित अनुमति पर पूर्वी परिषदीय विद्यालय में आज भी शिक्षण कर रहे हैं। पंचमुखी में काफी पहले बंद हो चुके जू.हा. का संचालन भी पूर्वी परिषदीय विद्यालय की ऊपरी मंजिल पर अपनी देखरेख में करा रहे हैं।
राष्ट्रपति ने किया पुरस्कृत
विद्यालय में नियमित रूप से बच्चों को पढ़ाने व शिक्षा से जुड़ी विभिन्न योजनाओं का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन करने पर सीताराम को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने राष्ट्रीय पुरस्कार-2007 से नवाजा था।