क्या, यही वो 'खूनी चौराहा' है?
मुजफ्फरनगर :
अरे, क्या यही है वो कवाल का खूनी चौराहा? यहीं तीन लाशें बिछी थीं? देश के माथे पर सांप्रदायिक हिंसा का दाग इसी जगह पर हुई वारदात के कारण लगा था? देखने से तो ये गांव ऐसा नहीं लग रहा। आखिर किसके भड़काने के बाद इतनी बड़ी घटना हुई? ये उत्सुकता और सवालात उन पुलिस कर्मियों की जुबां पर थे, जिन्हें गुरुवार को कवाल में सुरक्षा व्यवस्था के लिए ड्यूटी पर लगाया गया था।
गौरव और सचिन की बरसी को लेकर कवाल में सुरक्षा व्यवस्था के लिए गुरुवार अलसुबह ही पुलिस बल का मैदान में उतार दिया गया। गैर जनपदों से आए कुछ पुलिसकर्मियों और आरएएफ की ड्यूटी उस चौराहे पर लगाई गई, जहां गौरव, सचिन और शाहनवाज की लाशें गिरी थीं। पुलिस अधिकारियों ने जब इस चौराहे पर खासतौर पर मुस्तैद रहने का निर्देश देते हुए पुरानी घटना का मामूली हवाला दिया तो सभी के जेहन में कई सवाल कौंध गए। अधिकारियों के जाने के बाद पुलिस कर्मी और आरएएफ जवान चर्चा करते रहे कि क्या यह वही कवाल का खूनी चौराहा है, जहां तीन कत्ल हुए थे। एक जवान ने बताया कि यहीं से दंगे की आग भड़कनी शुरू हो गई थी और इसके बाद सात सिंतबर को लावा फूट पड़ा। लोगों के दिल में सांप्रदायिक नफरत की आग इसी हत्याकांड के बाद भड़कनी शुरू हो गई थी। घटना के बारे में कुछ पुलिसकर्मियों ने आसपास के लोगों से भी बात करनी चाही, लेकिन हर कोई यही कहता दिखाई दिया कि छोड़ो साहब, पुरानी बातों पर मिट्टी डालो। अब तो सब शांत ही है।