पांच लाल पी गये थे जाम-ए-शहादत
मोरना (मुजफ्फरनगर) :
कारगिल युद्ध..। भारत माता के चरणों में शीश चढ़ाने वाले अमरत्व को प्राप्त हो गये लेकिन शौर्य के कागज पर बलिदान की स्याही से लिखी वह गाथा आज तक अमिट है। इधर दुश्मन की तोपें मुंह खोलकर काल बनी खड़ी थीं तो उधर मातृभूमि थी.। जब मादर-ए-वतन से मोहब्बत थी तो मौत की परवाह क्योंकर होती। शायद, यही सोचकर टूट पड़े दुश्मन पर और हलाक कर दिया एक-एक को। अंत में आंखें मूंद लीं उसी भारत माता की गोदी में, जिसमें बचपन ने कुलाचें भरी थीं। सरहद पर शहीद हुए जिले के पांच वीर जवानों की शहादत को याद कर आज भी सीना फº से चौड़ा हो जाता है।
1999 के कारगिल युद्ध में 'आपरेशन विजय' के दौरान जिले के पांच वीर सपूतों ने मातृ भूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर किये थे।
काक्षर पहाड़ी पर छुड़ाए दुश्मनों के छक्के
कारगिल युद्ध में शहीद हुए बुढ़ाना के गांव इटावा निवासी नरेंद्र राठी पांच जून को कारगिल में काक्षर की पहाड़ी पर दुश्मनों के छक्के छुड़ा रहे थे। दुश्मन सैनिकों ने उनकी टुकड़ी पर बम से निशाना साधा, जिसमें वह शहीद हो गये। शहीद की पत्नी अनीता को अपने पति की शहादत पर गर्व है।
खालूबार शिखर पर शहीद हुए थे रिजवान
बुढ़ाना क्षेत्र के ही गांव विज्ञाना निवासी शहीद रिजवान त्यागी को आपरेशन विजय के दौरान बटालिक सेक्टर में 22 ग्रेनेडियर्स की ओर से खालूबार शिखर पर प्वाइंट 4812 और 5287 इलाकों पर कब्जा करने का टास्क मिला था। तीन जुलाई की शाम छह बजे खालूबार शिखर पर दुश्मन की सेना के सामने थे लेकिन बर्फ पड़ने से धुंध छा गयी। बहादुर रिजवान ने अपने दो साथियों के साथ 40-50 मीटर दक्षिण की तरफ दुश्मन के बंकर पर जवाबी हमला बोल दिया। दोनों पैर और दाहिने हाथ गोली लगने से रिजवान घायल हो गये। इसके बाद भी गोला फेंकते गए और वीरगति को प्राप्त हो गये।
फतेह की थी तोलोलिंग की चोटी गांव पचेंड़ा कला निवासी लांस नायक बचन सिंह को 12 जून 1999 में आपरेशन विजय के तहत उनकी बटालियन द्वितीय राजपूताना राइफल्स को तोलोंलिंग की चोटी पर कब्जा करने का आदेश प्राप्त हुआ। चारों ओर से बरसती गोलियों के बीच बचन सिंह ने अपूर्व वीरता दिखाते हुए अपने साथियों के साथ तोलोलिंग की चोटी पर विजय प्राप्त कर ली। इसी दौरान सिर में गोली लगने से वह शहीद हो गये।
बेटे की शहादत पर गर्व
भोपा क्षेत्र के गांव बेलड़ा निवासी अमरेश पाल 12 माहर रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। कारगिल युद्ध में उन्होंने विजय पताका फहराई और दुश्मनों की गोली से शहीद हो गये। शहीद के पिता फूल सिंह व माता अतरकली बेटे के खोने का गम भुला नहीं पाये हैं। बेटे का जिक्र छिड़ते ही छलकती आंखों से कहते हैं, उसने देश के लिए शहादत दी, इसका उन्हें गर्व है। बेटा निखिल कुमार कक्षा 12 में बेटी पूजा कक्षा 10 में पढ़ रही है।
दुश्मनों के दांत कर दिये थे खट्टे
खतौली क्षेत्र के गांव फुलत निवासी सतीश कुमार 238 इंजीनियर रेजीमेंट में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध में उन्होंने दुश्मन से लोहा लेते हुए देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनके पिता धर्मपाल बेटे की शहादत पर गर्व करते है। शहीद की पत्नी विमलेश फº से कहती हैं-बेटा अतुल व बेटी रुपाली व झलक भी अपने पिता की तरह देश की रक्षा करेंगे।