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गेहूं की बालियां बनीं तालीम का जरिया

रईस शेख, मुरादाबाद तालीम हमें इंसानियत और तहजीब सिखाती है। इसे हासिल करने बाद ही मनुष्य बुद्धिजीवी

By JagranEdited By: Published: Sat, 29 Apr 2017 02:15 AM (IST)Updated: Sat, 29 Apr 2017 02:15 AM (IST)
गेहूं की बालियां बनीं तालीम का जरिया
गेहूं की बालियां बनीं तालीम का जरिया

रईस शेख, मुरादाबाद

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तालीम हमें इंसानियत और तहजीब सिखाती है। इसे हासिल करने बाद ही मनुष्य बुद्धिजीवी और महान बनता है। मजहब व धर्म भी तालीम हासिल करने की नसीहत देते हैं। तालीम हासिल करने के लिए ही कुंदरकी ब्लाक के गांव लालपुर गंगवारी के कई बच्चे खेतों से गेहूं की बाली बीन कर किताब और फीस का आंशिक खर्च चलाते हैं। इस मेहनत और मशक्कत के बाद भी उनमें तालीम जारी रखने का जज्बा कायम है। बच्चों के इस जज्बे को बनाए रखने के लिए डॉ. जावेद का योगदान भी कम नहीं है।

गांव में कक्षा एक से आठ तक तालीम हासिल करने वाले 15-20 छात्रों के परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। गेहूं की कटाई इन परिवारों की जीविका का मुख्य साधन है। कटाई के बाद खेत में गिरी गेहूं की बालियां बेचकर बच्चे अपनी किताब और सालभर की फीस जमा करते हैं।

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ऐसे चलता है सिलसिला

कटाई होने के दौरान गांव के बच्चे इकट्ठा होकर जंगल की ओर निकलते हैं। कुछ शौक में तो कुछ मजबूरी में गेहूं की बालियां बीनते हैं। कक्षा आठ की महजबी व नूरे सबा पुत्री अकबर हुसैन व चांदनी, निकिता, योगेश, राजा, मनोज कहते हैं कि कटाई के सीजन में 50 किलो से एक कुंतल तक गेहूं इकट्ठा कर लेते हैं। जो सात सौ रुपये से 15 सौ रुपये में बिक जाता है। यह पैसा किताब खरीदने में काम आता है। जो बचता है उससे स्कूल की आंशिक फीस जमा करते हैं। इस काम में एमजे एकता पब्लिक स्कूल के प्रबंधक का सहयोग मिलता है।

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फोटो- डॉ. जावेद

50 से अधिक बच्चे हासिल कर चुके तालीम

गरीब परिवारों के बच्चों में तालीम का माहौल बनाने में डॉ. जावेद मुख्य भूमिका निभाते हैं। वह इन परिवारों को प्रेरित कर बच्चों का स्कूल में दाखिला व आंशिक फीस जमा कराते हैं। जावेद कहते हैं 50 से अधिक बच्चे गेहूं की बाली बीन कर आठवीं तक की तालीम हासिल कर चुके हैं।

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स्कूल में कई छात्र-छात्राएं आंशिक फीस जमा कर तालीम हासिल कर रहे हैं। इनसे नाम मात्र फीस ही ली जाती है।

नन्हू हुसैन, प्रबंधक एमजे एकता पब्लिक स्कूल लालपुर गंगवारी

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बच्चों को तालीम दिलाना जरूरी है। गेहूं की बालियां बेचकर किताबें व फीस जमा कर दी जाती है।

- अकबर हुसैन, महजबी के पिता


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