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आइए, गरीबों की झोपड़ी में जलाएं खुशियों के दीप

मुरादाबाद : दीपों का पर्व दीपावली, गरीबों में खुशियां बांटने का मौका। समाज में बुराई रूपी अंधेरे को

By Edited By: Published: Thu, 23 Oct 2014 12:47 AM (IST)Updated: Thu, 23 Oct 2014 12:47 AM (IST)
आइए, गरीबों की झोपड़ी में जलाएं खुशियों के दीप

मुरादाबाद : दीपों का पर्व दीपावली, गरीबों में खुशियां बांटने का मौका। समाज में बुराई रूपी अंधेरे को मिटाकर अच्छाई की रोशनी फैलाने का दिन। इस दिन आमजनों को लक्ष्मी का इंतजार, अन्नदाता को खेतों से सोना बरसने की आस। व्यापारियों को मौसम के साथ कारोबार में गरमाहट की उम्मीद। यह पावन पर्व हर तबके के लिए अलग-अलग खुशी लेकर आता है। बच्चों से लेकर बुजुर्ग भी इसका बेसब्री से इंतजार करते हैं, लेकिन हमारी मामूली नासमझी इस त्योहार के उल्लास को फीका कर देती है।

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त्योहार की खुशियों के नाम पर हम करोड़ों रुपये आतिशबाजी के धुएं में उड़ा देते हैं। मानक 125 डेसीबल तक के पटाखे छोड़ने का है, लेकिन आतिशबाजी की प्रतिस्पर्धा में इसे काफी पीछे छोड़ देते हैं। तेज आवाज के बम छोड़ते हैं, गगनचुंबी राकेट भी चलाते हैं। चाइनीज पटाखे छोड़कर देश की अर्थव्यवस्था को भी चोट पहुंचाते हैं। हम भूल जाते हैं कि आतिशबाजी का जहरीला धुआं जब वातावरण में घुलता है तो उन गरीबों की जिंदगी में जहर घोल देती है जिनका यह त्योहारी दिन भी दो वक्त की रोटी की जद्दोजहद में बीतता है। वह चाहकर भी दीपावली की खुशियों से सरोकार नहीं रख पाते। तेज धमाकों से कई लोग बहरे तक हो जाते हैं, राकेट से आग लगने का भी खतरा रहता है। कई लोगों की आंखों को भी नुकसान पहुंच जाता है। इतना ही नहीं, यह धुआं पर्यांवरण के लिए किसी कैंसर से कम नहीं है।

आज हम दीपावली की खुशियों में सराबोर हैं, अपने घर को रंगाई-पुताई कर हमने चमन बनाया है। खुद के अलावा बच्चों को भी नए कपड़े खरीदे हैं। मिठाई, ड्राईफ्रूट व गिफ्ट हमने लिए भी हैं और प्रियजनों को भेंट भी किए हैं। क्या हमने उन गरीबों को अपनी खुशी में हिस्सेदार बनाया है? जो दीपावली का त्योहार हमारी तरह मनाना तो चाहते हैं पर टकटकी लगाने के अलावा उनके हिस्से में कुछ नहीं आता। दैनिक जागरण ने 'जलाएं खुशियों के दीप' अभियान चलाकर उन गरीबों का दर्द आपके सामने रखा है, जिनकी झोपड़ी आज भी डिब्बी से रोशन होती है। ठिठुरती रातों में उनके सामने फूस की गर्मी लेने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं रहता। जिनके बच्चों के हिस्से में मिठाई के डिब्बे में बचे टुकड़े ही आते हैं। आसमान में चलते राकेट को देखकर ही वह आतिशबाजी का आनंद लेते हैं। फिर, इस पर्व पर घर से निकलिए। गरीबों के घरों पर दस्तक देकर उन्हें मिठाई का वितरण करें, गरीबी की वजह से स्कूल न जाने वाले बच्चों के खर्चे का बंदोबस्त करें। ठंड की चिंता से दूर करने के लिए उन्हें गर्म कपड़े दें, झोपड़ी की जिंदगी से छुटकारा दिलाकर सरकारी आवासीय योजनाओं का लाभ दिलाने में मददगार बनें, तभी हम वास्तविक खुशियों के दीप जला सकेंगे।


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