शहर में ताला, गांव में दरवाजे गायब
मुरादाबाद। शौचालय के नाम पर सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किए, लेकिन धरातल पर कहानी इससे जुदा है। निर्माण के महज चार से छह साल के अंदर बीस से तीस फीसद शौचालय जर्जर हो चुके हैं। शहरी क्षेत्र के विद्यालयों के शौचालय में ताला लगा है तो गांव में दरवाजे ही गायब हैं। मजबूरन छात्रों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री ने शौचालयों को लेकर अपनी मंशा स्पष्ट की है तो इन बच्चों में उम्मीद किरण दिख गई। पेश है शौचालयों की पड़ताल करती राघवेंद्र शुक्ल की रिपोर्ट-
प्राइमरी स्कूल दांग
एक कमरे में एक दर्जन छात्र। कौन किस क्लास का मालूम नहीं। पढ़ाने में मशगूल प्रधानाध्यापक तहव्वुर हुसैन से जब शौचालय के बारे में पूछा गया तो सामने की ओर हाथ दिखाया। एक शौचालय खुला था तो दूसरे में लटका मिला ताला। थोड़ी देर के लिए प्रधानाध्यापक गायब। जब लौटे तो दूसरे शौचालय की चाभी हाथ में थी। ताला खुला तो शौचालय चकाचक दिखा। पाइप लाइन से जलापूर्ति। छोटा वॉश बेसिन भी। जबकि खुला शौचालय बदहाल। पानी के लिए हैंडपंप ही एक मात्र सहारा। मुस्कान, गुड्डी, नाजिया, अनुषा जैसी तमाम छात्राओं को इसी गंदगी के बीच से गुजरना पड़ता है। कारण साफ है। इन मासूमों से तो हैंडपंप का हैंडिल भी ठीक ढंग से नहीं चल पाता। यहीं जूनियर हाईस्कूल भी है। यहां पढ़ाई की जगह उर्दू की ट्रेनिंग चलती मिली। दो शौचालय थे, पर दोनों में ताला लटका था।
प्राइमरी स्कूल शाहपुर तिगरी। यहां के शौचालय में भी ताला लटका था। बाहर से झाड़ झंखाड़। देखने से लगता है कि कई दिनों से खुला ही नहीं। यहां के छात्र अनस और अरमान कहते हैं कि शौचालय है लेकिन पानी बाहर के हैंडपंप से लेने जाना पड़ता है।
प्राइमरी स्कूल डिडौरा
शौचालय की संख्या दो। दोनों की सीट गायब। दरवाजे भी नदारद। स्कूल के छात्र दीपक, अनुज, सत्येंद्र, सौरभ कहते हैं कि गंदगी के कारण खुले में शौच जाना पड़ता है।
लोकसभा चुनाव के दौरान सभी शौचालय दुरुस्त कराए गए थे। जून में छुट्टी थी। इस दौरान ही कुछ शौचालय की सीट गायब हो गई। इसकी सूची बनवाने का निर्देश बीईओ को दिया गया है। एक माह के अंदर खराब सभी शौचालय सही करा दिए जाएंगे। इसके अलावा जहां ताला बंद रखा जा रहा है, वहां के प्रधानाध्यापक के खिलाफ कार्रवाई होगी।
-मुन्ने अली, बीएसए
मानीटरिंग न होने से बदहाल
स्कूल निर्माण के साथ ही शौचालय बनाने के 35 हजार रुपये पंचायती राज विभाग को बेसिक शिक्षा विभाग देता था। निर्माण का कार्य वहीं से होता था। मानीटरिंग के अभाव में तमाम स्कूलों के शौचालय में गुणवत्ता से समझौता हुआ और नतीजा सामने है। चार से दस साल के अंदर ही शौचालय इतने जर्जर हो गए कि वह कई दशक पुराने प्रतीत होते हैं।
70 हजार में एक शौचालय
सर्व शिक्षा अभियान के तहत बीते साल से शौचालय निर्माण का बजट बढ़ा। 35 हजार से बढ़ाकर इसे 70 हजार किया गया। बदले में बेहतर क्वालिटी की सीट, पानी की टंकी, वाटर सप्लाई के लिए पाइप लाइन, हाथ धोने के लिए वॉश बेसिन। डिलारी ब्लाक में ऐसे छह विद्यालय चिह्नित कर उनमें ये सुविधाएं दी गई हैं।