हैंडलूम के ताने-बाने में नकदी की गांठ
संतोष शुक्ल,मेरठ मेरठ के धागों की कारीगिरी ने सिल्वर स्क्रीन को नई चमक दी। सुपरहिट फिल्म 'मैंने
संतोष शुक्ल,मेरठ
मेरठ के धागों की कारीगिरी ने सिल्वर स्क्रीन को नई चमक दी। सुपरहिट फिल्म 'मैंने प्यार किया' से लेकर तमाम सुपरहिट धारावाहिकों में मेरठ की चादरों ने शूटिंग की साज सज्जा में चार चांद मढ़ा। यूरोप से लेकर अफ्रीका के तमाम देशों में हथकरघा उद्योग ने जबरदस्त छाप छोड़ी, किंतु नोटबंदी की सियासत में हैंडलूम इंडस्ट्री के धागे उलझ गए हैं। 90 वर्ष पुरानी इस इंडस्ट्री की नब्ज 80 फीसद तक बैठ गई है। खंदक बाजार से लेकर सरधना तक हैंडलूम का बाजार तकरीबन खत्म हो गया है।
हैंडलूम इंडस्ट्री वक्त के साथ आधुनिक हुई तो यह पावरलूम और हैंडीक्राफ्ट की भी राह पर चल पड़ी। जिले में 40 हजार से ज्यादा लूमों में बने कपड़ों की गुणवत्ता पूरी दुनिया में सराही जाती है। गांधी आश्रम में मिलने वाला सूती कपड़े का तिरंगा हथकरघा उद्योग की कारीगिरी पर मुहर लगाता है। बनारस, मऊ एवं खलीलाबाद के समान मेरठ में यह उद्योग तेजी से फैला। किंतु रोजाना करीब पांच करोड़ के कारोबार वाली इंडस्ट्री में अब 80 फीसद की भयावह मंदी छा गई है। कई कारोबारियों ने दर्जनों में से आधी हैंडलूम एवं पावरलूम इकाइयों पर ताला जड़ दिया। चंद मशीनों के दम पर कपड़ों का प्रोडक्शन किया जा रहा है। 90 फीसद कारोबार असंगठित होने की वजह से नकद कारोबार पर चलता था, जो पूरी तरह बंद पड़ गया। कच्चा माल की खरीद बंद पड़ने से दक्षिण भारत में कपास की भी खेती सूखती जा रही है।
बैंकों ने हाथ खड़ा किया
सुभाष बाजार के हैंडलूम कारोबारियों का कहना है कि बैंक रोजाना दस हजार से ज्यादा भुगतान नहीं कर रहे हैं, जिससे कच्चा माल नहीं खरीदा जा रहा। हैंडलूम वस्त्र व्यापारी संघ रोजाना करीब पचास चेकों को एकत्रित कर उसे बैंक में कैश कराता है, और सभी कारोबारियों तक नकदी पहुंचाई जाती है। पानीपत एवं जयपुर से मंगाए गए धागों को बुनकर तराशकर बाजार में पहुंचने लायक बनाते हैं। थोक विक्रेताओं की बिक्री बंद पड़ने से जाकिर कालोनी, भगवतपुर, लक्ष्मनपुरी, खिर्वा गांव, सरधना एवं खेकड़ा से लेकर बिजनौर तक श्रमिकों की बड़ी आबादी दो जून की रोटी को भी मोहताज हो गई है। बड़ी संख्या में महिलाएं भी सिलाई कारोबार से जुड़ी हुई हैं।
देशभर से जुड़ा है इंडस्ट्री का धागा
कपास की खेती दक्षिण भारत में सर्वाधिक होती है, किंतु माल बंद पड़ने से वहां के किसान भी मंद की चपेट में आ गए। मेरठ की हैंडलूम इंडस्ट्री पानीपत एवं पंजाब से सामान्य किस्म, जबकि तमिलनाडु से उत्तम गुणवत्ता के धागे खरीदती है। लूम पर कपड़ा बुनने के बाद रंगाई, छपाई, सिलाई, कढ़ाई, धुलाई समेत 11 अवस्थाओं से गुजरते हुए बेडशीट, गद्दे की खोल, तकिया, खादी, सूती शर्ट जैसे उत्पाद बनाए जाते हैं। पिलखुआ को शामिल करें तो मेरठ में प्रिंट की बेडशीट देश में सबसे बेहतरीन मानी जाती है।
टैक्स की लंगड़ी
हैंडलूम कारोबार टैक्स फ्री है, किंतु बिक्रीकर विभाग कई माल पकड़कर उसे जब्त कर लेता है। विभाग हैंडलूम को वैटफ्री न मानकर 40 फीसद तक दंड वसूल लेते हैं। अधिकारियों की इस रवैये को लेकर व्यापारियों में भारी नाराजगी है। उनका मानना है कि अगर मेरठ में हैंडलूम इंडस्ट्री को अलग जमीन देकर नया जोन बना दिया जाए तो यह मऊ एवं बनारस की हथकरघा इकाइयों को भी पीछे छोड़ देगा।
बाक्स
-हैंडलूम कारोबार-90 वर्ष पुराना
-पावरलूम-20, 000
-हैंडलूम-15000
-कारोबार से जुड़े बुनकर-करीब ढाई लाख
-माह का टर्नओवर-करीब 125 करोड़
-विशेषज्ञता-प्रिंटेड बेडशीट।
-निर्यात-एजेंट के माध्यम से यूरोप, अफ्रीका।
-बड़े स्पर्धी कारोबारी शहर-बनारस, मऊ, खलीलाबाद व मेरठ।
इनका कहना है
सरकार से ज्यादा शिकायत बैंकों से है। नियम के बावजूद 24 हजार की जगह सिर्फ 10 हजार रुपए मिल रहे हैं। इंडस्ट्री फिलहाल सन्न पड़ी है।
- कृष्ण कुमार गुप्ता, गर्गा हैंडलूम एवं पूर्व महामंत्री, हैंडलूम वस्त्र व्यापारी संघ, खंदक बाजार
हैंडलूम कारोबार असंगठित है। कैशलेस यहां बहुत मुश्किल है। माल की बिक्री बंद पड़ने से उत्पादन भी रोक दिया गया है। बाजार संभलने में लंबा वक्त लगेगा।
-मुकेश शर्मा, गीता एजेंसी
फिल्मों से लेकर धारावाहिकों तक मेरठ की हैंडलूम इंडस्ट्री की छाप स्पष्ट नजर आती है। नोटबंदी ने इंडस्ट्री की सांस रोक दी है।
-सुरेश गोयल, विशाल टेक्सटाइल्स
प्रिंटेड बेडशीट, तकिया की खोल, गद्दे का कवर एवं सूती कपड़ों के बनाने में मेरठ बेजोड़ है। किंतु नोटबंदी के बाद से न कच्चा माल आ रहा, न ही खरीदार मिल रहे हैं।
-नवीन अरोड़ा, अध्यक्ष, हैंडलूम वस्त्र व्यापारी संघ