आंखों में अब भी जिंदा है रेबीज से हुई मौत का खौफ
मेरठ: केस-1: अब्दुल्लापुर के गढ़ी मोहल्ला नई बस्ती निवासी साबिर को 19 साल पहले अचानक एक दिन पानी से
मेरठ: केस-1: अब्दुल्लापुर के गढ़ी मोहल्ला नई बस्ती निवासी साबिर को 19 साल पहले अचानक एक दिन पानी से डर लगा। उस रात बिजली के बल्बों से डरते हुए अंधेरे में साबिर ने वक्त गुजारा, किंतु सुबह होते ही मुंह से लार टपकती देखकर परिवार वाले डर गए। आंखों में बदहवासी थी, और गले की आवाज भर्रा रही थी। घरवालों ने समझ लिया कि कुछ गड़बड़ है। डाक्टर को दिखाया तो खौफ पूरे परिवार की आंखों में तैर उठा। डाक्टर ने रेबीज बताकर मौत का इंतजार करने एवं रोगी से दूर रहने के लिए कह दिया। साबिर ने पानी एवं खाने से डरते हुए अंधेरे में गुर्राते हुए दम तोड़ा। परिजन बताते हैं कि रेबीज के संक्रमण के साथ साबिर का दिमाग भी बिगड़ गया। कुत्ते के काटने से संक्रमित हुए रेबीज की भयावह दास्तां आज भी इस परिवार को झकझोर देती है। आखिरकार 16 जुलाई 1997 को 45 वर्षीय साबिर पुत्र सत्तार ने रेबीज से दम तोड़ा। परिवार की मानें तो जिला अस्पताल में वैक्सीन लगवाई गई थी, किंतु कोर्स एवं डोज को लेकर वह डाक्टरों पर संदेह जताते हैं। तत्काल वैक्सीन लगती तो साबिर का परिवार न उजड़ता।
साबिर की पत्नी ने बताया कि झुनझुनी में एक बाग में देखभाली का काम करते थे। देखभाली के दौरान एक दिन हांफता हुए एक कुत्ता वहां घुस आया। वहां पर रखे आटे में कुत्ते ने मुंह डाल दिया। साबिर ने कुत्ते को हटाने की कोशिश की तो उसने तेजी से झपट्टा मारकर हाथ में काटकर बुरी तरह जख्मी कर दिया। किंतु यहां पर भारी चूक हुई। साबिर को एंटी रेबीज लगवाने में देरी हुई, और परिवार डाक्टरों के यहां लेकर घूमते रह गए। कुत्ते के काटने के 26 दिन बाद साबिर में रेबीज का संक्रमण हुआ, और बाद में मौत हो गई। साबिर के भाई मौ. आबिद बताते हैं कि यह भयावह मंजर परिवार कभी नहीं भूलेगा। सबके साथ घुलमिलकर बैठने वाले साबिर अचानक सबसे डरने लगे थे। रोशनी व पानी से साबिर की घबराहट बढ़ जाती थी।
केस -2
अब्दुल्लापुर के खालसा मोहल्ला निवासी दिनेश कुमार उर्फ दीनू पुत्र चरण ¨सह की एक चूक आज परिवार को तबाह कर गई। उस वक्त दिनेश 25 वर्ष का था और परिवार में सबकुछ अच्छा चल रहा था। सूरजकुंड स्थित स्पोर्ट्स फैक्ट्री से वापस आते वक्त दिनेश कुमार के हाथ में एक कुत्ते ने काट लिया। यहां पर रेबीज के वायरस ने नया रूप दिखाया। पत्नी राजेन्द्री बताती हैं कि दिनेश का कई डाक्टरों के पास इलाज कराया गया। रेबीज भी संक्रमित होने से कई माह लगा। परिवार की जेहन से तब तक रेबीज का भय निकल चुका था, किंतु अचानक दिनेश की तबीयत बदलने लगी। शरीर में कई परिवर्तन नजर आने लगे। परिजनों ने बताया कि आखिरकार नौ माह तक लड़ने के बाद दिनेश ने दम तोड़ दिया। इन नौ महीने में दिनेश को मेरठ से लेकर चांदपुर तक डाक्टरों से उपचार कराया गया। परिवार कहता है कि दिनेश को भी एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाया गया था, किंतु वह आरोप लगाते हैं कि इंजेक्शन ठीक नहीं था। डोज एवं वैक्सीन के तापमान को लेकर संदेह की स्थिति है। दिनेश के चार बच्चे, काजल, सनी, शिवानी व शिवा के सिर से बाप का साया उठ गया।
सब कुछ बेअसर
दिनेश की पत्नी ने बताया कि उनमें रेबीज के ज्यादा लक्षण नहीं आए थे, किंतु डाक्टरों की मानें तो कई बार रेबीज का वायरस खामोशी से भी मरीज की जान लेता है। परिवार क्लीनिकों का चक्कर लगाता रहा, किंतु उसे बचाया नहीं जा सका। तमाम चिकित्सकों का कहना है कि हाइड्रोफोबिया में बुखार एवं शरीर दर्द का लक्षण पहले प्रकट होता है, और कई मरीज इन्हीं परिस्थितियों में दम तोड़ देते हैं।
--------------------
क्या कहते हैं डाक्टर
कुत्ते, बंदर, चूका, नेवला, घोड़ा, चमगादड़, गीदड़, सियार, बिल्ली एवं बिज्जू जैसे जीवों के काटने पर तत्काल चिकित्सक से मिलना चाहिए। पहली वैक्सीन जीरो डे यानी उसी दिन लगना जरूरी है। रेबीज का वैक्सीन के अलावा कोई इलाज नहीं, और देशी जड़ी एवं झाड़फूंक के चक्कर में बिल्कुल न पड़ें।