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यूं ही नहीं बना बंगला नंबर 210 बी

मेरठ : कैंट क्षेत्र का चर्चित बंगला नंबर 210 बी कैंट बोर्ड के लिए सिरदर्द बना हुआ है, लेकिन इस सिरदर

By Edited By: Published: Thu, 26 May 2016 02:12 AM (IST)Updated: Thu, 26 May 2016 02:12 AM (IST)

मेरठ : कैंट क्षेत्र का चर्चित बंगला नंबर 210 बी कैंट बोर्ड के लिए सिरदर्द बना हुआ है, लेकिन इस सिरदर्द के लिए कैंट बोर्ड के तत्कालीन अधिकारी और कर्मचारी कम जिम्मेदार नहीं हैं, जिनके रहते एक नहीं करीब बीस साल तक निर्माण चलता रहा। इसे रोकने वाले ही साठगांठ करके मौन सहमति देते रहे।

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बंगला नंबर 210 बी में आज एक शापिंग कॉम्प्लेक्स, 96 बिल्डिंग हैं। सैकड़ों परिवार इसमें रह रहे हैं। इस भूमि को कैंट बोर्ड डिफेंस लैंड बता रहा है, उसे एक निजी बिल्डर ने अधिकारियों के नाक के नीचे ही बेच डाला। लोगों ने रजिस्टरी कराई, उसे रोकने की जगह कैंट बोर्ड के कुछ कर्मचारियों ने अपनी पत्नी और रिश्तेदार के नाम से प्लाट कटवाया। आरोप है कि शुरू में तात्कालीन जेई के गुप्ता ने भी अपनी पत्‍‌नी के नाम से प्लाट लिया था। तत्कालीन कुछ सदस्यों ने भी यहां प्लाट खरीदे। जिन लोगों पर निर्माण कार्य रोके जाने की जिम्मेदारी थी, उनका पूरा संरक्षण मिला। तमाम कोर्ट कचहरी और विवादों के बीच भी 1990 से लेकर 2010 तक यहां निर्माण कार्य चलता रहा।

बड़े पदों पर पहुंच गए अधिकारी

कैंट बोर्ड में 1990 से लेकर 2010 तक कई सीईओ और ब्रिगेडियर आए, जिसमें से कुछ को छोड़कर ज्यादातर अधिकारी बंगला नंबर 210 बी पर आंखें मूंदे रहे। कैंट बोर्ड के किस अधिकारी और कर्मचारी का निर्माण कार्य में संलिप्तता रही, यह तो जांच का विषय है, लेकिन लोगों की मानें तो 1992 में सीईओ टीए नाथन के समय निर्माण शुरू हुआ। एसएस पुजारी, एके श्रीवास्तव, हरीश प्रसाद, जेएस माही, केसी गुप्ता सहित कई सीईओ आए और चले गए। इनके अलावा उस वक्त इंजीनिय¨रग सेक्शन में अनुज सिंह व के गुप्ता तैनात रहे। अनुज सिंह आज भी इसी सेक्शन में बने हैं, जबकि के गुप्ता सेवानिवृत्त हो गए। इन सभी के समय में निर्माण कार्य बदस्तूर जारी रहा। तत्कालीन सीईओ के अलावा कई ब्रिगेडियर आज शीर्ष पदों पर पहुंच चुके हैं, कुछ रिटायर भी हो गए। कुछ होने वाले हैं।

राहत की उम्मीद कम

बंगला नंबर 210 बी के ध्वस्तीकरण का आदेश हाईकोर्ट से हो चुका है, कब्जेदारों की अपील को सुप्रीम कोर्ट ने भी खारिज कर दिया है। कैंट बोर्ड कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए ध्वस्तीकरण की तैयारी कर रहा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को चुनौती देना आसान नहीं है। सांसद राजेंद्र अग्रवाल संसद इस मुद्दे को उठा चुके हैं, रक्षामंत्री से भी मिलने वाले हैं। हालांकि कैंट बोर्ड के अधिकारियों की मानें तो इस तरह के मामले कई छावनियों से रक्षा मंत्रालय तक पहुंचते रहे हैं, लेकिन किसी भी मामले में रक्षा मंत्रालय ने छूट नहीं दी और न ही किसी ऐसे निर्माण को कंपाउंड करने की इजाजत दी। ऐसे में रक्षा मंत्रालय से भी राहत मिलने की कोई उम्मीद लगती नहीं है।

इनका कहना है..

इतना बड़ा निर्माण रातोंरात नहीं हुआ। कैंट बोर्ड बी लैंड बता रहा है, लोग इसे सिविल और निजी लैंड मान रहे हैं। पूरा क्षेत्र सिविल एरिया है। अगर बोर्ड इसे गिरा देगा तो क्या यहां के खाली मैदान में तोप का कारखाना लगेगा। मुझे पूरी उम्मीद है कि रक्षामंत्री इस मुद्दे पर निश्चित तौर पर पहल करके हल निकालेंगे।

राजेंद्र अग्रवाल, सांसद, मेरठ

कैंट एक्ट में कंपाउंड का प्रावधान है। कंस्ट्रक्शन की लागत का दो से दस फीसद लेकर कंपाउंड किया जा सकता है। कैंट बोर्ड प्रस्ताव बनाकर रक्षा मंत्रालय के पास भेज सकता है।

सुनील वाधवा, पूर्व उपाध्यक्ष, कैंट बोर्ड।


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