नीट में चलेगी केवल मजबूत ईंट
अवनीन्द्र कमल, मेरठ: अवसर के बिना योग्यता हांफने लगती है। लेकिन जब मेरिट की जगह मनी को मौका मिल ज
अवनीन्द्र कमल, मेरठ:
अवसर के बिना योग्यता हांफने लगती है। लेकिन जब मेरिट की जगह मनी को मौका मिल जाए तो प्रतिभा का विलाप सुनाई देता है। सपने सिसक उठते हैं। वाकई सबसे खतरनाक होता है, सपनों का मर जाना। मेडिकल की प्रवेश परीक्षा में यही होता आया है। प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में सीटें बिकती हैं। कीमत करोड़ तक। प्रतिभा वाले वंचित, पैसे वालों को दाखिला। अब मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (एनईईटी) को अनिवार्य कर दिया गया है। इस टेस्ट का दायरा और नेचर कैसा हो? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आदेश दिया है। अदालत का नीट संबंधी फैसला मुसीबत है या राहत भरा, इस विषय पर दैनिक जागरण की अकादमिक संगोष्ठी में सोमवार को अतिथि वक्ता गुरु द्रोणाचार्य कोचिंग संस्थान के निदेशक विजय अरोड़ा रहे। प्रस्तुत हैं, उनके विचार..
परीक्षाएं अब तक
मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए अब तक दो तरह की परीक्षाएं होती रही हैं। एक राज्य स्तरीय और दूसरी राष्ट्र स्तरीय। राज्य स्तरीय परीक्षाओं में संबंधित प्रांत के अभ्यर्थियों के लिए 85 फीसद सीट सुरक्षित होती थी। केंद्रीय स्तर पर होने वाली परीक्षाओं में पूरे देश के अभ्यर्थी शामिल होते रहे हैं। इसमें उत्तीर्ण छात्र बीएचयू, एएमयू जैसे मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाते थे। लेकिन अब राज्यों को परीक्षा कराने की अनुमति नहीं होगी। नीट केंद्र का सृजन है, इसलिए यह राज्यों के कानून से ऊपर होगा।
ये है आदेश
दरअसल, नीट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश अहम है। अब देशभर के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए एक कामन एंट्रेंस टेस्ट होगा। इसे एनईईटी (नीट) नाम दिया गया है। इसके तहत पहला टेस्ट 1 मई को हो चुका है। 24 जुलाई को दूसरा टेस्ट होगा। अदालत ने कहा है कि 1 मई को जो उम्मीदवार परीक्षा में शामिल हुए हैं, वह 24 जुलाई को भी नीट-2 में शरीक हो सकते हैं, लेकिन ऐसे अभ्यर्थियों को नीट-1 का परित्याग करना होगा। उनका स्कोर और रैंक नीट-2 के आधार पर ही तय होगा।
क्वालिटी एजुकेशन की आस
सुप्रीम कोर्ट का आदेश नि:संदेह राहत भरा है। इससे प्रतिभाओं को निराश नहीं होना पड़ेगा। प्राइवेट मेडिकल कालेजों की मनमानी पर रोक लगेगी। कोर्ट के फैसले से अब क्वालिटी मेडिकल एजुकेशन की उम्मीद की जा सकती है। सबसे खास बात यह है कि अब नान मेरिट होल्डर दाखिला नहीं ले सकेंगे।
यह भी जान लें
मेडिकल की साझा प्रवेश परीक्षा (नीट) के दायरे में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़ और पुदुचेरी स्थित जिपमेर नहीं हैं। ये संस्थान अपनी स्थापना के समय से ही पार्लियामेंट्री एक्ट के तहत अपने यहां की प्रवेश परीक्षा कराने के लिए स्वतंत्र हैं।
50 फीसद अनिवार्य
नीट के जरिए होने वाली परीक्षा में सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को 50 फीसद अंक प्राप्त करने के बाद ही दाखिला मिल सकेगा। इसी तरह एससी-एसटी के लिए 40 फीसद अंक की अनिवार्यता है। एससी-एसटी की सीटें खाली रह जाएंगी तो ओबीसी को मिलेगा, फिर सामान्य वर्ग को। जाहिर है, इससे प्रतिभाओं को ही मौका मिलेगा। दिलचस्प यह है कि परीक्षा में पारदर्शिता के लिए कोर्ट ने निगरानी समिति का भी गठन किया है। संभावना इसी बात की है कि अब मेरिट कैपिसिटी वालों को स्थान मिलेगा, न कि पेमेंट कैपिसिटी वाले अभ्यर्थियों को।
आदेश टालने को अध्यादेश
केंद्रीय कैबिनेट ने नीट को एक साल तक टालने के लिए अध्यादेश पर 20 मई को मुहर लगा दी है। केंद्र का तर्क है कि कुछ राज्यों ने इस पर असहमति जताई है। इस अध्यादेश पर राष्ट्रपति की मुहर लगनी बाकी है। इस पर सियासत भी हो रही है। इस अध्यादेश को कोर्ट में चुनौती भी दी जा सकती है।
यह है विरोध की वजह
सुप्रीम कोर्ट के नीट संबंधी फैसले पर महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य सहमत नहीं हैं। इनका तर्क है कि सीबीएसई यह परीक्षा केवल अंग्रेजी और ¨हदी माध्यम में कराएगी। ऐसे में क्षेत्रीय भाषाओं में परीक्षा देने की मंशा रखने वाले अभ्यर्थियों को नुकसान होगा। यही नहीं परीक्षा के लिहाज से राज्यों का पाठ्यक्रम सीबीएसई से एकदम अलग है।